इंदौर

इंदौर :तिल्लौरखुर्द के 53 बच्चों के सामने दो वक्त की रोटी का संकट!!!

Paliwalwani
इंदौर :तिल्लौरखुर्द के 53 बच्चों के सामने दो वक्त की रोटी का संकट!!!
इंदौर :तिल्लौरखुर्द के 53 बच्चों के सामने दो वक्त की रोटी का संकट!!!

जीवन का सबसे खूबसूरत और अहम पड़ाव होता है-"बचपन'। ना चिंता, ना फिक्र, अल्हड़पन और सीखने का जुनून। इंदौर जिले के ग्राम तिल्लौरखुर्द में ऐसे 53 बच्चे मिले हैं, जिनके मासूम चेहरे पर गरीबी की नजर लग गई। इनमें से कुछ हाथों से स्कूल की किताबें छूट गईं। इन बच्चों ने स्कूल की जगह खेतों का रुख कर लिया। यह वे बच्चे हैं, जिनके सामने पेट भरने की नई चुनौती खड़ी हो गई है। कुछ के हालात पहले से खराब थे, तो कुछ पर कोविड-19 महामारी से उपजे हालात ने संकट खड़ा कर दिया है।गांव के 53 बच्चों के पास पास शिक्षा तो दूर है, दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना मुश्किल हो रहा है। 8-10 बच्चे दिव्यांग हैं। कोरोना की दूसरी लहर में माता-पिता का रोजगार छिन गया। जमा-पूंजी इलाज में खर्च हो गई।

मुंबई के NGO केटलिस्ट फॉर सोशल एक्शन (सीएसए) ने सर्वे किया है। इसमें तिल्लौरखुर्द में 53 बच्चों की सूची दी है। ये बच्चे मुश्किल परिस्थितियों में जीने को मजबूर हैं। शिक्षा का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार, सुरक्षा का अधिकार सहित अन्य बाल अधिकार प्रभावित हो रहे हैं। कुछ बच्चों के माता-पिता नहीं हैं। जिनके हैं, वह बच्चों को यह सब मुहैय्या नहीं करवा पा रहे। बालश्रम के विरोध में जागरूकता अभियान चला रहे हैं। ऐसे बच्चों को ढूंढा जा रहा है, जो तंगहाली के कारण स्कूल तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। सिर्फ एक ही गांव में ऐसे 53 बच्चे मिलना चिंता की बात है।

एरोड्रम रोड पर बिजासन माता मंदिर क्षेत्र में इन दिनों बड़ी संख्या में बच्चे छोटी-छोटी दुकान लगाकर बैठ रहे हैं। यह टैटू बनाने का काम कर रहे हैं। यह बच्चे कक्षा छठीं, सातवीं और आठवीं के छात्र हैं। मां-बाप काम करने निकल जाते हैं, तो बच्चे टैटू बनाकर पैसा कमाने। चाइल्ड लाइन की टीम जब मौके पर पहुंची, तो बच्चों का जवाब था कि ऑनलाइन क्लास चलती है, इसलिए खाली समय में काम कर रहे हैं। हालांकि अधिकारियों ने उन्हें इस बार समझाइश देकर छोड़ दिया।

गांव की रहने वाली 14 साल की सुनीता अपनी दोनों बहनों के साथ काम करने जाती है। उनकी उम्र भी 15,16 साल है। वह मां भी मजदूरी करती है। चौथी के बाद पढ़ाई छोड़ दी। पिता परिवार को छोड़कर जा चुके हैं, इसलिए मां के साथ उन्हें भी रोज मजदूरी करने के लिए खेतों में जाना पड़ता है। वह स्कूल जाती थी, लेकिन पैसों की कमी के कारण छोड़ दी। कभी किसी दिन सौ रुपए तो कभी तीन सौ रुपए मिल जाते हैं। पढ़ना चाहती है, लेकिन आगे कैसे बढ़े, कुछ पता नहीं है।

बीते 4 सालों में इंदौर जिले में बालश्रम के 236 मामले सामने आए हैं। माना जा रहा था कि कोरोना महामारी के बाद बिगड़े हालत में ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ी होगी, लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में ऐसे 9 मामले ही दर्ज हुए हँ।

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