अपराध
HIGH PROFILE CASE : 600 करोड़ की संपत्ति के लिए मैसूर राजघराने के पूर्व दीवान की पोती को जिंदा दफनाने वाला चाहता है "आज़ादी"
Paliwalwaniस्वयंभू संत स्वामी श्रद्धानंद उर्फ मुरली मनोहर मिश्रा, 83 साल की उम्र में एमपी के सागर जिले में अपनी पत्नी शकीरा को जिंदा दफनाने के आरोप में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। वह अपना शेष जीवन जेल की दीवारों के बाहर जीना चाहता है, उसने दलील दी है कि जेल में उसका व्यवहार अच्छा रहा है। श्रद्धानंद की पत्नी शकीरा मैसूर राजघराने के पूर्व दीवान सर मिर्जा इस्माइल की पोती थी।
जिला न्यायाधीश देव नारायण मिश्रा रविवार की शाम सागर सेंट्रल जेल के नियमित निरीक्षण के लिए गए थे, इस दौरान 27 साल से जेल में बंद श्रद्धानंद ने राष्ट्रपति से माफी की मांग की है। श्रद्धानंद पहले इस मामले में बेंगलुरु सेंट्रल जेल में बंद था, उसके अनुरोध पर 2011 में उनके गृह राज्य में सागर सेंट्रल जेल में ट्रांसफर कर दिया गया था। इतने वर्षों में श्रद्धानंद से मिलने जेल में सिर्फ उनके भाई गए, जो सागर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे। सूत्रों ने बताया कि वह भी आखिरी बार दो साल पहले आए थे। श्रद्धानंद ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर अच्छे आचरण के आधार पर रिहाई की गुहार लगाई है।
शकीरा नमाजी खलीली की हत्या काफी समय तक मीडिया में सुर्खियां बनी थीं। शकीरा ने भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी अकबर खलीली को तलाक देकर 1986 में श्रद्धानंद उर्फ मुरली मनोहर मिश्रा से शादी की थी। शकीरा उस वक्त 600 करोड़ रुपये की संपत्ति की मालकिन थी। उनकी चार बेटियां थीं, इसके बावजूद बेटे की चाहत में श्रद्धानंद से शादी की थी। 50 की उम्र में मां की शादी से उनकी बेटियां नाराज थीं। तीन बेटियों ने शकीरा से अपना रिश्ता तोड़ लिया था। साथ ही परिवार के दूसरे लोग भी शकीरा से अलग हो गए थे।
अप्रैल-मई 1991 में शकीरा खलीली के रहस्यमय तरीके से गायब होने की खबर सामने आई। बहुत दिनों तक शकीरा के बारे में पता नहीं चलने पर उनकी बेटी सबा खलीली ने 10 जून को बेंगलुरू पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई कि 19 अप्रैल से उनकी मां लापता है। वहीं, शकीरा से उनकी मां गौहर नमाजी लापता होने से छह दिन पहले आखिरी बार मिली थी। तीन साल तक शकीरा का कुछ पता नहीं चल पाया। पुलिस केस बंद होने वाला था।
एक शराबी से मिले लीड के बाद पुलिस का ध्यान श्रद्धानंद की तरफ गया। इसमें यह बात सामने आई कि श्रद्धानंद ने शकीरा को जहर मिलाकर मार दिया और उसे बेंगलुरु के रिचमंड रोड स्थित महल के पिछवाड़े में जिंदा दफना दिया। ये सब कुछ उसने संपत्ति पर कब्जा करने के लिए किया था। उन दिनों इसकी कीमत 600 करोड़ रुपये से अधिक थी। शराबी कोई और नहीं, शकीरा के महल में काम करने वाला नौकर था।
उसके बाद शकीरा का शव कब्र को खोदकर निकाला गया और नौकरों के बयानों के आधार पर 30 अप्रैल 1994 को श्रद्धानंद को गिरफ्तार कर लिया गया। जांच में यह पाया गया कि श्रद्धानंद ने शकीरा की संपत्तियों की पावर ऑफ अटॉर्नी और एक वसीयत अपने नाम करा लिया था, उसके बाद उसकी हत्या कर दी। साल 2000 में ट्रायल कोर्ट ने उसे फांसी की सजा सुनाई। 2005 में कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी फांसी की सजा को बरकरार रखा था। इसके बाद श्रद्धानंद ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। 2007 में यह केस डबल बेंच के पास चला गया। 2008 में सुप्रीम कोर्ट मौत की सजा को आजीवान कारावास में बदल दिया। वहीं, इसके बाद से श्रद्धानंद संपत्ति के लिए कानूनी लड़ाई भी लड़ रहा है।
श्रद्धानंद उर्फ मुरली मनोहर मिश्रा रामपुर के नवाब की संपत्ति की देखभाल करता था। वहीं, शकीरा 1983 में रामपुर नवाब के बुलावे पर दिल्ली गई थी। यहीं पर उनकी मुलाकात श्रद्धानंद से हुई थी। शकीरा उन दिनों लैंड सीलिंग कानूनों को लेकर परेशान थी। श्रद्धानंद इन मामलों का अच्छा जानकार था। इसके बाद वह शकीरा की मदद से बेंगलुरु पहुंच गया और उसकी संपत्ति देखकर अवाक रह गया। फिर श्रद्धानंद और शकीरा की नजदीकियां बढ़ने लगी। इस दौरान श्रद्धानंद को पता चला कि शकीरा को बेटे की चाहत है। इसके बाद उसने शकीरा को बहकाना शुरू कर दिया और 1985 में पति से तलाक करवा दिया। फिर 1986 में उससे शादी कर ली।