इंदौर
मेवाड़ सांस्कृतिक मंच पर केसरिया बालम आओ नी पधारो नी...म्हारे देश
Sunil Paliwal-Anil bagora...✍● मेवाड़ रा गरबा से रोशन हुआ मालवा...शेखर बागोरा की कलम से... ✍
इंदौर। समाज की मातृशक्ति कई सालों से बडे मंच का इंतजार कर रही थी...उनकी प्रतिभा को मेवाड़ सांस्कृतिक मंच ने पहचाना...पालीवाल ब्राह्मण समाज के जनसमूह ने एक नई इबारत स्वर्ण अक्षरों से लिखकर इतिहास रच दिया...शरद पूनम की रात में चांद पूरे शबाब पर था, दूधिया रोशनी से आसमान सराबोर था। मथुरा महल में मेवाड़ की खूबसूरती और परंपरा पर पहली बार इंदौरी मेवाडिय़ों ने मेवाड़ रा गरबा किया। अपनी परंपरागत वेशभूषा में नन्हीं परि और महिलाएं पांडाल में पहुंचीं, तो लगा कि मालवा में मेवाड़ उतर आया हो। इनके उत्साह और हौसले ने बता दिया कि ये मेवाड़ की माटी से आई मौके के इंतजार में थीं। पांडाल मिला, तो डांडिया रास में कोई कसर बाकी नहीं रही।
मेवाड़ सांस्कृतिक मंच ने मालवा में बसे मेवाडिय़ों के लिए शरद पूर्णिमा पर रास गरबा का पांडाल सजाया। पहली बार में ही मेवाड़ी महिलाओं और बच्चियों ने दिखा दिया कि वे आज भी अपनी संस्कृति से दूर नहीं हैं। छोटे से बड़े तक अपने अंदाज में नजर आए। शाम सात बजे मजमा जम चुका था। जिधर नजर घुमाओ गोटेदार, चमकीले, रंगबिरंगे लहंगे और राजपूताना पोशाक दिखाई दी। गरबा करने वालों में उम्र का बंधन मानों रहा ही नहीं। पोती और नातिन के साथ दादी और नानी भी रुक नहीं रही थीं। मेवाड़ी गीतों से गरबे का आगाज हुआ। पैंतीस साल से पैंसठ साल की महिलाओं ने ’टूटे बाजूड़ा री लूंग...लड़ उलझी-उलझी जाए... कोई पचरंगी लहरियो रे पल्लो लहराए रे... धीरे चालो नी बाहेरियों... पर मेवाड़ी लहरिया पहनकर परंपरागत नृत्य को गरबे में ढाला। इस गरबा को देख तालियां रुकी नहीं। पंद्रह मिनट तक चले इस डांडिया रास की शुरुआत मेवाड़ के ढोल-मांदल से की गई। डीजे की धुन पर तो मांदल बजी ही मेवाड़ से ग्रुप ने मांदल और थाली की थाप पर भी खूब गरबा कराया। ’सोनालो गरबे घूमे... अंबे मां चालो धीरे-धीरे...’ के साथ ही ’म्हारो असी कलीरो लहंगों... देखो घूमरियो रे...’ पर तो चालीस पार कर चुकी महिलाओं ने मेवाड़ी परंपरा को दिखाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। एक बार से इनका मन नहीं भरा, तो दूसरी बार घूमर लेकर उतर आईं। घूमर मेवाडिय़ों का वह नृत्य है, जो हर खुशी के मौके पर किया जाता है। यह सभी के जहन में बसा है। नई उम्र की लड़कियां भी इसे परिवार में सीख चुकी हैं। जब मम्मी, दादी, नानी ने घूमर पर डोलना शुरू किया, तो पांडाल के बाहर मौजूद देखने वाली भी गोला बनाकर घूमर करने लगीं। पूरे मेवाड़ रा गरबा के दौरान यही ऐसा पल था, पूरा मथुरा महल घूमर ले रहा था। नई उम्र की लड़कियों ने दीवाली गरबा किया। शरद पूर्णिमा की दूधिया रोशनी में ’केसरिया बालम आओ नी पधारो नी म्हारे देश...’ दीये लेकर गरबा किया, तो रंगत ही कुछ और थी। मानों आज शरद पूर्णिमा नहीं अमावस की रात है। जब यह दीये लेकर पांडाल में उतरीं, तो दीवाली का अहसास करा गईं। इनसे छोटी लड़कियों ने अपने भाइयों को गाड़ी और लाड़ी दिलाने की पहल करते हुए गीत ’म्हारा वीरा थने लाड़ी लाइ दूं... थने चार पगड़ीवाली गाड़ी लइ दूं... ओडी लाइ दूं...’ पर भाइयों को भी थिरकने पर मजबूर कर दिया, लेकिन मेवाड़ रा गरबा में पुरुषों को गरबा करने की इजाजत नहीं थी, तो वे अपनी कुर्सियों पर ही हाथ-पैर हिलाते रहे। आधी रात तक चले मजमे में कहीं भी आधुनिकता नहीं दिखी। पहनावा वही था, जो घर के आयोजन में पहना जाता है। न गुजराती, न बदलते दौर का पहनावा, न काला चश्मा मंजूर था। घर के संदूक में रखे लहंगे जब निकले, तो मेवाड़ उतर आया। मेवाड़ी पुरुष भी अपने उसी अंदाज में आए थे, जो मेवाड़ी की पहचान है। मेवाड़ रा गरबा में न फिल्मी गाने थे, न गुजराती। मेवाड़ी गीतों के बीच भी गरबा किया जा सकता है। ये मेवाडिय़ों ने साबित कर दिया। मेवाड़ सांस्कृतिक मंच ने आयोजन में पधारे सभी मेवाडिय़ों का आत्मीयता से स्वागत...वंदन...अभिनंदन के साथ...आभार जताया...।
शेखर बागोरा की कलम से... ✍
!! आओ चले बांध खुशियों की डोर...नही चाहिए अपनी तारीफो के शोर...बस आपका साथ चाहिए...समाज विकास की ओर !!
● पालीवाल वाणी ब्यूरो-sunil paliwal-Anil Bagora... ✍
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