धर्मशास्त्र
धार्मिक : पुस्तक आकाश गीता पृष्ठ 108 : जगदीश भाई आकाश
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कृष्ण कहते है. हे भारत! इस तमस को प्रकाश से भरना है. पार्थ ! तमस का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता है. वह तो प्रकाश को आत्मसात करके प्रकाश मय हो जाता है. उसी तरह जिस तरह रावण कंस जैसे कई तामस जब अंतिम समय में मुझ प्रकाश का साक्षात्कार के प्रकाशमय हो गये. इसलिये तमस का अंधकार जो संपूर्ण चेतना पर आच्छादित हो रहा है, उसे दृढ़ भक्ति और दृढ़ ज्ञान से प्रकाशित करके संपूर्ण कर्मों को क्षय करके केवल्य केवल केवल्य निर्वाण को प्राप्त करके प्राणों के उस आश्रय का आनंद लेवे जो एक ही ध्वनि दशम द्वार तक गहन गुफाओं से होती हुई, वायु मंडल से आकाश जगदीश आकाश तक टकराती हैं. ध्यानी, योगी, लेखक जिसके हाथ में केवल उसकी गीता को कृष्ण को ह््रदय में धारण करने वाली माताजी सोहनी देवी पिताजी ध्यानस्थ शिव योगी मदनलालजी की ध्वनि निरंतर सोहम सोहम ओम नमः शिवाय का उद्घोष करती हैं. प्राण चेतना उच्च चेतना से गतिकर के प्राणियों की चेतना में ज्ञान भक्ति का प्रकाश भर रही है. हे पार्थ ! जीव का स्वभाव जिस तरह अभ्यासवत जन्म जन्म की यात्रा विभिन्न जीवो की योनियों की यात्रा करता हुआ गुजरता है. उसके स्वभाव की यात्रा जो उसके जन्म जन्म के अभ्यास से उसने तय की हैं.
● क्रमश : विभिन्न योनियों का स्वभाव उस जीव के मनुष्य योनि धारण करने पर भी बना रहता है. मात्र सत्संग और भक्ति से ही स्वभाव परिवर्तित होकर उच्च मनुष्य चेतना या मनुष्योतर चेतना की ओर अग्रसर होता हैं और मनुष्य या देव शरीर प्राप्त करता हैं.
● फोटो प्रेषित - कान्हा दौहित्र : रमेश पहलवान उस्ताद, कालाकोट मुक्तिधाम अखाड़ा कोटा, राज.
● साभार : जगदीश भाई आकाश
नारायण सेवा संस्थान-उदयपुर, राजस्थान
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