Monday, 27 October 2025

इंदौर

भारतीय तिरंगे की गौरव गाथा : हर घर तिरंगा अभियान

sunil paliwal-Anil paliwal
भारतीय तिरंगे की गौरव गाथा : हर घर तिरंगा अभियान
भारतीय तिरंगे की गौरव गाथा : हर घर तिरंगा अभियान

इंदौर : किसी भी देश का राष्‍ट्रीय ध्वज उसके सम्मान का प्रतीक चिन्ह होता है। राष्ट्रीय ध्वज संपूर्ण राष्ट्र की गरिमा एवं प्रतिष्‍ठा का प्रतिनिधित्व करता है। राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधते हुए धर्म और क्षेत्रवाद से परे हमारा राष्ट्रीय तिरंगा "यूनिटी इन डायवर्सिटी" की सबसे प्रबल अभिव्यक्ति है। आजादी के इस 75वें वर्ष में देशभक्ति की भावना का उच्चतम प्रेरणा स्त्रोत राष्ट्रीय तिरंगे के अलावा क्या हो सकता है। तिरंगा हमें अपने देश के प्रति हमारे कर्तव्यों की याद दिलाता है।

आजादी के अमृत महोत्सव के तहत स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में मध्यप्रदेश शासन द्वारा आयोजित किए जा रहे “हर घर तिरंगा अभियान” लोगों को अपने-अपने घरों एवं प्रतिष्ठानों में तिरंगा लहरा कर भारत के गौरव को पहचानने और इसकी रक्षा के लिए तन-मन-धन से समर्पित होने को सन्नद्ध करने की एक अभिनव पहल है। पर इस अभियान में शामिल होने से पहले यह जानना अत्यंत रोचक है कि हमारा राष्ट्रीय ध्वज अपने आरंभ से किन-किन परिवर्तनों से गुजरा। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का विकास आज के इस रूप में पहुंचने के लिए अनेक दौरों में से गुजरा है। एक रूप से यह राष्ट्र में राजनीतिक विकास को दर्शाता है। आइए जानें हमारे राष्ट्रीय ध्वज “तिरंगे” का गौरवशाली इतिहास।

राष्ट्रीय ध्वज का सफर

प्रथम भारतीय ध्वज : भारतीय इतिहास में, 1905 से पहले पूरे भारत की अखंडता को दर्शाने के लिए कोई राष्ट्रध्वज नहीं था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान 1905 में स्वामी विवेकानंद की शिष्य सिस्टर निवेदिता ने पहली बार पूरे भारत के लिए एक राष्ट्रीय ध्वज की कल्पना की थी। सिस्टर निवेदिता द्वारा बनाए गए ध्वज में कुल 108 ज्योतियां बनाई गई थी। यह ध्वज चौकोर आकार का था। ध्वज के दो रंग थे- लाल और पीला। लाल रंग स्वतंत्रता संग्राम और पीला रंग विजय का प्रतीक था। ध्वज पर बंगाली भाषा में वंदे मातरम् लिखा गया था और इसके पास वज्र (एक प्रकार का हथियार) और केंद्र में एक सफेद कमल का चित्र भी था। वर्तमान में इस ध्वज को आचार्य भवन संग्रहालय, कोलकाता में संरक्षित रखा गया है।

सप्तर्षि झण्डा : इसके बाद 7 अगस्त सन् 1906 को कलकत्ता के पारसी बागान चौक में ध्वज को फहराया गया। कलकत्ता ध्वज प्रथम भारतीय अनाधिकारिक ध्वज था। इसकी अभिकल्पना शचिन्द्र प्रसाद बोस ने की थी। झंडे में बराबर चौड़ाई की तीन क्षैतिज पट्टियां थीं। शीर्ष धारी नारंगी, केंद्र धारी पीला और निचली पट्टी हरे रंग की थी। शीर्ष पट्टी पर ब्रिटिश-शासित भारत के आठ प्रांतों का प्रतिनिधित्व करते आठ आधे खुले कमल के फूल थे और निचली पट्टी पर बाईं तरफ सूर्य और दाईं तरफ़ एक वर्धमान चाँद की तसवीर अंकित थी। ध्वज के केंद्र में "वन्दे मातरम्" का नारा अंकित किया गया था। इसी तरह पहली बार विदेशी धरती पर भारतीय ध्वज मैडम भीकाजी कामा द्वारा 22 अगस्त सन् 1907 को अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस केस्टटगार्ट में फहराया गया था। इस ध्वज को 'सप्तर्षि झंडे’ के नाम से जाना जाता है। यह ध्वज काफी कुछ 1906 के झंडे जैसा ही था, लेकिन इसमें सबसे ऊपरी पट्टी का रंग केसरिया था और कमल के बजाए सात तारे सप्‍तऋषि के प्रतीक थे।

आंदोलन का हिस्सा बना ध्वज : भारतीय धरती पर तीसरे प्रकार का तिरंगा होम रूल लीग के दौरान फहराया गया था। “होम रूल आंदोलन” के दौरान कलकत्ता में एक कांग्रेस अधिवेशन के दौरान यह ध्वज फहराया गया था। उस समय ध्वज स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई का प्रतीक था। इसमें 9 पट्टियाँ थीं, जिसमें 5 लाल रंग की और 4 हरे रंग की थी। ध्वज के ऊपरी बाएं रंग में यूनियन जैक था। शीर्ष दाएं कोने में अर्धचंद्र और सितारा था। ध्वज के बाकी हिस्सों में सप्तर्षि के स्वरूप में सात सितारों को व्यवस्थित किया गया था।

स्वराज झण्डा : इसके पश्चात 1921 में आंध्र प्रदेश के पिंगले वेंकय्या ने बिजावाड़ा (अब विजयवाड़ा) में गांधीजी के निर्देशों के अनुसार सफेद, हरे और लाल रंग में पहला "चरखा-झंडा" डिजाइन किया था। इस ध्वज को "स्वराज-झंडे" के नाम से जाना जाता है। वर्ष 1931 ध्वज के इतिहास में एक यादगार वर्ष है। इस वर्ष तिरंगे ध्वज को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया। यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था।

तिरंगा : ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत को स्वतंत्र करने की घोषणा के बाद, भारतीय नेताओं को स्वतंत्र भारत के लिए राष्ट्रीय ध्वज की आवश्यकता का एहसास हुआ। तदनुसार, ध्वज को अंतिम रूप देने के लिए एक तदर्थ ध्वज समिति का गठन किया गया था। श्रीमती सुरैया बद्र-उद-दीन तैयबजी द्वारा प्रस्तुत स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज के डिजाइन को 17 जुलाई 1947 को ध्वज समिति द्वारा अनुमोदित और स्वीकार किया गया था। समिति की सिफारिश पर 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने तिरंगे को स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। तिरंगे में तीन समान चौड़ाई की क्षैतिज पट्टियाँ हैं, जिनमें सबसे ऊपर केसरिया रंग की पट्टी जो देश की ताकत और साहस को दर्शाती है, बीच में श्वेत पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का संकेत है और नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी देश के विकास और उर्वरता को दर्शाती है। तिरंगे के केंद्र में सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का अशोक चक्र है जिसमें 24 आरे (तीलियां) होते हैं।चक्र में एक दिन के 24 घंटों और हमारे देश की निरंतर प्रगति को दर्शाया है।

इस प्रकार कई परिवर्तन के बाद हमें अंतत: स्वतंत्र भारत का तिरंगा ध्वज प्राप्त हुआ। भारतीय राष्ट्रध्वज के निर्माण की यह गौरवशाली गाथा अपने आप में ही भारत की एकता, शांति, समृद्धि और विकास को दर्शाती हुई दिखाई देती है।

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