छत्तीसगढ़

महादेव सट्टा एप्प पर ईओडब्ल्यू की चार्जशीट में दागी आइपीएस अफसरों एवं नेताओं के नाम नदारद, जबकि ईडी की चार्जशीट में था नाम

विजया पाठक
महादेव सट्टा एप्प पर ईओडब्ल्यू की चार्जशीट में दागी आइपीएस अफसरों एवं नेताओं के नाम नदारद, जबकि ईडी की चार्जशीट में था नाम
महादेव सट्टा एप्प पर ईओडब्ल्यू की चार्जशीट में दागी आइपीएस अफसरों एवं नेताओं के नाम नदारद, जबकि ईडी की चार्जशीट में था नाम
  • क्या छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री विजय शर्मा ने दिया भूपेश और उनकी चंडाल चौकड़ी को अभयदान?
  • क्या छत्तीसगढ़ में गृह विभाग कांग्रेस समय के दागी अधिकारी चला रहे हैं या भूपेश के साथ चल रही है मिली-जुली सरकार?
  • प्रधानमंत्री मोदी की मां और अमित शाह को अपशब्द कहने वाले को किसके प्रभाव में दी मलाईदार पोस्टिंग छत्तीसगढ़ में दागी अफसरों का बोलबाला?
  • गृहमंत्री विजय शर्मा भी पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तरह अपनी चंडाल चौकड़ी से घिर गए हैं?

विजया पाठक-संपादक : जगत विजन

छत्तीसगढ़ में सरकार बदले छह महीने से ज्यादा हो गया है पर लगता है सरकार और खासतौर पर गृह विभाग कांग्रेस शासन की तरह चल रहा है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण अभी हाल में ही ईओडब्ल्यू द्वारा महादेव सट्टा एप्प में दायर चार्जशीट से साबित होता है। ईओडब्ल्यू ने अपनी चार्जशीट में ईडी की चार्जशीट से अलग महादेव सट्टा के मुख्य साजिशकर्ता रहे राजनेता, आईपीएस अफसर एवं राज्य पुलिस अधिकारियों को क्लीनचिट दे दी।

खास बात है कि ईडी की चार्जशीट एवं बयानों में आईपीएस अफसर जैसे आरिफ शेख, आनंद छाबरा, अभिषेक माहेश्वरी के बारे में घोटाले से लिंक बताया गया था। वहीं इस घोटाले में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं उनके खास लोगों का नाम भी गायब कर दिया है। छत्तीसगढ़ में शासन भले ही बदल गया हो पर गृह मंत्रालय कांग्रेस दौर का ही चल रहा है, वहीं अधिकारी अभी भी पावर में हैं जिन्होंने गृहमंत्री विजय शर्मा की पार्टी के सिरमौर नरेंद्र मोदी, उनकी माताजी और अमित शाह को लेकर अपशब्द कहे थे, हजारों भाजपा के कार्यकर्ताओं पर मामले दर्ज किए गए एवं नेताओं पर सर्विलांस रखा गया।

क्या इसका सीधा-सीधा मतलब यह है कि छत्तीसगढ़ भाजपा के गृह मंत्रालय और भूपेश बघेल एक ही है। एक नया बदलाव यह है कि प्रदेश का पूर्व दागी आइपीएस अफसर मुकेश गुप्ता चुपचाप से ईओडब्ल्यू में अपने खिलाफ मामलों की नस्ती बंद करवाने में लगे हैं। खैर, उनके खिलाफ मदनवाड़ा हत्याकांड की जांच रिपोर्ट गई है, जिसमें उन्हें कसूरवार ठहराया गया है जिसे मुकेश गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया पर वहां से इनकी अर्जी जल्द ही खारिज होगी।

इस प्रकार छग के गृहमंत्री विजय शर्मा की कार्यप्रणाली चर्चा में है। पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के कुकर्मों को जनता पर थोपने वाले अफसरों के खिलाफ वैधानिक कार्यवाही की जिम्मेदारी गृहमंत्री के कंधों पर थी। जिनकी 06 माह बीतने के बावजूद दागी अफसरों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई। यही नहीं ऐसे अफसर अब गृहमंत्री के रहनुमा बन गये हैं।

भ्रष्‍टाचार में लिप्‍त अफसरों का मानना गृहमंत्री उनकी मुट्ठी में

बताया जाता है कि महादेव सट्टा कारोबार में लिप्त आधा दर्जन से ज्यादा आईपीएस अधिकारी गृहमंत्री के गुणगान इसी तर्ज पर कर रहे हैं जैसे कि कांग्रेस कार्यकाल में पूर्व मुख्यमंत्री के साथ हाथ में हाथ डालकर किया करते थे। प्रदेश की हालत यह है कि अभी हाल में ही ईओडब्ल्यू ने महादेव सट्टा एप्प पर अपनी चार्जशीट दाखिल की जिसमें से इस पूरे भ्रष्टाचार में से दागी अफसरों का दावा है कि गृहमंत्री भी उनकी मुट्ठी में हैं। दागियों का यह दावा खोखला नजर नहीं आ रहा है।

तस्दीक करने पर पता पड़ा कि सूबे के गृहमंत्री विजय शर्मा भी नौकरशाही के खेल में जम गये हैं, चंद महीनों में ही रम गये हैं। उनकी सरकारी भाषा शैली यह बताने के लिए पर्याप्त है कि गृहमंत्री जी पर सत्ता का नशा अभी सिर चढ़कर बोलने लगा है। कई मौके पर गृहमंत्री उन पत्रकारों को आड़े हाथों ले रहे हैं, जिन्होंने उनसे सवाल किया कि आखिर दागी अफसरों के खिलाफ कार्यवाही कब होगी। गृहमंत्री का रूप बताता है कि वह भी नौकरशाही की जय जयकार करने में जुट गये हैं।

हाल ही में राज्य सरकार ने दर्जनों अपराधों में लिप्त रायपुर के तत्कालीन एएसपी अभिषेक माहेश्वरी को बस्तर संभाग में स्थानांतरित कर दिया था। ऊंची पहुंच के चलते अब इस अफसर ने अपनी नई तैनाती रायपुर में ईओडब्ल्यू के कार्यालय में करवा ली है। पूर्ववर्ती कांग्रेस के मुख्यमंत्री की तत्कालीन सचिव सौम्या चौरसिया के आपराधिक मामलों में बराबरी की हिस्सेदारी करने वाले एएसपी अब बीजेपी के नेताओं का चहेते बन गये हैं।

उसी तर्ज पर 2005 बैच के आईपीएस शेख आरिफ और उनकी आईएएस पत्नी को महचाही पोस्टिंग हाथों हाथ सौंप दी गई है। जनता को गुमराह करने के लिए गृह मंत्रालय की ओर से इस दागी अधिकारी को अंबिकापुर स्थानांतरित किया गया था। लेकिन यह अफसर अभी तक रायपुर में पुलिस मुख्यालय में हैं। जबकि उनकी पत्नी महिला एवं बाल विकास विभाग में महत्वपूर्ण पद पर तैनात कर दी गई हैं। पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के शासनकाल में शमी अबिदी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे लेकिन ईओडल्ब्यू की कमान उनके पति आईपीएस आरिफ शेख के हाथों के चलते हुये शमी अबिदी के खिलाफ प्राप्त सभी शीकायतें नष्ट कर दी गई हैं।

यही हाल 2005 बैच के आईपीएस आनंद छाबरा का है। आनंद छाबरा का पूर्व मुख्यमंत्री का दरबारी अफसर बताया जाता है। उसके आपराधिक कृत्य को कानूनी रूप देने के लिए अवैध रूप फोन टेपिंग कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। खाकी वर्दी पर कांग्रेस का दुपट्टा डालकर इस अफसर ने एक से बढ़कर एक अपराधों को अंजाम दिया था। उसके द्वारा मुखबरी फंड का भी दुरुपयोग किया गया था। जिसके कारण पुलिस का सूचना तंत्र बुरी तरह से लड़खड़ा गया था। सूचना के अभाव में पुलिस ओर केन्द्रीय सुरक्षाबलों के कई जवानों की शहादत हो गई थी। बीजेपी के कई कार्यकर्ता मारे गये। पूरे प्रदेश में भ्रष्टाचारियों और अपराधियों को बोल बाला रहा।

बताया जाता है कि इस अफसर की कार्यप्रणाली के चलते पुलिस महकमों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। सूत्रों के मुताबिक वर्ष 2018 से 2023 तक पूरे 05 वर्षों में मुखबिरी फंड की लगभग 50 करोड़ की राशि पूर्व मुख्यमंत्री के करीबी कांग्रेसी राजनैतिक कार्यकर्ताओं के ऐशोआराम पर खर्च कर दी गई। बस्तर के पदस्थ कई जिम्मेदार पुलिस अफसर तस्दीक करते हैं कि इन वर्षों में मुखबिरी फंड के नाम पर फुटी कौड़ी भी नहीं मिली थी।

सूत्रों के हवाले से बताया जाता है कि नक्सल प्रभावित ही नहीं बल्कि मैदानी इलाकों में तैनात पुलिस अधीक्षक को औपचारिकता निभाने के लिए मुखबिरी फंड से नाममात्र की राशि स्वीकृत की जाती थी। जबकि उन्हें यह भी साफ कर दिया गया था कि सूचना तंत्र को विकसित करने के लिए होने वाले खर्चे की पूर्ति वह स्वयं करें। ऐसी स्थिति में साल दर साल पुलिस का सूचना तंत्र पूरी तरह से लड़खड़ा गया।

यही नहीं पुलिस तंत्र को सीनियर और कनिष्ठ अधिकारियों के बीच सामंजस्य खत्म करने की योजनाबद्ध तरकीब पर भी छाबरा ने कार्य किया था। इस स्थिति में पुलिस मुख्यालय में तैनात सीनियर अधिकारियों को ठिकाने लगा दिया गया था। तत्कालीन गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को दरकिनार कर तमाम नीतिगत फैसले शेख आरिफ और छाबरा की जुगलजोड़ी लिया करती थी।

छाबरा की डीएफओ पत्नी की वन विभाग में कार्यप्रणाली भी सवालों के घेरे में बताई जाती है। वन विभाग में मलाईदार पद पर तैनात शालिनी रैना के खिलाफ भी सरकारी कार्यों में गड़बड़ी और भ्रष्टाचार को लेकर कई शिकायतें ईओडल्ब्यू को सौंपी गई थी। शिकायतकर्ता तस्दीक कर रहे हैं कि दागी अफसरों के पत्नियों की तमाम शिकायतों को ईओडल्ब्यू से गायब कर दिया गया है।

जानकारी के मुताबिक शेख आरिफ और आनंद छाबरा जैसे और अन्य अफसरों को भी गृहमंत्री विजय शर्मा का संरक्षण प्राप्त हुआ है। बताया जाता है कि यह संरक्षण मुफ्त के भाव नहीं मिला। महादेव ऐप घोटाले में दर्जनों पुलिस अधिकारियों की संलिप्तता के बावजूद गृहमंत्री का रूख अब उनके खिलाफ कार्यवाही का नहीं रहा बल्कि उनके संरक्षण और उचित संवर्धन का नजर आ रहा है। यह भी बताया जा रहा है कि गृहमंत्री विजय शर्मा फैसला लेने में काफी कमजोर नजर आ रहे हैं। नौकरशाही इसका भरपूर आनंद उठा रही है।

जबकि बीजेपी के तमाम वादे हवा में उड़ गये हैं। राज्य में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि भ्रष्टाचारियों के बुरे दिन की शुरूआत होना शुरू होगी लेकिन बीते 06 माह में साफ हो गया है कि बघेल का दंश भोग रही एक बड़ी आबादी को विजय शर्मा गृहमंत्री के पद रहते न्याय मिल पाना में संदेह नजर आ रहा है। प्रदेश में हालत यह है कि दुर्ग में तो गली-गली में अवैध सट्टा का कारोबार जो रहा है, अब इन सबके पीछे कौन है, यह जांच का विषय है।

गृहमंत्री विजय शर्मा के कार्यकाल में बढ़ रही नक्‍सली वारदातें

छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री विजय शर्मा की कार्यप्रणाली चर्चा में है। राज्य के गृहमंत्री कानून व्यवस्था को लेकर कितने सक्रिय व चिंतित है वह इस बात से पता चलता है कि उनके कार्यकाल में राज्य में लगातार नक्सल से जुड़ी घटनाओं में वृद्धि हो रही है। दिन प्रतिदिन नक्सल अपराध बढ़ता जा रहा है। और प्रदेश के गृहमंत्री हाथ पर हाथ रखकर शांत बैठे हुए हैं। गृहमंत्री शर्मा को राज्य व राज्य की जनता की सुरक्षा को लेकर बिल्कुल भी चिंता नहीं है। यही कारण है कि लोग लगातार नक्सल अपराध का शिकार होते जा रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार पिछले एक साल में 400 से अधिक नक्‍सली घटनाएं हुईं, जिनमें से 98 से अधिक नागरिकों व सुरक्षा बलों को अपनी जान गंवाना पड़ी है।

पिछले सात माह में बिगड़ गई प्रदेश की कानून व्‍यवस्‍था

प्रदेश में सत्‍ता में बीजेपी को आये सात माह हो गये हैं। इन सात माह में प्रदेश की कानून व्‍यवस्‍था चरमरा गई है। प्रदेश के गृहमंत्री विजय शर्मा कानून व्‍यवस्‍था को संभालने में नाकाम हैं। राज्य में सात महीनों में रेप के 300 मामले, गैंगरेप की 80 घटनाएं और 200 से अधिक हत्याएं दर्ज की गईं। चाकूबाजी, लूटपाट, डकैती और झपटमारी की अनगिनत घटनाएं हुई हैं। गृहमंत्री विजय शर्मा आम आदमी की रक्षा करने में विफल रहे हैं। इनके कार्यकाल में प्रदेश की कानून व्‍यवस्‍था पिछले सात माह में बर्बाद हो गई है।

भूपेश शासन से त्रस्‍त पत्रकारों की उम्‍मीद पर खरी नहीं उतर रही सरकार

तत्‍कालीन भूपेश बघेल सरकार में प्रदेश के दर्जनों पत्रकारों ने काफी दंश झेला है। पत्रकारों पर झूठे मुकदमें दर्ज करवाकर जेल में ठूंसा गया, जेल के अंदर यातनाएं दी गई। इन पत्रकारों का कसूर बस इतना था कि इन्‍होंने प्रदेश सरकार की सच्‍चाई को छापा था। सच्‍चाई में भूपेश बघेल और इनकी चांडाल चौकड़ी के कारनामें थे। लेकिन यह सच्‍चाई मुख्‍यमंत्री बघेल को रास नहीं आ रही थी। मैं भी भूपेश शासन में त्रस्‍त हो चुकी हूं।

आर्थिक, सामाजिक और मानसिक रूप से काफी परेशान किया गया था। तीन बार तो मेरे भोपाल स्थित आवास पर पुलिस मुझे गिरफतार करने पहुंची। इसके अलावा सुनील नामदेव, नीलेश शर्मा, कमल शुक्ला जैसे दर्जनों नाम हैं जिनका जीना मुश्किल कर दिया गया था। सुनील नामदेव को तो काफी प्रताडि़त किया गया था। जेल में सैनेटाईजर तक पिलाया गया था। अब जब प्रदेश में सरकार बदल गई है तो दर्जनों पत्रकारों को उम्मीद थी कि उनके साथ जो अन्‍याय और मुसीबतें झेली है उसका दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा।

लेकिन प्रदेश का दुर्भाग्य है कि कलमकारों की आवाज को आज भी अनसुना किया जा रहा है। जो उम्‍मीद पत्रकारों ने लगाई थी उस पर सरकार और गृह मंत्रालय नजरअंदाज कर रही है। गृह मंत्रालय की विफलता आने वाले दिनों में सरकार के लिए सरदर्द साबित हो सकती है। आपको बता दें कि पिछली सरकार के समय पूरे छत्तीसगढ़ और खासकर बस्तर में पुलिस प्रताड़ना और फर्जी गिरफ्तारियों से आक्रोशित पत्रकारों ने पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर प्रदेश व्यापी आंदोलन किया था। इस आंदोलन के बाद प्रदेश सरकार ने एक राज्य स्तर कमेटी गठित की थी। क्रमश:

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