आपकी कलम

सड़क पर कारोबार, फिर हुई निगम व ठेले वालो में तकरार : ठेले वालों और निगम कर्मियों के बीच चले लात घूंसे

नितिनमोहन शर्मा.
सड़क पर कारोबार, फिर हुई निगम व ठेले वालो में तकरार : ठेले वालों और निगम कर्मियों के बीच चले लात घूंसे
सड़क पर कारोबार, फिर हुई निगम व ठेले वालो में तकरार : ठेले वालों और निगम कर्मियों के बीच चले लात घूंसे

नितिनमोहन शर्मा...✍️

सड़क पर सरपट ट्रेफ़िक भी चाहिए और सड़क किनारे क़ब्जे करने की प्रवृत्ति भी कायम रहे...ये एक साथ कैसे संभव हैं? अगर शहर का ट्रेफ़िक में सुधार चाहिए तो सड़क पर क़ब्जे की मानसिकता को वैसे ही तिलांजली देना होगी, जैसे यहां वहां कचरा-गंदगी फैलाने की आदत की दी गई।

40 लाख की आबादी के लिए वैसे ही शहर की सड़कें अब संकरी पड़ गई हैं। उस पर उलटे सड़क घेर कर कारोबार करने की मनोवृत्ति आखिर कब तक? न दुकानदार सड़क तक सामान जमा कर कब्ज़ा करने से बाज आ रहे है और न रोज खाने कमाने वाले सुन रहे हैं। ऐसे में कार्रवाई होने पर विरोध, प्रदर्शन। मारपीट, हाथापाई, गालीगलौज। ये दुःखद तस्वीर अब रोज की बात होती आ रही हैं। देशभर में इंदौर को लेकर क्या सन्देश जा रहा हैं? रत्तीभर विचार तो करे? एक तरफ हम सफाई में देश दुनिया के समक्ष आदर्श है और दूसरी तरफ हम हमारी सड़को को सुगमता के साथ चलने फिरने लायक नही छोड़ रहे। ये एक अच्छे शहरी-नागरिक होने का उदाहरण नही। अच्छे नगर नियोजन के लिए नागरिक बोध भी आवश्यक है कि नही? 

रोज कमाने खाने वालों के लिए कुछ तो बंदोबस्त करना ही होगा इस स्मार्ट सिटी की स्मार्ट नगर निगम को। ये रोज रोज के सड़क पर तमाशे अब अच्छे नही लगते। निगम का अमला " पीली गैंग" कहलाये, अच्छा नही लगता, न ये अच्छा लगता है कि रिमूवल दस्ता " वसूली गैंग" का तमगा पाए। ये सुनना तो और भी दुःखद है कि इंदौर नगर निगम तानाशाही रवैया अपनाए हुए हैं। रोज इंदौर की सड़कों पर, सड़क पर बैठकर खाने कमाने वालों के साथ निगम के अमले की उठापठक देश की सबसे साफ सुथरे शहर की देशभर में अच्छी तस्वीर पेश नही कर रही हैं। पहली नज़र में तो ये नज़ारे देश मे इंदौर नगर निगम की तानाशाही तस्वीर पेश कर रहें हैं कि देखो कैसे नगर निगम वाले गरीबों पर जुल्म कर रहें हैं। कभी अंडे का ठेला पलटा देते है, कभी फल सब्जियों का ठेला उलट देते हैं। इस समस्या का स्थायी निदान अब नितांत आवश्यक हैं। आखिर कब तक रहेड़ी, फुटपाथ और सड़क किनारे खड़े रहकर रोजी-रोज़गार चलाने वालों के ख़िलाफ़ मुहिम चलती रहेगी? क्या सख़्ती ही इस समस्या का समाधान हैं? 

कब तक देश ये नज़ारा देखते रहेगा उस शहर का, जिसे साफ सफाई में देश ही नहीं, दुनिया मे मान मिला हुआ हैं। अपना सामान बचाते लोग, रोते बिलखते पल्ली पकड़े लोग, ठेले से झूमते लोग, अमले से हाथापाई, गालीगलौज करते लोग, सरकार को कोसते लोग? आखिर कब तक? सोमवार को भी वही हुआ, जो बरसो बरस से शहर में हो रहा है। न सड़क घेरकर व्यापार करने वाले बाज आ रहे ह और न निगम की कार्रवाई के तौर तरीके बदल रहे हैं। बार बार की ताक़ीद के बाद भी जब सड़क पर कब्ज़ा करने वाले नही मानते तो निगम के अमले का बिफरना भी वाजिब है। लेकिन गुस्से पर काबू भी जरूरी हैं। खासकर उस वक्त, जब आप एक तरह से किसी की " रोजी रोटी" ही छीन रहे हो।

हर बार निगम का अमला ही गलत हो, ये भी नही हैं। लेकिन वह बदनाम ही अपनी कार्यशैली के चलते हो जाता हैं। अमला ये भूल जाता है कि वह " पुलिस" नही हैं।लिहाजा उसे बल प्रयोग का अधिकार नही है। उन लोगो तो क़तई अधिकार नही, जो अमले के प्रभारी है या फिर दस्ते के अधिकारी। जब अफसर ही मारपीट पर उतर आएगा तो फिर न्याय किससे मिलेगा? सोमवार को भी हरसिद्धि टर्न पर यही हुआ। अमला तो अमला, अफसर भी हाथ छोड़ बैठे। ऐसे ने आम आदमी का गुस्सा निगम के खिलाफ नही बढेगा तो क्या होगा?

आखिर ये सिलसिला कब थमेगा? विचार उन लोगो को भी अब करना जरूरी है जो सहानुभूति के नाम पर शहर के यातायात का कचूमर निकाल रहे हैं। एक तरफ शहर को सुगम यातायात भी चाहिए और दूसरी तरफ बीच सड़क तक ठेले खड़े रहकर सड़क घेरते लोगो पर कार्रवाई भी नही चाहिए। ये दोनों काम कैसे एक साथ हो सकते है? अगर ट्रेफ़िक की समस्या से निज़ात पाना है तो सड़क पर कब्जे की आदत को भी तिलांजलि देना होगी। बजाय इस प्रवृत्ति को अधिकार बनाने के। आख़िर इंदौर की अब बड़ी समस्या ट्रेफ़िक ही तो रह गई है न? तो फिर इस समस्या से निजात पाने के प्रयास भी वैसे ही हम सबको हिलमिलकर करना ही होंगे, जैसे स्वच्छता अभियान के वक्त हम सब साथ आये थे। अन्यथा ऐसे कैसे शहर की सड़कें चलने फिरने लायक होगी? बाजार वाले सड़क तक समान जमाये। दुकानदार फुटपाथ तक कब्जा कर ले। सड़क के किनारे ठेले खड़े कर ले। खाने पीने के खोमचे खड़े कर ले। इस सब अराजकता से क्या अकेला नगर निगम निपट लेगा? निपटेगा तो फिर बदनाम होगा। जैसा कल की कार्रवाई के बाद फिर हो रहा है। 

20-25 साल बीते, कहां है हॉकर्स झोन? 

क्या ये पहली नगर निगम है जो इस समस्या से जूझ रही हैं? कैलाश विजयवर्गीय से लेकर कृष्णमुरारी मोघे और डॉ उमाशशि शर्मा से मालिनी गौड़ तक ने इस समस्या का सामना किया। अब पुष्यमित्र भार्गव का दौर आ गया। यानी 20-25 साल बीत गए, सड़क से ठेले, क़ब्जे, अतिक्रमण, दुकानदारों की सड़क तक समान जमाने की ये समस्या यथावत हैं। आखिर इस समस्या के स्थायी समाधान की बाते जुबानी जमा खर्च से बाहर क्यो नही से रही है। हर महापौर के कार्यकाल में रोज कमाने खाने वालों के लिए अलग से स्थान चिन्हित करने की बातें होती है। दावे होते है कि इन लोगो को सुविधापूर्ण स्थान दिया जाएगा जहां इन्हें कोई नही सताएगा। हॉकर्स जोन... ये शब्द सुनते सुनते दो दशक बीत गए। कहा है ये जोन?

शहर के किस वार्ड में झोंन ने आकार लिया? एकमात्र जिंसी हॉट मैदान तैयार हुआ लेकिन किस काम का? करोड़ो बर्बाद ही हुए एक तरह से जिंसी हाट मैदान में। न वहां ये रोज कमाने खाने वाले जाने को राजी हुए न निगम मध्य शहर की जब्जी मंडियों को वहां शिफ्ट कर पाया। करोड़ो की लागत का ये बाज़ार स्थानीय लोगो के अतिक्रमण का शिकार हो अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा हैं? शांतिपथ, निगम के पिछले गेट के सामने से जाता हुआ लम्बा चौड़ा रास्ता भी तो हॉकर्स झोंन के रूप में खूब प्रचारित हुआ था न? क्या हुआ, सिवाय मच्छी बाज़ार वहां शिफ्ट होने के। ऐसी कितनी ही लम्बी फेहरिस्त है ऐसे दावों ओर वादों की लेकिन ये कागज़ पर से जमीन पर नही उतरे।

बाज़ार भी सुधरे, रेहड़ी वाले भी समझे 

आखिर हर बार दोष नगर निगम वालो का ही हो, ऐसा नही है। आखिर बाज़ार वालो को भी सुधरना होगा। दुकानों के आगे बढ़ाकर सामान बार बार मनाही के बाद क्यो जमाया जाता है? फिर निगम कार्रवाई करने आता है तो संगठित हो विरोध पर उतर आना आखिर कब तक? सड़क किनारे खड़े रहकर रोज कमाने खाने वालों को भी ये समझना होगा कि 40 लाख की आबादी वाले शहर में, उसकी सड़को पर इस तरह आधा घेरकर कारोबार करना कहा तक उचित है? कल जिस हरसिद्धि टर्न पर कार्रवाई की गई, क्या शहर के आम आदमी को नही पता कि उस सड़क का ठेलो के कारण क्या हाल है? ऐसे ही हाल लाख मनाही के बाद मालगंज से लेकर राजमोहल्ला चोराहे तक है। कृष्णपुरा से लेकर फ्रूट मार्किट, बख्शी गली राजबाड़ा तक है। जब शहर में ट्रेफ़िक सुधार की मुहिम चंल रही है तो क्या शहर के नागरिकों का इस काम मे कोई कर्तव्य बोध नही? ठेले वाले, रेहड़ी वाले क्या शहर के नागरिक नही? हर बार " जुल्म" की आड़ में कर्तव्य बोध नही बिसराया जा सकता।

  • सड़क पर कारोबार, फिर हुई निगम व ठेले वालो में तकरार. 
  • सख़्ती ही उपाय नही, कहां है हॉकर्स झोन?. 
  • रोज खाने-कमाने वालों का कुछ तो बंदोबस्त हो. 
  • हरसिद्धि टर्न पर मुनादी के बाद ठेले जब्त करने पहुँचे निगम अमले का हुआ विरोध. 
  • दोनों पक्ष ने पुलिस में दर्ज कराया मामला. 
  • सुगम यातायात के लिए निगम व जिला प्रशासन की शहर में चल रही मुहिम,सड़क पर कब्ज़ा तो होगी कार्रवाई. 
  • मालगंज से राजमोहल्ला चौराहे तक भी ठेलो की भरमार, फ्रूट मार्केट के भी ये ही हाल. 

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