दिल्ली
पीड़ितों को मुआवजा देना सजा कम करने का आधार नहीं हो सकता : सुप्रीम कोर्ट
paliwalwaniनई दिल्ली. (पीटीआई,) सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पीड़ित को हर्जाना देना सजा कम करने का आधार नहीं हो सकता। यदि सजा कम करने के लिए मुआवजे का भुगतान एक विकल्प बन जाता है, तो इसका आपराधिक न्याय व्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
आपराधिक मामले में पीड़ित को मुआवजा देने का उद्देश्य उन लोगों को राहत पहुंचाना है, जिन्हें अपराध के कारण नुकसान उठाना पड़ा हो या चोट पहुंची हो। शीर्ष अदालत ने कहा, इसका नतीजा यह होगा कि जिन अपराधियों के पास बहुत सारा पैसा होगा, वे न्याय से बच जाएंगे। इससे आपराधिक कार्यवाही का मूल उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा।
निर्णय सुनाते समय पीड़ितों को मुआवजा देने का अधिकार
बताते चलें, सीआरपीसी की धारा 357 न्यायालय को दोषसिद्धि का निर्णय सुनाते समय पीड़ितों को मुआवजा देने का अधिकार देती है। जस्टिस जेबी पार्डीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, पीड़ित को मुआवजा देना अभियुक्त पर लगाए गए दंड को कम करने का आधार नहीं हो सकता है। सीआरपीसी की धारा 357 का उद्देश्य पीड़ित को आश्वस्त करना है कि उन्हें आपराधिक न्याय प्रणाली में भुलाया नहीं गया है।
एक आपराधिक मामले में दो व्यक्तियों की सजा हुई कम
न्यायालय ने यह टिप्पणी राजेंद्र भगवानजी उमरानिया नामक एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की। याचिका में गुजरात हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें एक आपराधिक मामले में दो व्यक्तियों की पांच साल की सजा को घटाकर चार साल कर दिया गया था।
हाई कोर्ट ने सजा को लेकर कह दी यह बात
हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि दोषी पीड़ित को 2.50 लाख रुपये का भुगतान कर दें तो उन्हें चार साल की सजा भी नहीं काटनी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घटना को 12 वर्ष बीत चुके हैं और दोषियों ने पहले ही पांच लाख रुपये जमा कर दिए हैं। पीठ ने कहा, हम उन्हें चार वर्ष की अतिरिक्त सजा भुगतने का निर्देश देने के पक्ष में नहीं हैं।