भोपाल
सूचना आयोग कोई हाईकोर्ट नहीं है जिसमें बार-बार पेशी करवाई जाए : सूचना आयुक्त राहुल सिंह
Sunil Paliwal-Anil Bagora
● जुर्माना एवं हर्जाना लगाने का अधिकार राज्य सूचना आयोग के पास सुरक्षित
भोपाल-मध्यप्रदेश
(प्रियेश कुमार पाण्डेय...) सूचना आयुक्त राहुल सिंह, सत्र के 18 वें ज़ूम मीटिंग वेबीनार का हुआ सफल आयोजन, सूचना आयुक्त राहुल सिंह की अध्यक्षता में हुआ आयोजन - पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी एवं पूर्व मप्र सूचना आयुक्त आत्मदीप रहे विशिष्ट अतिथि सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 को जन जन तक पहुंचाने और मजबूत बनाने के उद्देश्य से मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह की अध्यक्षता में एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी एवं अन्य सहयोगियों के द्वारा प्रत्येक रविवार को सुबह 11ः00 बजे से दोपहर 1ः00 बजे तक जूम मीटिंग वेबीनार का आयोजन सतत रूप से किया जा रहा है। दिनांक 25 अक्टूबर 2020 को इस जूम मीटिंग वेबीनार का 18 वां अधिवेशन संपन्न हुआ जिसमें विशिष्ट अतिथि के रूप में पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, पूर्व राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप सम्मिलित हुए। कार्यक्रम का संयोजन एवं प्रबंधन सामाजिक कार्यकर्ताओं शिवानंद द्विवेदी, नित्यानंद मिश्रा, अंबुज पांडे, शिवेंद्र मिश्रा के द्वारा किया गया। कार्यक्रम में देश के कोने कोने से विभिन्न राज्यों से अधिवक्ता सामाजिक कार्यकर्ता आरटीआई एक्टिविस्ट आरटीआई आवेदक आदि सम्मिलित हुए। मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, नई दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उड़ीसा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल आदि राज्यों से कार्यकर्तागण सम्मिलित हुए।
● जुर्माना एवं हर्जाना लगाने का अधिकार राज्य सूचना आयोग के पास सुरक्षित : सूचना आयुक्त राहुल सिंह
25 अक्टूबर 2020 को रविवार के दिन सुबह 11ः00 बजे से दोपहर 1ः00 बजे तक आयोजित ज़ूम मीटिंग वेबीनार के दौरान जुर्माने का अधिकार एवं निर्धारण विषय पर चर्चा करते हुए एवं उपस्थित जिज्ञासुओं के प्रश्नों का जवाब देते हुए सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने बताया की जुर्माना एवं हर्जाना लगाने का अधिकार न तो लोक सूचना अधिकारी के पास होता है और न ही प्रथम अपीलीय अधिकारी के पास। इसका अधिकार मात्र राज्य सूचना आयुक्त के पास होता है जिसमें धारा 19(3) एवं 19(8) की शक्तियों का प्रयोग करते हुए प्रकरण के गुणदोष के आधार पर राज्य सूचना आयुक्त जुर्माने एवं कंपनसेशन का निर्धारण करते हैं। जुर्माना लगाए जाने में यदि सूचना के अधिकार अधिनियम का उल्लंघन हुआ है उस स्थिति में प्रतिदिन 250 रुपये के हिसाब से अधिकतम 25 हज़ार रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है जबकि हर्जाने के लिए अथवा कंपनसेशन की स्थिति में आवेदक की माग और उसे जो भी नुकसान हुआ है उसके तर्कसंगत आधार पर ही कंपनसेशन लगाए जाने की कार्यवाही की जाती है।
● धारा 18 एवं 19(3) के अंतर को समझना जरूरी : सूचना आयुक्त राहु सिंह
इस बीच झारखंड के कार्यकर्ता एके सिंह के द्वारा बताया गया कि उन्होंने आरटीआई दायर की थी और धारा 18 के तहत शिकायत प्रस्तुत की थी जिस पर सूचना आयोग के द्वारा कहा गया था कि धारा 18 के तहत कंपनसेशन का प्रावधान नहीं है और धारा 19(3) के तहत द्वितीय अपील करें। इस पर मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि यह बात बिल्कुल सही है और केंद्रीय सूचना आयोग के भी निर्णय है और हाईकोर्ट का भी डिसीजन है जिसमें धारा 18 के तहत शिकायतें तो की जा सकती है लेकिन न तो जानकारी प्राप्त की जा सकती है और न ही कंपनसेशन का प्रावधान होता है। जुर्माने की कार्यवाही धारा 18 में निश्चित होती है। अतः कंपनसेशन के लिए द्वितीय अपील धारा 19(3) के तहत ही करनी पड़ेगी जिस पर जानकारी का भी प्रावधान रहता है। जुर्माना भी लगाया जा सकता है और साथ में हर्जाने का भी प्रावधान रहता है। यह बात ध्यान रखनी चाहिए की कंपनसेशन की मांग के समय वह स्पष्ट तौर पर उल्लेखित करें की कंपनसेशन उन्हें क्यों चाहिए अर्थात सूचना रोके जाने अथवा न मिलने के कारण उनको जो भी क्षति हुई है उसका स्पष्ट विवरण देना अनिवार्य होता है।
● मात्र नियुक्ति के संबंध मैं मार्कशीट एवं दस्तावेज ही आरटीआई से प्राप्त किए जा सकते हैं
रीवा से मदन गोपाल तिवारी ने पूछा कि उन्होंने अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय में एक रोजगार सहायक की नियुक्ति से संबंधित कुछ दस्तावेज चाहे थे जिसमें रोजगार सहायक के द्वारा पद पर रहते हुए नियमित एमफिल डिग्री हासिल की गई थी जिसकी उन्होंने शिकायत जनपद, जिला स्तर एवं यूनिवर्सिटी में भी की थी कि एक व्यक्ति पद पर रहते हुए कैसे नियमित डिग्री हासिल कर सकता है। इस पर यूनिवर्सिटी द्वारा बताया गया था की डिग्री सर्टिफिकेट की मात्र एक ही प्रति उनके पास मौजूद रहती है जो उन्होंने छात्र को दे दिया था और दूसरी प्रति उनके पास उपलब्ध नहीं है। इस पर सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि यदि उस डिग्री के आधार पर रोजगार सहायक की नियुक्ति हुई थी तब निश्चित तौर पर वह डिग्री मार्कशीट और दस्तावेज सूचना के अधिकार कानून के तहत प्राप्त किए जा सकते हैं लेकिन यदि नियुक्ति के संदर्भ में उस दस्तावेज का प्रयोग नहीं हुआ है तो किसी व्यक्ति की मार्कशीट डिग्री सर्टिफिकेट उसका व्यक्तिगत कागजात होते हैं जिसे थर्ड पार्टी के तौर पर वह व्यक्ति विभाग को देने से मना कर सकता है। और कई बार ऐसा भी होता है कि किसी की निजी डिग्री सर्टिफिकेट प्राप्त कर उसका गलत उपयोग भी किया जा सकता है इसलिए इसका निर्धारण आयोग के समक्ष ही किया जा सकता है कि चाही गई डिग्री सर्टिफिकेट नियुक्ति के संदर्भ में है तो उचित है वरना थर्ड पार्टी की असहमति के आधार पर लोक सूचना अधिकारी देने से मना कर सकते हैं।
● अच्छे अंक प्राप्त न होने की स्थिति में आवेदक के लिए मार्कशीट पब्लिक करना शर्मिंदगी वाला साबित हो सकता है : आत्मदीप
मदन गोपाल तिवारी एवं नागपुर से नवीन अग्रवाल के डिग्री सर्टिफिकेट संबंधी आरटीआई पर पूर्व राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने कहा कि किसी व्यक्ति की डिग्री सर्टिफिकेट उसकी व्यक्तिगत जानकारी होती है जिसे वह व्यक्ति समाज में साझा करें यह आवश्यक नहीं है। क्योंकि कई बार अच्छे अंक प्राप्त नहीं होते हैं जिसकी वजह से व्यक्ति अपनी मार्कशीट सर्टिफिकेट सार्वजनिक तौर पर साझा करने में शर्मिंदगी महसूस करता है। इसलिए बिना उस व्यक्ति की अनुमति के कोई भी लोक सूचना अधिकारी मार्कशीट सर्टिफिकेट नहीं दे सकता है क्योंकि यह थर्ड पार्टी की जानकारी कहलाती है लेकिन यदि यह सर्टिफिकेट नियुक्ति संबंधी दस्तावेज है तो निश्चित तौर पर पब्लिक प्रॉपर्टी समझकर साझा किया जाना चाहिए।
● नैतिकता और शिष्टता के आधार पर ही जानकारी अस्वीकार की जा सकती है अन्यथा की स्थिति में देय है : शैलेश गांधी
एक आवेदक के धारा 11 और धारा 8(1)(एच) एवं 8(1)(जे) के तहत आवेदन को अस्वीकार किए जाने और जानकारी न दिए जाने के विषय को लेकर पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने कहा कि हमारा यह मत है कि 99 प्रतिशत जानकारी पब्लिक पोर्टल पर साझा की जानी चाहिए और उसमें धारा 8(1)(एच) एवं 8(जे)(जे) अथवा धारा 11 का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है। सिर्फ वह जानकारी पब्लिकली साझा नहीं की जानी चाहिए जो नैतिकता और शिष्टता अर्थात मोरालिटी एंड डिसेंसी के हनन के तहत आती है। अर्थात यदि कोई ऐसी जानकारी है जिससे नैतिकता और शिष्टता प्रभावित होती है वह जानकारी रोंकी जा सकती है लेकिन वह भी निर्धारण आयोग ही करेगा कि किस प्रकार और किन आधारों पर जनाकारी रोंकी जानी चाहिए।
● 48 घंटे अर्थात धारा 7(1) के तहत पेंशन रोकने संबंधी जानकारी मांगी जा सकती है : सूचना आयुक्त राहुल सिंह
रीवा से कृष्ण नारायण दुबे ने जानना चाहा कि उनके एक मित्र के पड़ोसी हैं जो शासकीय सेवानिवृत्त बुजुर्ग व्यक्ति हैं जिनकी उम्र 83 वर्ष है और पिछले कुछ वर्षों से उनकी पेंशन रुक गई है जिसका कारण नहीं बताया जा रहा है। इस विषय में वह क्या करें...! इसका जवाब देते हुए मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि एक बुजुर्ग व्यक्ति की पेंशन रोका जाना मतलब उसके जीवन जीने के अधिकार को छीनने जैसा है। इसलिए निश्चित तौर पर आरटीआई की धारा 7(1) के तहत 48 घंटे के भीतर संबंधित ट्रेजरी विभाग में आरटीआई दायर कर पेंशन रोके जाने का कारण जाना जा सकता है और यदि 48 घंटे के भीतर जवाब न मिले तो अगले 24 घंटे के अंदर प्रथम अपील कर सीधे द्वितीय अपील और धारा 18 के तहत शिकायत हमारे समक्ष सूचना आयोग में भेजी जा सकती है जिस पर त्वरित कार्यवाही होगी। आयुक्त श्री सिंह ने कहा कि जब सूचना आयोग में इसकी शिकायत की जाए एवं धारा 19(3) की शिकायत की जाए तो फोन पर बात कर हमारे सेक्रेटरी को अवश्य बता दिया जाए कि 48 घंटे से संबंधित आरटीआई है जिस पर त्वरित कार्यवाही हो सके।
● जानकारी मांगने पर धमका रहे और फर्जी मुकदमे में फंसाने की कर रहे साजिश इस पर आवेदक क्या करें
मऊगंज के नौढिया क्षेत्र से रज्जन पटेल नामक आवेदक ने कहा कि उनके द्वारा आरटीआई दायर कर पंचायत विभाग से पंचायत सचिव से जानकारी चाही गई थी जिस पर सचिव द्वारा समय पर जानकारी नहीं दी गई और आवेदन वापस लेने के लिए दबाव बनाया जा रहा है और कहा जा रहा है की फर्जी मुकदमे में फंसा देंगे और जानकारी नहीं देंगे इस पर आवेदक क्या करें...! इसका जवाब देते हुए सूचना आयुक्त राहुल सिंह, केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी एवं आत्मदीप ने कहा कि निश्चित तौर पर यह एक आपराधिक कृत्य है और कोई भी लोक सूचना अधिकारी के द्वारा जानकारी छुपाकर धमकी नहीं दी जा सकती और न ही झूठे मामलों में फंसाने की बात कही जा सकती है। यदि ऐसा किया जा रहा है तो निश्चित तौर पर सीधे संबंधित थाने एवं एसपी के समक्ष इसकी शिकायत प्रस्तुत कर एफ आई आर दर्ज करवानी चाहिए और साथ में संबंधित सूचना आयोग में इसकी शिकायत करनी चाहिए। जब शिकायत हमारे समक्ष आएगी तो हम निश्चित तौर पर अपनी तरफ से कार्यवाही करेंगे।
● एफ आई आर दर्ज नहीं की शिकायत की जांच उसी अधिकारी से कराई और उसने शिकायत को ही फर्जी बता
भोपाल से शब्बीर ने बताया कि उन्होंने पुलिस विभाग में एक कंप्लेंट की थी और एसआई के पास गए और एफ आई आर दर्ज करवाने के लिए कहा था लेकिन न तो उनका आवेदन लिया गया और न ही एफ आई आर दर्ज की गई जिसके विषय में उनके द्वारा आरटीआई भी लगाई गई और साथ में वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी शिकायत भी की गई लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा शिकायत सीधे उसी एस आई के पास भेज दी गई जिसकी उन्होंने कंप्लेन की थी तो सभी ने पूछा कि क्या यह उचित था कि जिसकी शिकायत की गई है उसी को जांच के लिए कागज भेजा गया? इस पर सूचना आयुक्त एवं पूर्व सूचना आयुक्त ने कहा कि यह गलत है और जिस व्यक्ति की शिकायत की गई है तो निश्चित तौर पर जांच उस व्यक्ति के द्वारा नहीं की जानी चाहिए बल्कि अन्य अधिकारियों के द्वारा की जानी चाहिए और इसकी एक बार पुनः वरिष्ठ अधिकारियों से शिकायत की जानी चाहिए।
● सूचना आयोग कोई हाईकोर्ट नहीं है जिसमें बार-बार पेशी करवाई जाए : सूचना आयुक्त राहुल सिंह
दिल्ली से अशोक गोयल एवं रायपुर छत्तीसगढ़ से देवेंद्र अग्रवाल के द्वारा अपनी समस्याएं रखी गई और उनके द्वारा बताया गया कि उनकी सुनवाई रायपुर सूचना आयोग में थी लेकिन पीआईओ ही उपस्थित नहीं हुए उस स्थिति में आयोग ने कहा कि अब अगली पेशी निर्धारित की जाएगी इस पर देवेंद्र अग्रवाल ने कहा कि ऐसे पेशियां क्यों निर्धारित की जाए...! जिस पर छत्तीसगढ़ सूचना आयोग ने उनकी सुनवाई 1 साल बाद की तिथि में रख दी जिसका उन्होंने विरोध किया। इस पर मध्यप्रदेश सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि अभी हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट के द्वारा एक निर्णय दिया गया था जिसमें कहा गया था कि सूचना आयोग कोई कोर्ट नहीं है जिसमें बार-बार पेशी करवाई जाए। इसलिए आयोग में बार-बार पेशी करवाए जाने का कोई प्रावधान नहीं है और यह गलत है जिसकी शिकायत की जा सकती है और साथ में इसके विरुद्ध संबंधित हाईकोर्ट में याचिका दायर की जा सकती है।
● पालीवाल वाणी ब्यूरो-Sunil Paliwal_Anil Bagora...✍️
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