इंदौर

डीएवीवी ऑडिटोरियम में नाट्य महोत्सव के अंतिम दिन अंतिम सत्र में तीन प्रभावी नाटक खेले गए

मिर्ज़ा ज़ाहिद बेग़
डीएवीवी ऑडिटोरियम में नाट्य महोत्सव के अंतिम दिन अंतिम सत्र में तीन प्रभावी नाटक खेले गए
डीएवीवी ऑडिटोरियम में नाट्य महोत्सव के अंतिम दिन अंतिम सत्र में तीन प्रभावी नाटक खेले गए

1-शतरंज के मोहरे

नोकरी करने गाँव से शहर में आये युवक सज्जन को एक बुज़ुर्ग दम्पति अपने घर में आश्रय देते हैं। बुज़ुर्ग अण्णा साहब शतरंज के शौकीन होकर अनुशासन पसन्द हैं। उनकी पत्नी नाम के अनुरूप दयावान है।  समय के साथ उनकी सज्जन से आत्मीयता बढ़ती जाती है। दम्पति सज्जन में अपने खोए लड़के को महसूस करने लगते हैं।

अन्ना साहब सज्जन के प्रति बहुत पजेसिव हो जाते हैं। कठोर प्रतिबंधों से सज्जन उकता जाता है और मकान छोड़ कर जाने लगता है। अण्णा टूट से जाते हैं पर प्रत्यक्षतः कठोर बने रहते हैं। अंततः शतरंज की मोहरों के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि बिना प्यादे के राजा और बिना राजा के प्यादे का कोई अस्तित्व नहीं है। मनुष्य जीवन भी इसी प्रकार है। सुखान्त नाटक में सज्जन घर छोड़ कर नहीं जाता उनके साथ ही रहता है।

पथिक नाट्य समूह द्वारा खेले गए सतीश क्षोत्रिय के लिखे और निर्देशित किये गए इस एकल नाटक में राहुल प्रजापति ने स्वयं के अतिरिक्त बुज़ुर्ग मकान मालिक अण्णा साहब,उनकी धर्मपत्नी दया मौसी और मित्र रमाकांत की भूमिका का दक्षता के साथ निर्वहन कर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

पल-पल बदलती भूमिका के अनुरूप आवाज़, अंदाज़ और एंगल बदल कर उन्होंने अभिनय के नए प्रतिमान स्थापित किये। अन्ना की भूमिका में उनके अभिनय की रेंज देखते ही बनती थी। स्वाभाविक था कि नाटक की समाप्ति पर उन्हें दर्शकों का स्टैंडिंग ओवेशन मिला। बैकग्राउंड म्यूजिक मिलिंद का और प्रकाश संयोजन योगेश का था। दोनों ने नाटक के समग्र प्रभाव में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

2-द चेंज

विश्वास पाटिल द्वारा लिखित , पंकज वागले द्वारा निर्देशित नवरंग उत्सव के इस ड्रामे का संदेश था कि लड़कियाँ जितना डरेंगी बदमाश लड़के उन्हें उतना ही डराएंगे और शोषण करेंगे। वे जितना डर को ओढ़ेंगी डर उतना ही उनकी उन्मुक्त उड़ान में बाधा बनेगा।  

यह कहानी 4 होस्टलर रूम मेट कॉलेज़ गर्ल्स की है।   बबली को उसके कस्बे का साइको क्लास मेट लड़का सड़कों पर प्रताड़ित करता रहता है और उसके साथ शादी करना चाहता है । बबली के अलावा सब लड़कियाँ मॉडर्न और साहसी हैं। ये साथी लड़कियाँ बबली को पोलिस रिपोर्ट करने को कहती हैं पर परिवार और समाज से डरी बबली सहमत नहीं होती और घुट-घुट कर जीती रहती है।

चेन्ना नामक एक अन्य रूम मेट लड़की का अपने बॉयफ्रेंड से ब्रेकअप हो जाता है। फिर भी उसके इस पूर्व बॉयफ्रेंड को चेन्ना का किसी अन्य लड़के के साथ मिलना-जुलना पसन्द नहीं आता। वह एक दिन पेट्रोल लेकर होस्टल में उनके रूम में आ धमकता है और चेन्ना को जलाने की धमकी दे कर उसे बलात अपने साथ ले जाना चाहता है। बहादुर चेन्ना उसके सामने निरीह कबूतरी बन कर गिड़गिड़ाती है। सारी रूम मेट लड़कियाँ सहमी सी देखती रहती हैं पर बबली से (जो ख़ुद डरपोक है और साइको क्लास मेट लड़के से प्रताड़ित होती रहती है) अपनी फ्रेंड चेन्ना का गिड़गिड़ाना नहीं देखा जाता।

यकायक उसका नारीत्व जाग उठता है,उसमें चेंज आता है और उसका सुप्त साहस लौट आता है। वह चेन्ना के बॉय फ्रेंड को करारा थप्पड़ जड़ उससे पेट्रोल की बॉटल छीन लेती है और उस पर  छिड़क कर आग लगाना चाहती है। आततायी लड़के के होश फ़ाख्ता हो जाते हैं और वह रूम से भाग जाता है।

निर्देशक ने गर्ल्स हॉस्टल की लाईफ,लड़कियों की आपसी चुहलबाज़ी और शरारत से स्टेज पर ही कॉलेज़ गर्ल्स की दुनिया रच दी। इसमें उन्हें सहयोग दिया प्रभावी ध्वनि और प्रकाश संयोजन ने। सभी गर्ल्स ने बेहतरीन अभिनय किया पर बाज़ी मारी  चेन्ना और बबली का क़िरदार निभा रही लड़कियों ने। प्ले की समाप्ति पर प्ले के संदेश को आत्मसात करते हुए आडिटोरियम में उपस्थित सैकड़ों कॉलेज़ गर्ल्स ने तालियों से उनका अभिवादन किया।

3-एक्ट

इंस्पेक्टर तारा को रेल्वे स्टेशन के पास एक गुमसुम और ख़ुद की पहचान न देने वाली युवती मिलती है। तारा उससे हर सम्भव क़ोशिश करती है कि वह बोले,बात करे पर युवती चुपचाप एक कौने में पड़ी रहती है कोई प्रतिक्रिया नहीं देती और न किसी को पहचानती है। इंस्पेक्टर तारा का अनुभव और स्त्री सुलभ बोध तारा को बताता है कि इस लड़की के पास कहने लायक कुछ बहुत सनसनीखेज़ आपबीती है जिसने उसे पत्थर बना दिया है। उसे बुलवाने के लिए तारा को लगता है कि यदि वैसी ही परिस्थिति निर्मित की जाए जिससे वह लड़की गुज़री थी तो शायद वह फूट पड़े।

तारा एक डॉक्टर की मदद लेती है। अंततः  वह एक 'एक्ट' करते हैं जिससे उस युवती  का कारुणिक दर्दनाक़ अतीत सामने आ जाता है। उस 'एक्ट' से लड़की की आवाज़ तो लौट आती है पर समाज  निःशब्द और दर्शक अवाक हो जाते हैं। दरअसल उस युवती का बाप उसे गाँव से शहर लाकर वेश्यावृति में उतार देता है। एक दिन जब उसका बाप ही उसके साथ व्यभिचार करना चाहता है तो लड़की उसकी हत्या कर देती है।

योगेश सोमण द्वारा लिखित और अभिनय देशमुख द्वारा निर्देशित अविरत नाट्य समूह के इस प्ले में युवती की भूमिका में अनिष्का पल्लवी दर्शकों की करुणा लूट ले गई। इंस्पेक्टर तारा की भूमिका में योजना दिघे ने भी बेहतरीन अभिनय किया। ध्वनि संयोजन हार्दिक और प्रकाश योजना वेदांत की थी। बेहतरीन मंच संयोजन वंशिका,शिवम,और रुचिका का था। ये सभी के सम्मिलित प्रयास थे कि पूरे समय दर्शक अपनी सीट से बंधे रहे।

नाट्य समीक्षा : मिर्ज़ा ज़ाहिद बेग़ 

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