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Supreme Court : गर्भपात कराने वाली नाबालिगों के नाम पुलिस को भी बताने की जरूरत नहीं, डॉक्टरों को खास तौर पर निर्देश

Paliwalwani
Supreme Court : गर्भपात कराने वाली नाबालिगों के नाम पुलिस को भी बताने की जरूरत नहीं, डॉक्टरों को खास तौर पर निर्देश
Supreme Court : गर्भपात कराने वाली नाबालिगों के नाम पुलिस को भी बताने की जरूरत नहीं, डॉक्टरों को खास तौर पर निर्देश

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक अहम फैसले में आदेश दिया कि गर्भपात कराने पहुंची नाबालिगों (minors) के नाम को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि डॉक्टरों को खास तौर पर निर्देश दिया गया है कि गर्भपात कराने वाली नाबालिग लड़कियों (minor girls) के नाम का खुलासा स्थानीय पुलिस को बताने की जरूरत नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (medical termination of pregnancy) अधिनियम के तहत आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाने वाली नाबालिग लड़कियों के नाम का खुलासा नहीं करने का आदेश दिया। इस बड़े फैसले में शीर्ष कोर्ट ने अविवाहित महिलाओं को भी शामिल किया, जिन्हें 20-24 सप्ताह की अवधि में गर्भपात की अनुमति दी।

कोर्ट ने कहा कि यह प्रावधान केवल विवाहित महिलाओं (married women) के लिए लागू करने पर अनुच्छेद 14 के तहत अविवाहितों के साथ भेदभाव का मसला होगा। साथ ही इसमें वैवाहिक दुष्कर्म(marital rape) वाले मामले में भी गर्भपात की छूट दी गई। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, एएस बोपन्ना और जेबी पारदीवाला (Justices DY Chandrachud, AS Bopanna and JB Pardiwala) की पीठ ने कहा कि धारा 3बी (बी) का विस्तार 18 साल से कम उम्र की महिलाओं के लिए किया गया है।

साथ ही कोर्ट ने सलाह दी है कि पॉक्सो अधिनियम और एमटीपी अधिनियम (POCSO Act and MTP Act) को विस्तार से पढ़ा जाए। सुप्रीम कोर्ट ने विशेष तौर पर विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच गर्भपात का अधिकार एक समान कर दिया। कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप (live-in relationship) में रहने वाली अविवाहित महिलाओं को बाहर करना असांविधानिक बताया।

नाबालिग के खिलाफ यौन अपराध मामले को बंद करने की जांच करेगा सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राजस्थान हाईकोर्ट के उस फैसले पर जांच करने की सहमति जताई, जिसमें नाबालिग से छेड़छाड़ के बाद प्रतिद्वंद्वी पक्षों के बीच समझौता होने के बाद केस को रद्द कर दिया गया था। सीजेआई यूयू ललित और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने मामले से निपटने के लिए मदद के तौर पर वरिष्ठ अधिवक्ता आर बसंत को न्याय मित्र नियुक्त किया है।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में गंगापुर के निवासी रामजीलाल बैरवा ने हाईकोर्ट द्वारा एक गंभीर आपराधिक मामले को बंद करने के फैसले के खिलाफ जनहित याचिका दायर की। इसमें बताया गया कि पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया गया। पीठ ने राजस्थान सरकार और डीजीपी को नोटिस जारी किया। मामले में 31 अक्तूबर तक सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

यह था मामला

6 जनवरी को स्कूल में 15 साल की छात्रा के शील को कथित तौर पर अपमानित किया गया था। पिता ने केस दर्ज कराया, लेकिन पुलिस ने प्राथमिकी में आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया। इसके बाद दोनों के बीच कथित समझौता किया गया था। हाईकोर्ट ने पेश समझौते को ध्यान में रखते हुए आरोपी द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करके कार्यवाही को रद्द कर दिया था।

रेरा नियमों को लेकर राज्यों से 4 सप्ताह में मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को चार सप्ताह का समय दिया है, जिन्होंने रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) (रेरा) अधिनियम, 2016 और संबंधित नियमों के कार्यान्वयन में बताए गए भिन्नताओं पर अपना जवाब दाखिल नहीं किया है।

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने चेतावनी दी कि यदि निर्धारित समय के भीतर अपेक्षित जवाब दाखिल नहीं किया जाता है तो आवास और शहरी विकास के प्रमुख सचिव देरी की व्याख्या करने के लिए अदालत में उपस्थित होंगे। शीर्ष अदालत अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें देश भर में एक मॉडल बिल्डर-खरीदार समझौते को लागू करने की मांग की गई थी।

ग्राहकों की जानकारी साझा करने के निर्देश के खिलाफ बैंकों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई

ग्राहकों की जानकारी का खुलासा करने के भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के निर्देश के खिलाफ कुछ बैंकों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। बैंकों ने याचिका में आरबीआई के उस निर्देश को चुनौती दी है, जिसमें आरटीआई के तहत ग्राहक के साथ ही बैंकों के कामकाज और कर्मचारियों से संबंधित संवेदनशील जानकारी साझा करने को कहा गया है। सुप्रीम कोर्ट याचिका पर सुनवाई को तैयार हो गया है।

जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक मध्यस्थ गिरीश मित्तल द्वारा उठाई गई प्रारंभिक आपत्तियों को खारिज कर दिया। उन्होंने इन याचिकाओं को यह दलील देते हुए खारिज करने की मांग की थी कि ऐसे खुलासों के विषय में शीर्ष अदालत अपने पूर्व के निर्णयों में स्थिति स्पष्ट कर चुकी है। अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया उस स्तर पर सूचना के अधिकार और निजता के अधिकार में संतुलन पर विचार नहीं किया गया था।

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