इंदौर
सामूहिक ढूंढोत्सव का सफल आयोजन, आज भी कायम परम्परा
Rohit Paliwal/ Kailash Paliwal/Akhilesh Joshiइंदौर | नए मेहमानों का परंपरानुसार स्वागत करने तथा उन्हें सुखद भविष्य की शुभकामनाएं देने के लिए पालीवाल ब्राह्मण समाज 24, 44 श्रेणी इंदौर सहित कई जगहों पर सामूहिक ढूंढोत्सव संपन्न होने के समाचार मिले। होली के समय ढूंढोत्सव के दौरान जो कार्यक्रम होता है उसकी शुरूआत सबसे पहले गांव में जिस परिवार में लड़की होती हैं जिसकी पहली होली होती है उस परिवार से सभी ग्रामवासी करते है। गांव के सभी लोग ढोल ण्नंगाडों के साथ सबसे पहले उस परिवार के यहाँ जाते हैं और उस लडकी को जिसका जन्म हुआ हैं जिसकी प्रथम होली हैं उसकी लम्बी उम्र के लिये प्रार्थना करते है। उसके बाद फिर दूसरी जगह जिस परिवार में लडका या लड़की होती हैं वहाँ जाते हैं। मधुर स्वरों में समाजजन कहते हैं ष्ष् हरिया.हरिया.हरिया देवीए हरिया विच्चे तोर तुरंगी, जिमे वावे चम्पा डारी जूं जूं चम्पो लेहरों लेवें, घर दरियाणी पूत जाणे, पहलो पूत सपूतो पूत, दूजो पूत घोड़ा डगाव्यणो-तीजो पूत समुद्री राज,चैथो पूत अतरो म्होटो-अतरो मोटो वेजो। इस प्रकार बच्चों की यश-कीर्ति और समृद्धि की कामना की जाती है।
पालीवाल समाज 24 श्रेणी इंदौर की ढूंढोत्सव पर 22 नन्हें मुन्ने बच्चों के माताण्पिता साक्षी बने
पालीवाल समाज 24 श्रेणी इंदौर की कार्यकारिणी ने होली महोत्सव के तहत ढूंढोत्सव पर नन्हें मुन्ने बच्चों की ढूंढ कराकर समाज में एकता का परिचय दिया। आयोजन मां अन्नपूर्णा मंदिर परिसर 152ए इमली बाजार इंदौर पर ढुंढ का कार्यक्रम सफल रहा। जिसमें नन्हें मुन्ने बच्चों के माताण्पिता के साथ सम्पूर्ण 24 श्रेणी का परिवार आयोजन का साक्षी बना। समाज अध्यक्ष श्री मुकेश जोशी ने अपनी सक्रियता से कई सफल आयोजन की कडी में ढुंढ के आयोजन को भी सफलता की श्रेणी में खडा कर दिया। नन्हें मुन्ने बच्चों की चहलण्पहल से परिसर महक उठा। सुंगठित वार्तावरण से मां अन्नपूर्णा ने सभी को आशीर्वाद दिया। तत्पश्चात् स्नेहभोज में सभी जनों ने अपनी भागीदारी निभाते हुए भोजन प्रसादी ग्रहण की। कार्यक्रम के अंत में सर्वश्री समाज अध्यक्ष मुकेश जोशी, उपाध्यक्ष प्रकाश उपाध्याय, सचिव घनश्याम पालीवाल, सहसचिव हरलाल पालीवाल, कोषमंत्री रमेश उपाध्याय, सहकोषमंत्री ललित पुरोहित, कार्यकारिणी सदस्य लक्ष्मण जोशी, हीरालाल जोशी, कैलाश पालीवाल, प्रकाश जोशी, बंशी जोशी सहित पालीवाल उत्सव कमेठी, पालीवाल नवयुवक मंड़ल, पालीवाल जय अंबे ग्रुप के साथ समाजसेवियों एवं कार्यकर्ता का विशेष योगदान रहा। समाज अध्यक्ष मुकेश जोशीए कोषमंत्री रमेश उपाध्याय ने सभी समाजबंधुओं का आभार प्रकट किया। पालीवाल वाणी समूह ने सफल आयोजन पर समाजबंधुओं को बधाई दी।
समय नहीं रहा इसलिए सामूहिक ढूंढोत्सव
समय परिवर्तन होते ही ढूंढोत्सव मनाने का तरीका आज समय के साथ सभी परम्परा बदल गई है। लोग समय के साथ अपनी परम्परा भूलते जा रहे है। शहरों में लोगों के पास समय नहीं है। शहरों में ढूंढोत्सव सामूहिक रूप से एक साथ मनाया जाता है लेकिन धारता गांव आज भी अपनी परम्परा निभा रहा है। गाँव के ज्यादातर लोग मुम्बई और गुजरा मध्यप्रदेश जिले इंदौरए भोपालए उज्जैनए देवासए झाबुआ क्षेत्र में अपना व्यवसाय करते है। पालीवाल समाज के अधिकांश परिवार राजस्थान में ही रहते है। ढूंढोत्सव परम्परा आज भी कायम है इस बात का इंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है गाँव के ज्यादातर लोग व्यवसाय के लिये बाहर रहते है लेकिन होली के समय उन्हें गाँव की ढूंढोत्सव परम्परा खींच लाती है।
पहली होली है वहां ढोलगाडों के साथ जाते
होली पर यहां पर सामूहिक ढूंढोत्सव नहीं होता बल्कि यहां गांव के सभी लोग जिनण्जिन परिवारों में लड़की या लड़का होता है जिनकी पहली होली है वहां ढोलण्नगाडों के साथ जाते है और हर परिवार में ढूंढोत्सव का कार्यक्रम होता है। एक परिवार में ढूंढोत्सव का कार्यक्रम समाप्त होने पर फिर दूसरे परिवार के यहाँ जाते हैए फिर तीसरे परिवार के जहां लड़की या लड़का होता है जिनकी पहली होली है। ऐसे ही पूरे दिन एकण्एक कर पूरे गांव में जिस भी परिवार में लड़की या लड़का होती है जिनकी पहली होली होती है वहाँ ढूंढोत्सव मनाने के लिये जाते है। पूरा गांव होली मग्न हो जाता है। चाहे लड़की या लड़का उसको जब गांव वाले ढूंढते है तो गोद में लेकर केवल लड़की ही बैठती है। चाहे बेटा हो या बेटी ढूंढते समय गोद में लेकर केवल लड़की ही बैठती है। उसकी लम्बी उम्र के लिये सब प्रार्थना करते हैं। वहीं लड़की के परिवार द्वारा गाँव के सभी लोगों को गुड़ण्मिठाई खिलाकर सबका मुंह मीठा कराया जाता हैं। यही गांव की परम्परा हैं आज के युग में लड़की बचाने की।
ढूंढ क्या है?
पालीवाल ब्राह्मण समाज में ढूंढ की परंपरा सनातन काल से चली आ रही है। समाज के श्री मुकेश जोशी एवं पालीवाल वाणी के सलाहकार श्री बालकुष्ण बागोरा ने पालीवाल वाणी संवाददाता को बताया कि श्रीमाल नगर वर्तमान भीनमालएराजस्थानद्ध में गौतम ऋषि विराजित थे। वहां ढंूढ़ा नाम की एक राक्षसी ने आतंक मचा रखा था। वह नवजात बच्चों को उठा ले जाती थी।समाजजन ऋषि के पास पहंुचे और उनसे सहायता का निवेदन किया। गौतम ऋषि ने राक्षसी के आतंक से बच्चों को मुक्त कराया। तब से ही होली के अवसर पर ढंूढ़ा राक्षसी के अंत के लिए समाज में गौतमी चक्रों को अग्नि में अर्पण करने तथा दूसरे दिन नन्हें बच्चों को ढूंढ़ने की परंपरा आरंभ हुई। इस दिन नन्हें बच्चों को विशिष्ट मंत्र के बीच हरे बांस के डंडे से मंगलकामना देते हुए उनके सुरक्षित भविष्य का आशीष दिया जाता है।