दिल्ली
कोर्ट की बड़ी टिप्पणी- ‘WhatsApp Chats ठोस सबूत नहीं हो सकते’, दिल्ली दंगों से जुड़े 5 मर्डर केस में सुनाया फैसला
PALIWALWANI
2020 Delhi Riots:के एक कोर्ट ने साल 2020 में हुए उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान दर्ज पांच हत्या के मामलों में फैसला सुनाया है कि व्हाट्सएप चैट ठोस सबूत नहीं हो सकते। इतना ही नहीं कोर्ट ने यह भी कहा कि इन चैट को सबसे अच्छे तरीके से एक पुष्ट सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। सारे पांच केसों में प्रोसिक्यूशन ने सबूत के तौर पर व्हाट्सएप चैट पर काफी हद तक भरोसा किया था।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, ये 9 लोगों की हत्या के सिलसिले में दर्ज 9 मामलों में से से हैं। इनमें शव दंगों के एक हफ्ते बरामद किए गए थे। बाकी चार मामलों में से एक में आरोपी को बरी कर दिया गया है और तीन में आखिरी बहस और आरोपियों के बयानों की सुनवाई चल रही है। दंगों में कुल 53 लोग मारे गए और 500 से ज्यादा घायल हुए। सभी पांच मामलों में दिल्ली पुलिस खास तौर पर ‘कट्टर हिंदू एकता’ नाम के एक व्हाट्सएप ग्रुप की चैट पर डिपेंड थी। पुलिस ने जो चार्जशीट दायर की है। उसमें भी इस ग्रुप का नाम है।
व्हाट्सएप ग्रुप पर लोकेश सोलंकी ने क्या लिखा था
चार्जशीट के मुताबिक, आरोपियों में से एक लोकेश सोलंकी के कथित तौर पर व्हाट्सएप ग्रुप पर लिखा था, ‘तुम्हारे भाई ने 9 बजे 2 मुस्लिम लोगों की हत्या कर दी है।’ सोलंकी से पूछताछ के बाद अन्य लोगों की गिरफ्तारी हुई। इन पर 9 हत्याओं का आरोप लगाया गया। आरोपी को बरी करते हुए कड़कड़डूमा कोर्ट के एडिशनल सेशन जज पुलस्त्य प्रमाचला ने सभी पांच आदेशों में कहा, ‘इस तरह के पोस्ट केवल ग्रुप के अन्य सदस्यों की नजर में हीरो बनने के इरादे से ग्रुप में डाले जा सकते हैं। यह बिना सच्चाई के शेखी बघारने जैसा हो सकता है। इसलिए, जिन चैट पर भरोसा किया गया है, वे यह दिखाने के लिए ठोस सबूत नहीं हो सकते कि आरोपी ने वास्तव में दो मुस्लिम व्यक्तियों की हत्या की थी। इन चैट को ज्यादा से ज्यादा सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।’ पुलिस ने सभी 9 हत्या के मामलों में इन्हीं चैट पर भरोसा किया।
विश्वसनीय गवाहों की तरफ कोर्ट ने किया इशारा
कोर्ट ने आरोपियों का बरी करते हुए विश्वसनीय गवाहों की कमी की तरफ भी इशारा किया। हाशिम अली की हत्या के सिलसिले में दायर एक मामले में कोर्ट ने 30 अप्रैल को अपने फैसले में कहा कि कोई चश्मदीद गवाह नहीं था और 12 आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने कहा, ‘वे (व्हाट्सएप चैट) अपनी कमजोरियों के कारण दोषसिद्धि के लिए एकमात्र आधार नहीं बन सकते हैं और उन्हें स्वतंत्र, विश्वसनीय साक्ष्य द्वारा समर्थित होना चाहिए।’ अदालत ने कहा एक गवाह को छोड़कर किसी और ने घटना को देखने का दावा नहीं किया।
कोर्ट ने 28 मार्च को भी एक फैसला सुनाया था और उसमें कोर्ट ने कहा था कि उसे अमीन की हत्या के बारे में तो यकीन है, लेकिन उसकी हत्या की घटना के बारे में यकीन नहीं है। इस मामले में भी एक गवाह को छोड़कर बाकी सभी अपने बयान से पलट गए थे। भूरे अली की हत्या के संबंध में 28 मार्च को सुनाए गए एक अन्य फैसले में कोर्ट ने कहा कि किसी भी गवाह ने भूरे पर हमले और हत्या की घटना को देखने की पुष्टि नहीं की।
कोर्ट ने 27 मार्च को अपने एक फैसले में क्या कहा?
27 मार्च को कोर्ट ने अपने एक अन्य फैसले में कहा कि वह हमजा की हत्या की घटना के बारे में निश्चित नहीं है। उसने आगे कहा, ‘जब साक्ष्यों से यह स्पष्ट नहीं होता कि किस भीड़ ने हमजा की हत्या की, तो यह कहना केवल औपचारिकता है कि रिकॉर्ड पर ऐसा कोई सबूत नहीं है जो यह दिखाए कि कोई भी आरोपी अपराधी भीड़ का सदस्य था।’ मामले में सभी गवाह अपने बयान से पलट गए थे। 13 मई को पारित फैसले में एएसजे प्रमाचला की अदालत ने हत्या के सभी आरोपियों को बरी कर दिया, लेकिन सोलंकी को सार्वजनिक शरारत करने वाले बयान देने और दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोप में दोषी ठहराया। दिल्ली दंगों के आरोपी शाहरुख को कोर्ट से अंतरिम जमानत मिल गई थी।