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जम्मू कश्मीर विधानसभा में 370 निरस्तीकरण के खिलाफ प्रस्ताव जल्द : एनसी और भाजपा विधायकों के बीच तीखी नोकझोंक
paliwalwaniजम्मू-कश्मीर. छह साल में जम्मू-कश्मीर विधानसभा का पहला सत्र विवादों के बीच शुरू हुआ, जिसमें मुख्य रूप से अनुच्छेद 370 की बहाली की मांग पर ध्यान केंद्रित किया गया.
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने विधानसभा को संबोधित करते हुए आंशिक रूप से जनता की भावनाओं को प्रतिध्वनित करते हुए जम्मू-कश्मीर के लिए पूर्ण राज्य का दर्जा और संवैधानिक गारंटी बहाल करने के प्रयासों के लिए प्रतिबद्धता जताई. उन्होंने राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए लोगों की प्रबल आकांक्षाओं को स्वीकार किया.
एक दशक में पहली बार चुनाव के बाद विधानसभा की बैठक हुई. घाटी में पिछले 19 दिनों में उग्रवादी हिंसा भड़की हुई है, जिसके परिणामस्वरूप 18 लोगों की मौत हो गई है और एक दर्जन से अधिक लोग घायल हो गए हैं.
उपराज्यपाल ने सदन में कहा कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में मंत्रियों ने हाल ही में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया है जिसमें राज्य का दर्जा तत्काल बहाल करने की मांग की गई है.
उन्होंने कहा, ‘यह प्रस्ताव निर्वाचित प्रतिनिधियों की सामूहिक इच्छा को दर्शाता है, जो पूर्ण लोकतांत्रिक शासन की बहाली के लिए लोगों की आकांक्षाओं को दिखाता है.’ इस सत्र में वरिष्ठ नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) नेता अब्दुल रहीम राथर का निर्विरोध अध्यक्ष के रूप में निर्वाचन भी देखा गया.
जब पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के विधायक वहीद पारा ने अनुच्छेद 370 को हटाने के विरोध में प्रस्ताव पेश किया तो भाजपा विधायकों ने इसका विरोध किया, जिससे अव्यवस्था फैल गई और अन्य सदस्य उनके समर्थन में एकजुट हो गए.
पारा ने सदन को उस समय हैरान कर दिया जब वह राथर के निर्वाचन पर बोलने के लिए खड़े हुए, लेकिन उन्होंने विशेष दर्जा और अनुच्छेद 370 को हटाने के खिलाफ 2019 का संसदीय प्रस्ताव पढ़ा. इस प्रस्ताव पर पीडीपी के तीन विधायकों ने हस्ताक्षर किए थे.
भाजपा की ओर से तत्काल प्रतिक्रिया आई और उन्होंने मांग की कि पारा का माइक्रोफोन बंद कर दिया जाए. अध्यक्ष ने हस्तक्षेप करते हुए भाजपा सदस्यों से अनुरोध किया कि वे दस्तावेज की समीक्षा करते समय धैर्य रखें.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पारा ने जेब से एक पत्र निकालकर अध्यक्ष को सौंपने से पहले कहा, ‘यह जम्मू-कश्मीर के इतिहास की सबसे कमजोर विधानसभा है.’
प्रस्ताव के साथ संलग्न पत्र में लिखा था, ‘हम अत्यंत सम्मान के साथ अनुरोध करते हैं कि संलग्न प्रस्ताव पर चर्चा की जाए. हालांकि सदन का एजेंडा तय हो चुका है, लेकिन हमारा मानना है कि अध्यक्ष के तौर पर आपका अधिकार इस प्रस्ताव को शामिल करने की अनुमति देता है, क्योंकि यह आम लोगों की भावनाओं को दर्शाता है.’
प्रस्ताव पेश करते हुए पारा ने कहा, ‘यह सदन जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के माध्यम से जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने और जम्मू-कश्मीर को संवैधानिक रूप से कमजोर करने का विरोध करता है और इसे पूरी तरह से रद्द करने की मांग करता है. सदन जम्मू-कश्मीर को दिए गए विशेष दर्जे और सभी संवैधानिक गारंटियों को उनके मूल, प्राचीन स्वरूप में बहाल करने के लिए प्रयास करने का संकल्प लेता है.’
पारा को पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद गनी लोन और कुछ निर्दलीय विधायकों सहित अन्य विधायकों का समर्थन मिला.
हंगामा जारी रहने पर सीएम उमर ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि 5 अगस्त, 2019 को लिए गए निर्णयों को जनता की स्वीकृति नहीं थी, लेकिन पारा के प्रस्ताव को पब्लिसिटी स्टंट बताया.
उमर ने कहा, ‘एक माननीय सदस्य यह फैसला नहीं कर सकते और इसका कोई महत्व नहीं है. इस सत्र में क्या होगा, इसका फैसला सत्ता पक्ष करेगा… प्रस्ताव का कोई महत्व नहीं है क्योंकि दुर्भाग्य से यह कैमरों के लिए एक शो के अलावा कुछ नहीं है.’
उन्होंने कहा कि विधानसभा जम्मू-कश्मीर के लोगों की भावनाओं को दर्शाती है. उन्होंने कहा, ‘सच तो यह है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों ने 5 अगस्त, 2019 के फ़ैसलों पर अपनी मुहर नहीं लगाई है. अन्यथा नतीजे अलग होते. बहुमत (विधानसभा में) उन लोगों के पक्ष में है जिन्होंने 5 अगस्त के फ़ैसलों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई.’
बाद में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने संकेत दिया कि इस निरस्तीकरण के खिलाफ प्रस्ताव जल्द ही लाया जाएगा. इसी बीच, एनसी और भाजपा विधायकों के बीच तीखी नोकझोंक हुई और सत्तारूढ़ पार्टी के विधायकों ने मुख्यमंत्री के भाषण में बाधा डालने के लिए विपक्ष की आलोचना की, जिसके कारण सदन की कार्यवाही कुछ देर के लिए स्थगित करनी पड़ी.
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘यह पीडीपी विधायक (पारा) द्वारा किया गया एक बहुत ही चतुराईपूर्ण प्रयास था, जिसका स्पष्ट उद्देश्य प्रस्ताव पेश करने के सरकार के कदम को विफल करना था.’
उल्लेखनीय है कि 5 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार ने संसद में एक प्रस्ताव लाकर जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा और स्वायत्तता प्रदान करने वाली अनुच्छेद 370 की अधिकतर धाराओं को निरस्त कर दिया था. अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद जम्मू और कश्मीर (पुनर्गठन) अधिनियम 2019 प्रभाव में आया और इसके परिणामस्वरूप जम्मू कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया गया था.
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में अनुच्छेद 370, 35ए और राज्य का दर्जा बहाल करने का वादा किया था.