इंदौर
Indore News : श्री राम चरित्र मानस मनुष्य बनाने की प्रक्रिया है : साध्वी ऋतुंभरादेवी
sunil paliwal-Anil paliwalश्रीराम कथा में साध्वी दीदी मां ने तुलसीदास व रत्नादेवी प्रसंग की व्याख्या कर भक्तों व श्रद्धालुओं को कराया था का रसपान
इंदौर : राम का जीवन हमें विद्या, तप, धर्म, दान, गुण व स्वभाव में शालीनता की प्रेरणा देता है। और ये गुण ही मनुष्य होने के साक्ष्य हैं।श्री राम चरित्र मानस मनुष्य बनाने की प्रक्रिया है। इस संसार में मनुष्य बनने के लिए जो गुण भगवान राम में थे वह होना जरुरी है इन गुणों के अभाव में मनुष्य-मनुष्य होते हुए भी पशु तुल्य के समान है। उक्त विचार साध्वी दीदी मां ऋतुम्भरादेवी ने देपालपुर स्थित चौबीस अवतार मंदिर महातीर्थ क्षेत्र में जारी श्रीराम कथा के दुसरे दिन गुरूवार को भक्तों को कथा का रसपान कराते हुए व्यक्त किए।
श्रीराम कथा के दुसरे दिन दीदी मां साध्वी ऋतुंभरादेवी ने तुलसीदास व रत्नादेवी प्रसंग की व्याख्या कर भक्तों को भाव-विभोर कर दिया। उन्होंने कथा में आगे कहा कि साधु बनने के लिए केवल भेष धारण करना ही काफ़ी नहीं होता। साधु में अगर करुणा, दया , क्षमा शीलता नहीं है तो वह साधु कहलाने का अधिकारी नहीं है। श्रीराम कथा के दुसरे दिन व्यासपीठ का पूजन रामेश्वर गुड्डा पटेल परिवार व भक्तों ने किया। कथा के दुसरे दिन हजारों की संख्या में उपस्थित भक्तों ने कथा का रसपान किया।
श्री पुंजराज पेटल सामाजिक सेवा समिति एवं श्रीराम कथा आयोजक रामेश्वर गुड्डा पटेल ने बताया कि देपालपुर श्री चौबीस अवतार मंदिर महातीर्थ में साध्वी मां ऋतुंभरादेवी की कथा 31 मई से 6 जून तक दोपहर 2 से 5 बजे तक आयोजित की जाएगी।
साध्वी दीदी मां ऋतुंभरादेवी ने कहा कि मनुष्य जीवन की पहली टकसाल है विद्यालय। जहाँ शिक्षा पाई जाती है लेकिन आजकल तो अर्थ प्राप्ति का साधन भर रह गई है शिक्षा। आजकल की शिक्षा केवल जिन्दा रहने के लिए शिक्षा रह गई है। जीवित रहना तो पशु पक्षी भी जानते हैं। जिनका जिन्दा रहना और जीने में फर्क होता है। जीवन स्वर्ग व नर्क का अनुभव भी करवाता है। ज़ब आप अज्ञानी या मूढ़ मनुष्यों में फंसे होते हैं तो लगता हैं जीवन नर्क है लेकिन, ज़ब आप सहज, सौम्य, पवित्रता, पावनता, सहजता को धारण किए पुरुषार्थी साथियों के साथ रहते हैं तो जीवन उत्सव बन जाता है।
चित्र- चौबीस अवतार मंदिर में आयोजित श्रीराम कथा के दुसरे दिन कथा का श्रवण करते भक्त व श्रद्धालु।