भोपाल
पदोन्नति मामले में सीएस द्वारा आज सभी विभाग प्रमुखों के साथ महत्वपूर्ण बैठक होगी : 4 लाख कर्मचारियों को सरकार देगी डबल प्रमोशन, 60 हजार का होगा डिमोशन
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पदोन्नति मामले में CS द्वारा 17 अक्टूबर को सभी विभाग प्रमुखों के साथ महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन
भोपाल.
मध्य प्रदेश में 9 साल बाद राज्य सरकार ने एक बार फिर पदोन्नति प्रक्रिया शुरू की है. अभी इसके लिए नियम बनाए जा रहे हैं. इससे मध्य प्रदेश शासन के 4 लाख से अधिक अधिकारी-कर्मचारी लाभान्वित होंगे. हालांकि सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन मिले 8 साल से अधिक समय बीत चुका है. ऐसे में वो डबल प्रमोशन के हकदार हैं.
इस पर भी सरकार ने विचार किया है. वहीं सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश से प्रमोशन के साथ आरक्षित वर्ग के अधिकारियों-कर्मचारियों पर डिमोशन का खतरा भी मंडरा रहा है. अब देखना ये है कि सरकार इस मामले का किस प्रकार पटाक्षेप करती है.
एक साथ नहीं मिलेगा डबल प्रमोशन
जिन कर्मचारियों और अधिकारियों को पदोन्नति मिले 8 साल से अधिक का समय बीत चुका है, या फिर जिन्होंने साल 2014-15 के बाद ज्वाइन किया और उनकी समयावधि 8 साल पूरी हो चुकी है. ऐसे कर्मचारियों-अधिकारियों को डबल प्रमोशन का लाभ सरकार देगी. हालांकि मुख्यमंत्री ने साफ तौर पर कहा है, कि कर्मचारियों को डबल प्रमोशन का लाभ तो मिलेगा, लेकिन एक साथ नहीं. बल्कि सरकार की मंशा है कि इस वर्ष एक प्रमोशन देने के बाद दूसरा प्रमोशन उनको अगले वर्ष दिया जाए. जिससे कर्मचारियों की कमी न हो.
इन कर्मचारियों पर लटकी डिमोशन की तलवार
सपाक्स संगठन के प्रदेश अध्यक्ष केएस तोमर ने बताया कि "साल 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सरकार ने एससी-एसटी वर्ग के अधिकारियों-कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण देने का नियम बनाया था. इस नियम के तहत साल 2016 तक प्रदेश में आरक्षित वर्ग के कई अधिकारियों-कर्मचारियों के प्रमोशन हुए. इससे आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को काफी फायदा हुआ, लेकिन ओबीसी समेत वो कर्मचारी-अधिकारी जो अनारक्षित वर्ग में थे, वो प्रमोशन में पीछे छूटते गए और उन्होंने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
जिसमें कोर्ट ने तथ्यों पर विचार करने के बाद इस पदोन्नति प्रक्रिया को रद्द कर दिया. लेकिन इस बीच आरक्षित वर्ग के जिन अधिकारियों-कर्मचारियों को पदोन्नति मिली है, ऐसे लोगों को डिमोशन का खतरा भी बना हुआ है."
हाई कोर्ट भी सुना चुका है फैसला
केएस तोमर ने बताया कि "पदोन्नति में आरक्षण नियम 2002 लागू होने के बाद से अब तक प्रदेश के 60 हजार से अधिक अधिकारियों-कर्मचारियों को प्रमोशन का लाभ मिल चुका है, लेकिन जब इसे हाईकोर्ट 2016 में रद्द कर चुका है, तो ऐसे में इसकी वैधता कितनी है. तोमर ने बताया कि अभी मध्य प्रदेश में प्रमोशन का कोई नियम नहीं है, इसलिए ठीक है, लेकिन जैसे ही सरकार नए नियम बनाएगी, जो कर्मचारी गलत तरीके से प्रमोशन का लाभ ले रहे हैं. उनको डिमोशन करना होगा.
हाईकोर्ट ने भी 31 मार्च 2024 के आदेश में कहा है कि 2002 के नियम के आधार पर जिन एससी-एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण का लाभ मिला है. उन सभी का डिमोशन किया जाएग. हालांकि सरकार ऐसा करने से बचना चाहती है, इसलिए नए नियमों को ऐसा बना रही है. जिससे सबको समान रुप से पदोन्नति का लाभ मिल सके.
सरकार नहीं रख सकी थी अपना पक्ष
हालांकि मामले में 12 अगस्त को हुई सुनवाई के दौरान सरकार अपना पक्ष ठीक से प्रस्तुत नहीं कर सकी थी. सरकार के वकील महाधिवक्ता यह नहीं बता पाए थे कि प्रमोशन में आरक्षण के पुराने और नए नियमों में क्या अंतर है. इसके बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता सीएम वैद्यनाथन की सेवाएं ली हैं, लेकिन 25 सितंबर को वे कोर्ट में प्रस्तुत नहीं हुए और इस वजह से अब कोर्ट की सुनवाई को 16 अक्टूबर तक आगे बढ़ा दिया गया है. सरकार की कोशिश है कि 9 सालों से बंद प्रमोशन जल्द शुरू हो जाए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट में मामला अभी विचाराधीन है ऐसे में यदि प्रमोशन का लाभ दिया भी गया तो वह कोर्ट के अंतिम फैसले पर ही निर्भर करेगा.
विभागों को अंतिम आदेश का इंतजार
उधर कोर्ट का फैसला अभी नहीं आया हो, लेकिन विभागों ने प्रमोशन को लेकर अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं. माना जा रहा है कि प्रमोशन का लाभ प्रदेश के करीबन साढ़े 4 लाख कर्मचारियों को मिलेगा. इसके लिए कर्मचारियों की सीआर के आधार पर प्रस्ताव तैयार कर लिए हैं. हालांकि कोर्ट के फैसले के बाद ही इस पर कदम आगे बढ़ाए जाएंगे. माना जा रहा है कि अगले 3 माह में इस पर कोर्ट से मामला सुलझ सकता है और ऐसे में दिसंबर में कर्मचारियों को प्रमोशन मिल सकता है.





