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क्या आप जानते है क्यों सुभाषचंद्र बोस को भारत की आजादी का सबसे बडा नायक माना जाता हे, शायद ही कोई जनता होगा उनके यह संघर्ष
Paliwalwani23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में एक बांग्ला परिवार में जन्मे सुभाष अपने देश के लिए हर हाल में आजादी चाहते थे, उनके संघर्षो से देश और दुनिया बखूबी वाकिफ हे। उन्होंने देश विदेश में पढाई की थी, कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने, कोलकाता के मेयर भी रहे.
उनको लगा की सत्याग्रह के माध्यम से अंग्रेज सरकार पे दबाव नहीं बनाया जा सकता इसके लिए सशत्र संगर्ष करना पडेगा फिर उन्होंने कांग्रेस का साथ छोडा और द्वितीय विश्व युद्ध मे फसी अंग्रेज सरकारके सामने नेताजी ने आजाद हिन्द फौज की रचना की जिसे दुनिया के 9 देशों ने मान्यता भी दी थी। उन्होने देश मे सन्देश दिया की आजादी दी नहीं जाती ली जाती है और कुछ ही वक्त मे उन्होंने अन्डोमर निकोबार को आजाद करके 1943 मे भारत का राष्ट्रध्वज फहराया। भारत के रजवाडो से और जनता से आजाद हिन्द फौज को भरी मात्रा मे फंडिंग मिला जिससे देखते ही देखते आजाद हिन्द फौज एक मजबूद फ़ौज बन गई. उन्होंने सेना को सूत्र दिया की “आज हमारी एक ही इच्छा होनी चाहिए मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके – एक शहीद की मृत्यु का सामना करने की इच्छा, ताकि शहीद के खून से स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त हो सके।”
एक रिपोर्ट के मुताबित ब्रिटैन के वडाप्रधान एटली ने नेताजी को बताया भारत छोड़ने का और देश को आजादी देने का सबसे बडा कारन बताया. क्लीमेंट एटली आजाद भारत में अपने प्रवास के दौरान कलकत्ता राजभवन के अतिथि बतौर रुके थे. उस दौरान एटली और जस्टिस चक्रवर्ती मे चर्चा हुई थी. उन्होंने पूछा था जब भारत छोड़ने के लिए तात्कालिक कोई दबाव नहीं था, तो अंग्रेज सरकार ने भारत को आजादी देने का फैसला तुरत क्यों किया?’ इसके जवाब में क्लीमेंट एटली ने कई कारण बताये थे, जिनमे एक बड़ा कारण सुभाष चंद्र बोस और उनकी आजाद हिंद फौज की वजह से अंग्रेज सेना मे पैदा हुई बगावत थी. अंग्रेज सर्कार एक और युद्ध नहीं जेल सकती थी.
इस रिपोर्ट के मुताबित हिन्द छोडो आंदोलन जो की गांधी जी ने शुरू किया था उसका कोई दबाव अंग्रेज सरकार पे नहीं था, उनका का योगदान (m-i-n-i-m-a-l) बताया था. अंग्रेजों के भारत छोड़ने के कारणों पर इस बड़े रहस्योद्घाटन का पहला सार्वजनिक जिक्र या प्रकाशन इंस्टीट्यूट ऑफ हिस्टॉरिकल रिव्यू ने 1982 में किया था.डॉ आंबेडकर ने भी बताया था कि अंग्रेजों का नेताजी सुभाष चंद्र बोस की सेना ने ने ब्रिटिश भारतीय सैनिकों को विद्रोह करने के लिए एक बल दिया था. अंग्रेजो मे विद्रोह का डर और एऩआईए का खौफ ही अंग्रेजों के निर्णय पर खासा हावी रहा. नेताजी का प्रचलित भाषण जिसमे उन्होंने कहा था की “यह खून ही है जो आजादी की कीमत चुका सकता है। तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा!”
वही कही विशेषज्ञों का मानना था की आजाद हिंद फौज के अधिकारियों को गिरफ्तार कर उन्हें जो कडी यातनाये दी गई, राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाया गया और कही क्रांतिकारियों को फांसी चढा दिया जिससे भारत मे एक गुस्सा पनप उठा साथ ही ब्रिटेन के तहत भारतीय सेना मे यह गुस्सा साफ दिखने लगा. यह सेना ब्रिटेन के द्वारा ट्रैन थी साथ ही उनके पास विश्व युद्ध लडने का अनुभव था जिससे उनके विद्रोह का खौफ बर्तानिया हकूमत पर बढता जा रहा था. फरवरी 1946 मे रॉयल इंडियन नेवी में कार्यरत लगभग 20 हजार नौसैनिकों ने ब्रिटैन की हुकूमत के खिलाफ विद्रोह कर दिया अब खौफ हकीकत मे बदल गया था. सेना की मांग उठी की आजाद हिन्द फौज पे हो रहे हत्याचारों को तुरंत बंध किआ जाये.
उसके कुछ की वक्त मे नेवी के विद्रोह से प्रेरित होकर रॉयल इंडियन एयर फोर्स और जबलपुर की ब्रिटिश सशस्त्र सेना में भी बगावत हो गई.सैन्य खुफिया रिपोर्ट्स में बताया गया की लाखो की तादात मे निवृत हुए दूसरे विश्व युद्ध के सैनिक भी विद्रोह मे जुडने की सम्भावना हे इसको लेकर गंभीर चेतावनी दी गई थी. रिपोर्ट मे यह भी कहा गया की भारतीय सैनिक अंग्रेज सैन्य अधिकारियों का आदेश मानने से इनकार कर रहे हे. ऐसे में अंग्रेजों के पास भारत को आजाद करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था.
आपको बता दे की 1942 से 1945 तक जापान के साथ मिलके नेताजी ने दक्षिण एशिया के कही देशो मे आजाद हिन्द फौज को मजबूत किया था और अंग्रेजो को कडी टक्कर दी थी. नेताजी ने सरकार भी बनाई थी जिसे ‘अर्जी हुकुमते-आजाद हिंद’ कहा था, इसे निर्वासित सरकार भी कहा जाता है और वह इस तरीके से पहले वडाप्रधान भी बने थे। जापान ने अंडमान-निकोबार द्वीप को भी नेताजी की अगुवाई वाली आजाद हिंद सरकार को सौंप दिया था। जहा से वह भारत की आजादी की लडाई लड़ते रहे, आजाद हिन्द फ़ौज की बैंक भी बर्मा, सिंगापूर और भारत मे बनाई गई थी, जिस पर नेताजी की फोटो लगी रहती थी. उन्होंने सालो पहले कहा था “एक व्यक्ति एक विचार के लिए मर सकता है, लेकिन वह विचार, उसकी मृत्यु के बाद, एक हजार जन्मों में अवतरित होगा।” “भारत के भाग्य में अपना विश्वास कभी मत खोना। पृथ्वी पर कोई शक्ति नहीं है जो भारत को बंधन में रखे। भारत स्वतंत्र होगा, और वह भी जल्द ही।”आज यह बात सच होक आजाद भारत के सामने हे, जहा नेताजी का १२५ व जन्मजयंती धामधूम से मनाया जा रहा हे.