भोपाल
दिग्विजयसिंह की नाराजगी बरकरार : दिनभर बंगले में रहे और रात को प्रभारी महासचिव से लंबी बैठक की
Paliwalwaniप्रवीण कुमार खारीवाल
भोपाल :
मध्यप्रदेश कांग्रेस में प्रत्याशी चयन को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह की नाराजगी दूसरे दिन भी बरकरार रही। चुनावी दौरे निरस्त कर सिंह शुक्रवार दिनभर भोपाल बंगले पर एकांत में रहे।
मालवा संभाग के कुछ प्रत्याशी चयन को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद दिग्विजयसिंह कमलनाथ की कोटरी के कुछ नेताओं से खासे नाराज हैं। गुरुवार को उन्होंने अपनी झाबुआ जिले की चुनावी यात्रा को स्थगित कर राजधानी में डेरा डाल दिया। सिंह का मानना है कि मध्यप्रदेश में भाजपा से मुकाबला बेहद नजदीक का है। ऐसे में कुछ सीटों पर मनमानीपूर्वक फैसले हमारी मेहनत पर पानी फेर सकते हैं। सिंह की हालिया नाराजगी नाथ समर्थक सज्जनसिंह वर्मा और राजीव सिंह से बताई जा रही है।
दिग्विजयसिंह की नाराजगी की खबर जब बुधवार को ‘प्रजातंत्र’ ने जगजाहिर की तो दिनभर टोह लेने का खेल चलता रहा। कांग्रेस के बड़े नेता कमलनाथ और दिग्विजयसिंह के कदमों पर नजरे गढ़ाएं बैठे रहे। रात को दिग्विजयसिंह ने प्रभारी महासचिव रणदीपसिंह सूरजेवाला से मुलाकात की। बताते हैं कि इस बातचीत में सर्वे की आड़ में प्रत्याशी चयन, कुछ सीटों पर पैसे लेकर प्रत्याशी बनाने और कांग्रेस के हित में प्रत्याशी नहीं बदले जाने की चर्चा अहम रही। खबर यह भी है कि सिंह ने भाजपा से मुकाबले को लेकर अभी तक ठोस प्रचार रणनीति नहीं बनाए जाने पर भी आपत्ति दर्ज कराई। उधर, कमलनाथ सिंह के इस कदम से सन्न रह गए हैं। दिग्विजयसिंह ने शनिवार को प्रियंका गांधी वाड्रा की जबलपुर रैली से भी दूरी बना रखी है। अंदरखाने की खबर है कि कुछ सीटों पर बदलाव के बाद ही सिंह प्रचार में जुटेंगे।
- बड़े नेता भी असहज : अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने कुछ माह पूर्व रणदीपसिंह सूरजेवाला को मध्यप्रदेश का प्रभारी बनाया। बीते पांच वर्षों में दीपक बावरिया, मुकूल वासनीक और जे.पी. अग्रवाल को मध्यप्रदेश का प्रभारी बनाया जा चुका है, लेकिन कोई भी प्रभारी कमलनाथ के ‘प्रभाव’ के आगे नहीं टिक पाया। प्रभारी सचिवों की स्थिति तो और भी दयनीय बताई जाती है। यह तो हुई संगठन की बात। प्रत्याशियों के चयन के लिए बनी स्क्रीनिंग कमेटी के सदर भंवर जितेन्द्रसिंह, सहयोगी अजय लल्लू और प्रदेश के मनोनीत सदस्यों की भी कमलनाथ के आगे एक नहीं चली। प्रदेश के बड़े नेता जब दिल्ली दरबार में अपना दर्द बयां करते हैं तो कांग्रेस के संगठन प्रभारी महासचिव के.सी. वेणुगोपाल भी मध्यप्रदेश में सीधा हस्तक्षेप करने से बचते नजर आते हैं।
- नजरअंदाज दूसरी पंक्ति के नेता : मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की दल बदली के बाद यह माना जा रहा था कि कांग्रेस के सभी क्षत्रप भाजपा से मुकाबले के लिए सहजता से एक हो जाएंगे, लेकिन चुनाव नजदीक आते-आते कांग्रेस फिर बिखर गई। सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया, अरुण यादव, अजय सिंह, विवेक तन्खा, डॉ. गोविंद सिंह, जीतू पटवारी जैसे नेता खुद को ठगा-सा महसूस करने लगे। स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में एक-दो बार ऐसा वाक्या भी सामने आए जब प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने बाकी नेताओं को प्रत्याशियों के नाम पैनल में रखने से ही रोक दिया। प्रदेश के अनेक इलाकों में असर रखने वाले ये नेता अब अपने-अपने जिलों में अपनी साख बचाने में लगे हुए हैं।
सर्वे धरे रह गए मध्यप्रदेश में कांग्रेस के अधिकांश बड़े नेता और जिलाध्यक्षों की नाराजगी प्रत्याशी चयन प्रक्रिया को लेकर रही। अध्यक्ष कमलनाथ पिछले दो वर्षों से सर्वे के आधार पर प्रत्याशी चयन करने का दावा कर रहे थे, लेकिन सूची जारी होते-होते सारे दांवे सिफर हो गए। यह भी कहा गया था 40 से ज्यादा विधायक सर्वे में प्रत्याशी बनने योग्य नहीं है, लेकिन उन्हें भी टिकट दे दिए गए। कई विधानसभा क्षेत्रों में पैराशूट से प्रत्याशी उतार दिए गए है। मध्यप्रदेश कांग्रेस के इतिहास में यह पहला अवसर था जब ब्लाक, जिला और प्रदेश कांग्रेस कमेटी को प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया से दूर रखा गया है। एक पदाधिकारी ने बताया कि उन्हें याद ही नहीं आ रहा कि अध्यक्ष महोदय ने आखिरी बार प्रदेश पदाधिकारियों की सांझा बैठक कब बुलाई थी।
- रूतबा कायम है कमलनाथ का : स्कूल काल से कमलनाथ गांधी परिवार के नजदीक रहे हैं। कमलनाथ इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और राहुल गांधी के अलावा कई पूर्व प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने वाले चुनिंदा नेताओं में शुमार रहे हैं। संजय गांधी के अभिन्न मित्र होने की वजह से उन्हें चार दशकों से गांधी परिवार ने विशेष तरजीह दी। केंद्र की राजनीति में उन्हें किंगमेकर और ट्रबल शूटर का दर्जा प्राप्त था। जब कमलनाथ मध्यप्रदेश की राजनीति में सीधे तौर पर सक्रिय हुए तो उन्होंने दिल्ली दरबार से ‘वरदान’ प्राप्त किया कि किसी भी सूरत में मध्यप्रदेश में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। यहीं वजह है कि गांधी परिवार के सदस्य हो या कांग्रेस के आला पदाधिकारी मध्यप्रदेश में कोई हस्तक्षेप नहीं करता। इसी बीना पर कमलनाथ ने अपने तौर-तरीको से डेढ़ साल की सरकार और संगठन चलाया। कहते हैं कमलनाथ के लिए गए फैसले को बदलवाने में सामने वाले पक्ष को पसीने आ जाते हैं।
- टिकट बदल कांग्रेस : कांग्रेस की बिगड़ी हालत पर भारतीय जनता पार्टी चुटकी लेने लगी है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का कहना है कि मध्यप्रदेश में सोनिया कांग्रेस, खडक़े कांग्रेस, कमलनाथ कांग्रेस, दिग्विजय कांग्रेस और अब नकूलनाथ कांग्रेस भी खड़ी हो गई है। सभी टिकट बांट रहे हैं। दो दिनों से खबर आ रही है दिग्विजयसिंह रूठ गए हैं। अब कांग्रेस टिकट बदल कांग्रेस में तब्दील होती नजर आ रही है। मुख्यमंत्री ने कहा कि आने वाले दिनों में कांग्रेस की स्थिति और विकट होगी। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता नरेन्द्रसिंह सलूजा ने कहा कमलनाथ कहते थे उनकी चक्की धीरे लेकिन महीन पीसती है, लेकिन दिग्विजयसिंह की चक्की ने कमलनाथ को पीस डाला। सलूजा ने कहा कि दबाव बनाकर दिग्विजयसिंह ने ज्यादा टिकट झटक लिए हैं।