आपकी कलम

संस्कृति चाहिए, सर्टिफिकेट नही...! गेर-फ़ाग यात्राओं का क्रम तय होने के बाद कब और कैसे हो गया बदलाव?

नितिनमोहन शर्मा
संस्कृति चाहिए, सर्टिफिकेट नही...! गेर-फ़ाग यात्राओं का क्रम तय होने के बाद कब और कैसे हो गया बदलाव?
संस्कृति चाहिए, सर्टिफिकेट नही...! गेर-फ़ाग यात्राओं का क्रम तय होने के बाद कब और कैसे हो गया बदलाव?
  •  जिम्मेदारों ने इंदौर को खबर की कि गेर-फ़ाग यात्राओं का समय और क्रम बदल दिया? 
  •  जिस फ़ाग यात्रा के लिए सबसे पहले का क्रम, सुबह 9.30 बजे का समय तय किया, वो ही हुई सबसे लेट 
  •  उत्सव में राजनीति के शामिल होने से बिखर गया इस बार रंगपंचमी का उल्लास 
  •  उत्सव मार्ग पर किसी को कुछ पता ही नही, कब आएगी गेर, कब फ़ाग यात्रा? 
  •  राजनीति से दूर मॉरल, रसिया कार्नर की गेर को तो वक्त पर निकली, शेष के लिए उत्सव नही, नेता जरूरी हुए 
  •  सुबह 7 बजे से रास्ते रोक कर बैठ गए जिम्मेदार, दूध-पानी को तरस गए लोग 

 नितिनमोहन शर्मा

इंदौर को अपनी रँगपचमी पर गर्व हैं। फ़ख़्र है इस शहर को अपनी उत्सवधर्मिता पर। गर्व है इस शहर के बाशिंदों को अपने उत्सवप्रेमी होने पर। शहर के उत्सव, शहरवासियों की संस्कृति और संस्कार से जुड़े हैं। वो भी पुरखो समय से। इस परम्परा और संस्कृति को किसी सर्टिफिकेट की जरूरत हैं क्या? अगर है भी तो क्या वह शहर की संस्कृति व परम्परा को ताक में रखकर या बिसराकर लिया जाएगा? 

 ये अच्छी बात है कि इंदोरियो का ये स्वस्फूर्त रंगोत्सव का उल्लास देश की सरहद पार तक जाए, जाना और पहचाना जाए। लेकिन इसके लिए क्या हम हमारे उत्सव को बदल देंगे? उसके तोर तरीको को ताक में रख देंगे? विश्व धरोहर में शामिल होने के लिए रँगपचमी की घरोहर को धूलधूसरित कर देंगे क्या? क्या करेगा इंदौर उस सर्टिफिकेट को पाकर, जिसमे वो खुलकर रंगोत्सव ही मना नही पाए? " एलीट क्लास" के " एटिकेट्स मैनर्स" के हिसाब से हुरियारों का उल्लास होगा? या इन्दौरी हुरियारों के हिसाब से " एलीट क्लास" इस उत्सव में शामिल होगा? 

जिसे इंदौर की रँगपचमी देखना है, उसे इंदौर की ख़ालिस रँगपचमी ही देखने दीजिये न? न पसन्द आये तो आपका हमारा क्या बिगड़ेगा? अगले बरस मत आना, और क्या? इंदौर काफी है अपना रंगोत्सव मनाने के लिए। अब तक हम क्या किसी सर्टिफिकेट या पुरुस्कार की चाह में रंगरंगीले होते आये हैं? रगों की मस्ती तो इस मस्ताने शहर पर बगेर किसी दिखावे के ही चढ़ती है और अब तक चढ़ती भी आई हैं। तभी तो इंदौर की होली रँगपचमी देशभर में मशहूर हुई। अब उसी पर्व के उल्लास और उत्साह को "बंधक" बनाया जा रहा हैं। रंग उल्लास के मैनर्स तय किये जा रहे है क्योंकि मेहमानों को पसंद आए। मेहमान को अगर हमारी माँ पसन्द नही तो क्या हम अपनी जननी को बदल देंगे? सँस्कृति, संस्कार और परम्परा भी माँ से कम है क्या? जैसी भी है, हमारी माँ तो हमारी हैं। भले ही वो सुंदर न हो।

पुराना इंदौर कभी बंधक नही बनाया गया,बिजली भी बंद 

इंदौर कोई आज से रँगपचमी मना रहा है? पूरा उत्सव पुराने इंदौर में ही होता है लेकिन कभी भी ये इलाका ऐसा " बंधक" नही बनाया गया, जैसा इस साल किया गया। जब थाने गिनती के, बल मुट्ठीभर, न तकनीक, न संसाधन...तब भी पुलिस प्रशासन ने ऐसा भय का माहौल नही खड़ा किया, जैसा बीते तीन चार साल से होने लगा है। सुबह 7 बजे से तमाम रास्ते सीलबंद कर दिए गए। बड़ा गणपति से आप टोरी कार्नर नही आ सकते। मालगंज से नर्सिंग बाजार नही आ सकते। गोरकुण्ड से राजबाड़ा नही जा सकते, न राजबाड़ा से गोरकुण्ड। नलिया बाखल से सीतलामाता बाजार की तरफ नही बढ़ सकते न यशवंत रॉड से राजबाड़ा आ सकते। ये सब सख्ती सुबह सुबह 7 वजे की। जब इस इलाके का रहवासी दूध पानी मन्दिर दर्शन करता है, तब उसे उत्सव के नाम पर बंधक बनाया जा रहा है। न दूध वाले दूध बाट पाए न लोग मन्दिर दर्शन कर पाए। पूरे गेर मार्ग को जोड़ने वाली गलियों और रास्तो को बंद कर दिया गया जो भीड़ बढ़ने पर दबाव कम करने के काम आते हैं। ऐसा तो इस इंदौर ने कभी देखा ही नही की गैर में जाने से पहले उसे इस तरह बंधक बनाया गया हो। बिजली भी पूरे इलाके की बन्द कर दी गई। 9 30 से 2 30 बजे तक बिजली बंद। है न गजब। 

एक भी नेता ऐसा नही जो बोले कि ये क्या कर रहे हो? 

क्या इस शहर ने इसके पहले रँगपचमी नही खेली। सब कुछ अफसरों के हवाले छोड़ने वाला शहर का राजनैतिक नेतृत्व भी इस मुद्दे पर मौन है। है न हैरत की बात। बाहर से आये अफसरों को कौन बताएगा कि यहां ऐसा कुछ नही होता, आप घबराइए नही। बरसो से लोग शांतिपूर्ण तरीके से रंग खेलकर लौट जाएंगे। सुबह 7 बजे से घेराबंदी क्यो? एक भी नेता ऐसा बोला? गोरकुण्ड चौराहे पर होली की उपाधि वाली पोस्टर प्रदर्शनी तो परम्परा का ही हिस्सा है न तो फिर कैसे सराफा थाना तब तके चेन से नही बैठा जब तक पोस्टर हटा नही दिए। ऐसे तो कल से रंग पर भी रोक हो जाएगी कि रहने दीजिए, जो आ रहे है उन्हें पसंद नही। नेतृत्व का जोर अपनी अपनी राजनीतिक जमावट में जुटा रहा, शहर ओर उसका उत्सव जाए भाड़ में।

धोखाधड़ी का शिकार हुई इंदौर की उत्सवधर्मिता. !.! 

 इंदौर की उत्सवधर्मिता औऱ उसकी उत्सवप्रियता इस रंगपंचमी पर धोखाधड़ी का शिकार हो गई। ये धोखाधड़ी भी उन लोगो ने की जिन्होंने इस बार बैठक कर रंगपंचमी को सुव्यवस्थित मनाने के दावे व वादे किए थे। गेर व फ़ाग यात्राओं के क्रम तय किये थे कि कौन पहले और कौन आखरी में निकलेगी। सबका समय तक तय किया कि इस वक्त तक सम्बंधित गेर या फ़ाग यात्रा को रवाना होना है राजबाड़ा के लिए। कुछ नया व व्यवस्थित करने का दम भरते हुए सबसे बड़ी फ़ाग यात्रा को ही निशाने पर लिया और उसका क्रम व समय बदल दिया। नरसिंह बाजार से निकलने वाली इस यात्रा में सबसे बड़ा जनसैलाब उमड़ता आया हैं। ये यात्रा हर बरस 11 बजे तक रवाना होती हैं। महिलाओं की उपस्थिति इसी यात्रा में रहती है। लिहाजा शुरू से ही फ़ाग यात्रा को रवाना होते होते 11 बज ही जाते हैं। 

शहर को क्यो नही बताया कि समय परिवर्तन 

जिम्मेदारों ने इस फ़ाग यात्रा के लिए एकाएक सुबह 9 30 बजे का समय तय कर दिया और फ़रमान जारी किया कि सबसे पहले आप रवाना हो। प्रचार प्रसार माध्यमो से इसका खूब प्रचार भी हुआ कि इस बार सब समय से और क्रम से होगा। लेकिन न समय पर हुआ, न क्रम से हुआ। न उत्सव में डूबे इंदौर को आगाह किया कि सीएम के आने से सब क्रम व समय मे बदलाव हुआ हैं। लोग 9 30 के हिसाब से घर से निकल गए।

अगर वक्त रहते शहर को बता दिया जाता कि इस बार उत्सव 11 बजे बाद शुरू होगा तो आमजन उसी हिसाब से घर से निकलते। अब लोग तो 9 बजे से रंग खेलने निकले लेकिन रंगों से उनका सामना 3-4 घण्टे बाद हुआ। तब तक हुरियारे या तो उकता गए या अपने अपने इलाके का मजमा छोड़ राजबाड़ा रवाना हो गए।

खामियाजा यात्रा ने उठाया और जिसे सबसे पहले उत्सव मार्ग पर रवाना होना था, वो सबसे लेट हो गई। हालात ये थे कि हिन्दरक्षक की फ़ाग यात्रा जब सीतलामाता बाजार ही पहुँची, तब तक मल्हारगंज से निकली रसिया कार्नर की गैर राजबाड़ा तक होकर शक्कर बाजार के मुहाने तक आ गई। यानी फ़ाग यात्रा के गोरकुण्ड पँहुचने के पहले ही मॉरल क्लब व रसिया कार्नर की गैर का उत्सवी काम खत्म हो चुका था।

  1. इंदौर को अपनी रँगपचमी पर गर्व हैं। फ़ख़्र है इस शहर को अपनी उत्सवधर्मिता पर। गर्व है इस शहर के बाशिंदों को अपने उत्सवप्रेमी होने पर। शहर के उत्सव, शहरवासियों की संस्कृति और संस्कार से जुड़े हैं। वो भी पुरखो समय से। इस परम्परा और संस्कृति को किसी सर्टिफिकेट की जरूरत हैं क्या? अगर है भी तो क्या वह शहर की संस्कृति व परम्परा को ताक में रखकर या बिसराकर लिया जाएगा? 

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