इंदौर
बेसमेंट पर "सेटलमेंट, इस बार न हो... : शहर की ट्रेफ़िक व पार्किंग समस्या का मूल कारण ही बेसमेंट का कमर्शियल उपयोग
नितिनमोहन शर्मानितिनमोहन शर्मा...✍️
- कलेक्टर आशीषसिंह का भागीरथी फैसला, अमल हुआ तो बदल जाएगी इंदौर की तस्वीर
- कलेक्टर ने एक माह की दी चेतावनी, बेसमेंट से हटा लें व्यावसायिक गतिविधि
- जिला प्रशासन को नगर निगम का साथ बेहद जरूरी, निगम ने ही दे रखी है व्यावसायिक कामकाज की अनुमति
- दिल्ली हादसे के बाद जागा जिला प्रशासन, पूरे शहर में हो रही बेसमेंट की जांच
बेसमेंट में पार्किंग की जगह बना रखी है दुकानें, वाहन सड़को पर हो रहे पार्क, रोज ट्रेफ़िक जाम
..उम्मीद है इस बार बेसमेंट पर कोई "सेटलमेंट" न होगा। वे पूरी तरह पार्किंग के लिए मुक्त किये जायेंगे। इन्ही बेसमेंट में शहर के बेतरतीब ट्रेफ़िक व पार्किंग की विकराल समस्या का समाधान छुपा हुआ हैं लेकिन ये ही बेसमेंट सरकारी भ्रष्टाचार के कारण छुपे हुए हैं। सरकारी महकमो की परस्पर मिलीभगत का नतीज़ा दिल्ली ने 3 दिन पहले भुगता हैं।
क्या इंदौर भी उस दिन का इंतजार कर रहा है जब उसके माथे पर दिल्ली जैसा कलंक लगे? नही न, तो फिर बेसमेंट को लेकर कलेक्टर महोदय के आदेश का पालन हर हाल में होना चाहिए। शहर हित की इस मुहिम को इस बार कोई दबाव-प्रभाव प्रभावित न कर पाए। इसकी जिम्मेदारी कलेक्टर के साथ साथ डॉ मोहन यादव सरकार, नगरीय प्रशासन मंत्री व महापौर की भी है। जनता की नजर चुने हुए जनप्रतिनिधियों पर भी है जिनकी शह पर बेसमेंट पार्किंग की जगह कमाई का जरिया बने हुए हैं।
इंदौर में ही ये चलन कमर्शियल इलाको में स्थापित हुआ है कि नई इमारत बनी नही कि उसके बेसमेंट पहले तैयार होकर कमर्शियल उपयोग के लिए बिक जाता हैं। क्योंकि जिम्मेदार बिक जाते है। जनता जाए भाड़ में ओर शहर रोता रहे पार्किंग ट्रेफ़िक के नाम पर। बिकने वालो की तो इंदौर में पो-बारह ही है...अरसे से, बरसो से।
सावधान, अगर नक्शे में पार्किंग है तो बेसमेंट का उपयोग सिर्फ पार्किंग के लिए ही होगा। अगर बेसमेंट में पार्किंग की जगह का उपयोग व्यावसायिक कामकाज के लिए हो रहा है तो खबरदार..!! एक महीने में बेसमेंट से हटा दे दुकान, दफ्तर, कारखाने.. अन्यथा तोड़ दिये जायेंगे।
ये चेतावनी जिला कलेक्टर आशीष सिंह की हैं और इस बार ये सिर्फ काग़ज़ी नही हैं। इस वार्निंग को हकीकत का अमलीजामा भी पहनाया जाएगा। हर हाल में वे बेसमेंट मुक्त किये जायेंगे, जहाँ होना तो पार्किंग थी लेकिन आफिस, दुकानें बनाकर कमाई की जा रही हैं। इंदौर इस समस्या से बरसो बरस से जूझ रहा हैं। ये शहर सुगम यातायात व सहज पार्किंग के लिए नीत नए प्रयोग कर रहा है लेकिन समस्या की जड़ की तरफ ध्यान किसी का नही।
भारी तोड़फोड़ कर सड़कें, बाजार चौड़े करने के बाद भी वाहनों के पार्किंग व सुगम ट्रेफ़िक की समस्या जस की तस बनी हुई है। उदाहरण मध्य शहर के उस हिस्से से जांचा जा सकता है जहां स्मार्ट सिटी के नाम पर जबरदस्त तोड़फोड़ की गई थीं। सिर्फ इसलिए कि मध्य शहर का यातायात सुधरे और पार्किंग की समस्या से निज़ात मिले। लेकिन हाल फिर बेहाल है और चोड़ी सड़को का आधा हिस्सा वाहनों के पार्किंग के ही काम आ रहा है और आधे में दुकानदारो का अतिक्रमण विद्यमान है। ट्रेफ़िक अब भी वैसे ही संकरे हिस्से में रेंग रहा है, जैसा स्मार्ट सिटी के नाम पर हुई तोड़फोड़ के पहले रेंगता था।
दिल्ली की घटना ने जिम्मेदारों को झकझोर कर जगा दिया
दिल्ली की घटना ने जिम्मेदारों को झकझोर कर जगा दिया हैं। 3 दिन में 30 ऐसी इमारतों की जांच हुई है, जहां तलघर का उपयोग व्यावसायिक हो रहा हैं। ये बीमारी कोचिंग क्लास वाले भंवरकुआं आदि हिस्सो में ही नही, समूचे शहर में एक समान है। खजूरी बाजार, सराफा, राजबाड़ा, इमली बाजार, आड़ा बाज़ार, जेलरोड, रीगल स्केवयर, आरएनटी मार्ग, छावनी, सपना संगीता रोड, एबी रोड आदि। शहर का ऐसा कोई हिस्सा नही जहां बिल्डर ने सरकारी कारिंदों और महकमो से मिलीभगत कर बेसमेंट का उपयोग कमाई के लिए करवा लिया। मध्य शहर के बाजार वाहन पार्किंग औऱ ट्रेफ़िक का रोना आये दिन रो रहे है लेकिन समस्या का समाधान तो उनके इलाके की उन इमारतों में ही है जहां नए निर्माण के साथ दर्जन, दो तीन दर्जन दुकानों के साथ नई बिल्डिंग तो अस्तित्व में आ गई लेकिन इन दुकानों की पार्किंग सड़क पर आ गई। अब कितनी ही बार बाजारो के दौरे कर लो, समस्या सुलझनी ही नही है और न इतनी जगह कही है कि अलग से पार्किंग बन सके। इसके लिए उन इमारतों के बेसमेंट पार्किंग के लिए मुक्त करना ही होंगे, जहां दुकानें बना दी गई है।
इंदौर को पूर्ण उम्मीद, इस बार अधूरी नही रहेगी मुहिम
जिला प्रशासन की इस जनहित मुहिम में नगर निगम का साथ बेहद जरूरी है। आवासीय भवन के व्यवसायिक निर्माण की अनुमति नगर निगम देता है। आवासीय का व्यवसायिक उपयोग की अनुमति भी नगर निगम देता है। भवन निर्माण के नक्शे नगर निगम देता है और दुकान के लाइसेंस भी नगर निगम ही देता है।
टेक्स भी वसूलता है। इस बार निगम के लिए भी ट्रेफ़िक बड़ा मुद्दा है। महापौर पुष्यमित्र भार्गव के लिए ये मसला पहले दिन से प्राथमिकता में है। ऐसे में इस बार जिला प्रशासन व नगर निगम को मिलकर बेसमेंट मुक्ति अभियान को शिद्दत से अंजाम देना होगा। अन्यथा इस शहर में बेसमेंट में से कमर्शियल कामकाज हटाने के पहले भी अभियान चले है लेकिन इसी शहर में बेसमेंट पर सेटलमेंट होते भी हर बार देखे है। खजूरी बाजार, सराफा इसका उत्कृष्ट उदाहरण है। लिहाजा इस बार ये इंदौर उम्मीद करता है अपने जिलाधीश व महापौर से कि वह इस भागीरथी संकल्प को आधा अधूरा न छोड़ेंगे।