धर्मशास्त्र
पश्चाताप का बोझ कब तक उठाओगे
Paliwalwaniसंपादकीय द्वारा श्री श्री रवि शंकर
पश्चाताप कोई सुखद अहसास नहीं है लेकिन इस भावना का भी अपना एक विशिष्ट उद्देश्य होता है। अगर आपके भीतर यह भावना विकसित होती है तो निश्चित तौर परा यह आपको अपना और दूसरों का नुकसान करने से रोकेगी। जब कभी समान स्थितियाँ उपस्थित होंगी तब पश्चाताप या गिल्ट की भावना ही है जो आपको दोबारा वैसा करने से रोकेगी। सही मात्रा में गिल्ट होना सकारात्मक है, लेकिन यह केवल उसी क्षण तक ही होना चाहिए। क्योंकि जब इसे दिमाग और जहन में रखकर आगे बढ़ा जाता है तो यह एक दीमक की भांति आपको अंदर तक खोखला बना सकता है।
आपको पश्चाताप की भावना से बाहर निकलने में निपुण तो होना चाहिए लेकिन साथ ही आपको यह भी ध्यान रखना चाहिए कि आप पूरी तरह उसे हटा ना दें। ऐसा तभी होगा जब आप यह समझेंगे कि आपके द्वारा किए गए कार्यों के लिए केवल आप ही जिम्मेदार नहीं हैं।
कुछ हद तक अपने भीतर पश्चाताप की भावना रखना आपके लिए सही है, क्योंकि यह आपके संबंधों को बनाए रखती है। यह भावना आपको पूर्व में किए गए गलत कार्यों में दोबारा शामिल होने से रोकती है।
गलती एक ऐसी चीज है जो आपको हर समय चुभती है। यह भावना आपकी चेतना तक पहुँचकर उस गलती को दोबारा होने से रोकती है। आपको अपने भीतर वह चुभन रखनी चाहिए ताकि पश्चाताप की भावना आपको परेशान ना करे। जब आप ऐसा कर पाने में सफल हो जाएंगे तब बौद्धिक क्षमता की परिपक्वता जाहिर होगी, अन्यथा आप कभी अपने कृत्यों की गंभीरता को समझ नहीं पाएंगे।
जिस व्यक्ति ने वह गलती की थी उसने अपना बैग पैक कर लिया है और वह यहाँ से जा चुका है। अब, आपके भीतर एक नया इंसान है जिसे अपनी गलती का एहसास है और उसे सुधारने की ललक। वर्तमान क्षण की खूबसूरती की कद्र करें।
स्वयं श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था "मैं तुम्हें तुम्हारे सभी पापों से मुक्त कर दूंगा, तुम बस मेरी शरण में आजाओ। इसके बाद यह मेरा कर्तव्य कि मैं तुम्हारे उन पापों के लिए क्या करता हूँ। चिंता मत करो, जो कुछ भी तुम्हारे भीतर है उसे बाहर निकाल दो-तुम्हारा धर्म भी। जो चीज तुम्हें बांधकर रखती है उससे मुक्त हो जाओ, उन्हें छोड़कर मेरे पास आजाओ"।