इंदौर
पालीवाल परिवार की सादगी अद्भूत : दीपावली पर 1982 से अभिषेक ब्रिक्स की अनूठी परंपरा
नैवेद्य पुरोहित
प्रेम सेवा की भावना जीवित है, तब तक यह रौशनी कभी नहीं बुझेगी...
नैवेद्य पुरोहित
इंदौर. मेरे दादाजी राजेन्द्र पुरोहित के द्वारा 1982 में जब ईट का भट्ठा लगाया गया था तब शुरू की गई उनकी पहल ने हमें सिखाया कि सच्ची खुशी दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाने में है। आज भी, हम वही परंपरा का निर्वहन करते हुए प्रेम और सेवा के साथ दीपावली मनाते हैं।

इस साल भी वही रोशनी, वही भावना, वही समर्पण आज जब लोग नए कपड़ों में सजे हैं, मिठाइयों की महक से घर महक रहे हैं, तब हमने एक बार फिर उन गलियों का रास्ता चुना, जहाँ दिवाली की रौशनी आज भी मिट्टी और सीमेंट के बीच है। इस बार भी हमने अभिषेक ब्रिक्स परिवार के मेहनती मजदूरों और उनके परिवारों के साथ मिलकर मिठाइयाँ और कपड़े बाँटे। उन छोटे-छोटे बच्चों की आँखों में जब खुशियों की चमक आई वह पल किसी भी दीपक की लौ से ज़्यादा उज्जवल था।
कभी-कभी लगता है असली दिवाली पटाखों की आवाज़ में नहीं, बल्कि किसी के चेहरे पर आई एक मुस्कान में छिपी होती है। हमने देखा, कैसे एक छोटा बच्चा, जो फटे कपड़ों में था, अपने परिवार के लिए मिठाइयां और कपड़े देखकर कितना खुश था। उसकी वह मासूम हँसी, वही तो असली लक्ष्मी का आगमन थी।
यही हमारी दिवाली की पहचान है। यह सिर्फ बाँटने की रस्म नहीं हमारे लिए एक सोच का त्योहार है। दादाजी ने जो बीज प्रेम का बोया, आज वह एक परंपरा का वृक्ष बन चुका है जहाँ हर दीपावली पर सेवा, संवेदना और साझी खुशियों के फूल खिलते हैं। हर साल यह दीपक और भी उज्जवल होता जा रहा है।
दीपावली का अर्थ हमारे लिए स्पष्ट है घर के साथ, दिलों को भी रोशन करना। रोशनी बाँटनी थी, उम्मीद जगानी थी, और यह एहसास दोहराना था कि त्योहार तब ही पवित्र होते हैं जब वे सिर्फ हमारे लिए नहीं, सबके लिए होते हैं।
अभिषेक ब्रिक्स की दिवाली प्रेम, सेवा और परंपरा का संगम है। आज भी जब हम दीपक जलाते हैं, तो वह सिर्फ मिट्टी का नहीं होता वह हमारे भीतर की मानवता को फिर से जगाने वाला दीपक होता है। इस साल भी वही दीपक जला है और जब तक प्रेम सेवा की भावना जीवित है, तब तक यह रौशनी कभी नहीं बुझेगी।





