धर्मशास्त्र

मंदिर जाएं तो कुछ देर मूर्ति के सामने जरूर बैठना चाहिए, जानिए क्यों?

paliwalwani
मंदिर जाएं तो कुछ देर मूर्ति के सामने जरूर बैठना चाहिए, जानिए क्यों?
मंदिर जाएं तो कुछ देर मूर्ति के सामने जरूर बैठना चाहिए, जानिए क्यों?

|| जय श्री राम जय श्री कृष्ण ||

  व्यास उज्जैन से-

मूर्ति का उपयोग सीढ़ी के रूप में किया जा सकता है। पर उस मूर्ति में ही मत अटक जाइए। भगवान आपके भीतर है। इसीलिए, मंदिर जाते समय भगवान की प्रतिमा देखने के बाद कुछ समय स्वयं के साथ बैठने की प्रथा थी।

व्यक्ति को मंदिर से नहीं आना चाहिए बिना कुछ क्षण बैठे बिना। पुराने समय में, मूर्ति को अंधेरे में रखा जाता था, जिसे गर्भ गृह कहते थे। आप तभी भगवान की मूर्ति का चेहरा देख सकते थे, जब उसे दिए की रोशनी से दिखाया जाए। इसलिए कि भगवान आपके मन की गहराईयों में बसता है। यह बात ध्यान में रहनी चाहिए।लोग प्रतिमाओं को बहुत सुंदरता से सजाते हैं। उद्धेश्य यह है कि आपका मन यहां वहां न भटके और आप पूर्ण रूप से उस प्रतिमा से मोहित हो जाएं। यह बाजार में जाने जैसा है। बहुत से लोग अभी भी बाजार बस घूमने और देखने जाते हैं।

वे सब सुंदर वस्तुएं देखते हैं और अच्छा अनुभव करते हैं।क्यों? क्योंकि मन सुंदर वस्त्रों, अच्छी महक, फूल, फल और बढ़िया खाने की ओर आकर्षित होता है। हमारे पूर्वज यह जानते थे, इसलिए, वे ये सब वस्तुएं मूर्तियों के समीप रखते थे। वह मन को इन्द्रियों के रास्ते पुनः वापस लाते थे। और उसे भगवान की ओर केंद्रित करते थे।इसलिए भगवान की मूर्ति को सजाते हैं।

बौद्ध धर्म में भी इसी प्रकार से मन को वश में किया जाता है। इसी लिए वे भगवान बुद्ध की और बोधिसत्व की अति सुंदर प्रतिमाएं बनाते हैं, हीरे, पन्ने, स्वर्ण और चांदी के साथ। वे फल फूल, अगरबत्ती, मिठाई इत्यादि मूर्ति के सामने रखते हैं।ताकि मन और सारी इंद्रियां ईश्वर पर केंद्रित हो जाएं। एक बार मन ठहर जाता है, वे आपको आंखें बंद कर के ध्यान करने को कहते हैं। यह दूसरा कदम है। ध्यान में आप भगवान को स्वयं में पाते हैं। एक बहुत सुंदर श्रुति है वेदांत में।

जब कोई व्यक्ति पूछता है, भगवान कहां है?” बुद्धिमान व्यक्ति उत्तर देते हैं, मनुष्यों के लिए प्रेम ही भगवान है। कम बुद्धिमान उन्हें लकड़ी और पत्थर की मूर्तियों में देखते हैं। पर बुद्धिमान लोग भगवान को स्वयं में देखते हैं। देखिए, चाहे पूजा में बहुत से विस्तृत कार्य बताए जाते हैं, हमें उन सबको करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि जब हम ध्यान करते हैं तो हमें दिखता है कि सब कुछ वह ईश्वर ही है।

लेकिन प्राचीन परंपराओं को बनाए रखने के लिए हमें यह सब रीतियां और रस्में करनी चाहिए। इस लिए, हमें नियम से दिया जलाना चाहिए, भगवान को पुष्प अर्पित करने चाहिए। ताकि हमारे बच्चे इस सब से कुछ सीखें और आने वाली पीढि़यां भी हमारी प्राचीन परंपराओं और संपन्न संस्कृति से अवगत हों।

|| महाकाल भक्त मंडली ||

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