इंदौर
इंदौर का जाम: विकास की शोकसभा : तीखे तेवर: तथ्य भी, तंज भी
अविनाश रावत
अविनाश रावत, खोजी पत्रकार
इंदौर.
इंदौर-देवास बायपास पर 40 घंटे का जाम लगा। 40 घंटे यानी डेढ़ दिन का कर्फ्यू – लेकिन बिना आदेश, बिना तंबू, और बिना प्रशासन के। लोग बैठे रहे, फंसे रहे, मरते रहे और सिस्टम? वो बस ट्वीट कर रहा था। हम स्थिति पर नज़र बनाए हुए हैं। इस 40 घंटे के विकास पर्व में तीन लोग मौत की नींद सो गए।
कोई अफसर नहीं दिखा। ध्यान रहे। यह कोई युद्ध क्षेत्र नहीं था, नक्सली इलाका नहीं था, बस एक डिवेलप होता, सात सालों से देश का सबसे स्वच्छ शहर था, जहाँ सड़क पर फंसे रहना अब मौत का वैकल्पिक तरीका है। बाकी जनता? हजारों लोग भूखे-प्यासे, जाम में तडपते रहे।बच्चों की आँखों में जलन थी, बड़ों के गुस्से में जलजला था, लेकिन प्रशासन की आँखों में नींद थी… और कानों में एयरप्लग।
अब कहिएगा मत कि प्रशासन सो रहा था। वो तो मौके पर दौड़ा-दौड़ा पहुंचा… अगले दिन। और वहाँ से वापस लौटते वक्त इतना सक्रिय था कि एक जाम खुलवाने में तीन और लगवा गया।
मैं खुद पिछले दो साल से देख रहा हूं। यहाँ जाम सिर्फ ट्रैफिक नहीं रोकता, लोगों की ज़िंदगी रोकता है। रोज ऑफिस जाने के लिए 25 किमी का सफर और इतना ही आने में। कुल 50 किमी आने-जाने में 3 से 3.5 घंटे लगना आम बात है। आज तो 2 किमी का सफर 3 घंटे में पूरा किया। गाड़ी नहीं चला रहा था, जैसे कर्मों का हिसाब चुका रहा था।
और ट्रैफिक पुलिस? उन्हें खोजिए चालान मशीन के पास, हेलमेट चेकिंग में, या ब्रीथ एनालाइज़र की फूंक में। जाम खुलवाते शायद ही कभी दिखें। क्योंकि उनके ड्यूटी चार्ट में सड़क पर व्यवस्था नहीं, राजस्व संग्रह लिखा होता है। अब हालत यह है कि इंदौर में आप कहीं से भी आएं, भोपाल, उज्जैन, खंडवा, या रिंग रोड। हर रास्ता विकास की गिरफ्त में है। सड़कें नहीं बनीं, बल्कि जामों का नेटवर्क तैयार हुआ है। हर मोड़ पर ठहराव, हर गली में कोलाहल, और हर बायपास पर बायहाथ।
कुल मिलकर इंदौर अब शहर नहीं रहा, प्रशासनिक चुप्पी की ओपन एयर प्रदर्शनी बन गया है। यहाँ विकास के नाम पर सिर्फ गड्ढे हैं, जाम हैं, और कभी-कभी लाशें भी।
और अगर आप जाम में फंस गए तो भगवान भरोसे… क्योंकि यहाँ विकास आता है बाईपास से, और मौत आती है सिग्नल पर खड़ी एंबुलेंस के साथ। शहर की रफ्तार का हाल ये है कि लोग मंज़िल से पहले मौन तक पहुंच जाते हैं। अब बोलिए मत इंदौर स्मार्ट सिटी है…