भोपाल
कार्टून शो-पहला सीज़न’: एमसीयू में देश के दिग्गज कार्टूनिस्टों का महासंगम
नैवेद्य पुरोहित
नैवेद्य पुरोहित-79745 13139
भोपाल. माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में 5 दिसंबर 2025 का दिन एक ऐतिहासिक तारीख की तरह दर्ज हो गया। यह वह दिन था जब देश के 11 दिग्गज कार्टूनिस्ट पहली बार एक ही मंच पर इकट्ठा हुए। सभी ने अपने अनुभवों, विचारों, ह्यूमर, व्यंग्य और कला की बारीकियों के साथ एक अनूठा संगम प्रस्तुत किया। ‘कार्टून शो – पहला सीज़न’ सिर्फ एक आयोजन नहीं था, बल्कि यह उस कला की पुनर्स्थापना का उत्सव था जिसे कई बार “dying art” कहकर खारिज कर दिया गया है।
कार्टून अख़बार के धड़कते दिल का कोना है-कुलगुरु विजय मनोहर तिवारी
कार्यक्रम का स्वागतीय उद्बोधन कुलगुरु विजय मनोहर तिवारी ने दिया और पहली ही पंक्ति में मानो पूरे आयोजन के भाव को शब्द दे दिया, “शब्द और शीर्षक केवल अख़बार का ढाँचा खड़ा करते हैं, लेकिन कार्टून अख़बार के धड़कते दिल का कोना है।” कुलगुरु ने स्पष्ट कहा कि कार्टून को ‘मरती हुई कला’ कह देना कला और पत्रकारिता दोनों के साथ घोर अन्याय है। भीमबेटका की दीवारें इस बात की गवाह है कि जब भाषाओं और लिपियों का अस्तित्व नहीं था, तब भी हमारे पुरखे बैठकर कुछ रच रहे थे। वह रेेखाएं कहानी कहती थीं, भाव जगाती थीं। शब्दों को यह ‘दंभ’ नहीं पालना चाहिए कि सारे अर्थ सिर्फ उन्हीं के पास हैं।
अख़बार में सिर्फ तीन कुर्सियाँ सदियों से स्थाई रूप से मान्य
उन्होंने अफसोस जताया कि पत्रकारिता का हिस्सा कभी कार्टूनिंग को नहीं माना गया यह बड़ी विडंबना है। जबकि अख़बार में सिर्फ तीन कुर्सियाँ सदियों से स्थाई रूप से मान्य रही है जो किसी दूसरे की नहीं होती एक अखबार का मालिक, दूसरा संपादक और तीसरा कार्टूनिस्ट। आखिर में कुलगुरू ने वादा किया, “यह पहला प्रयास है इसे सिर्फ इवेंट तक सीमित नहीं रखेंगे, बल्कि हम कार्टूनिंग को पाठ्यक्रम का भी हिस्सा बनाएंगे।”
सवाल उठा कि कार्टूनिंग में महिलाएँ क्यों नहीं है?-सुश्री शिफाली पांडेय
कार्टूनिंग में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व: एक ज्वलंत सवाल - कार्यक्रम का संचालन सुश्री शिफाली पांडेय ने बेहद सहज ऊर्जा के साथ संभाला। मंच पर देश के प्रतिष्ठित कार्टूनिस्ट बैठे थे और सभी पुरुष। सवाल उठा कि कार्टूनिंग में महिलाएँ क्यों नहीं है? इसका जवाब प्रख्यात कार्टूनिस्ट इस्माइल लहरी ने दिया और बताया कि सामाजिक व्यवस्था एक बड़ा रोड़ा बनती है।
लड़कियों को अक्सर देर तक बैठकर काम करने की स्वतंत्रता नहीं मिलती। वहीं रायपुर से आए त्र्यम्बक शर्मा ने अपने हास्य अंदाज़ में कहा, “असल कारण यह है कि महिलाओं की शादी हो जाती है, और फिर उन्हें एक कार्टून मिल जाता है!” इस पर सभी ने जोरदार ठहाका लगाया। इसी अंदाज़ में हरीओम तिवारी बोल पड़े कि “कार्टूनिस्ट तो लोगों का चेहरा बिगाड़ते है, महिलाएँ तो एक ही आदमी का चेहरा बिगाड़ती है।”

विचार से ज्यादा प्रचार: कार्टूनिंग का सिकुड़ता स्पेस -डॉ. देवेंद्र शर्मा
डॉ. देवेंद्र शर्मा ने गंभीर मुद्दा उठाया और कहा आज मीडिया में विचार की तुलना में प्रचार को अधिक महत्व मिलता है। लोग सोचते हैं जितना हम कार्टून को जगह देंगे, उसके बजाय विज्ञापन को दी जाए। दूसरी ओर समाज अधिक संवेदनशील हो चुका है। लोग पहले हास्य को हल्के-फुल्के अंदाज़ में ले लेते थे, आज सोशल मीडिया पर हर बात ओवर-रिएक्शन में बदल जाती है। व्यंग्य की समझ और सहनशीलता घट रही है।
आज की जेनरेशन गाली सुनना पसंद करती है और उस पर हँसती-त्र्यम्बक शर्मा
ह्यूमर डिग्रेड हो गया है - त्र्यम्बक शर्मा - हास्य क्या है इसे समझाते हुए कार्टून वॉच पत्रिका के प्रधान संपादक त्र्यंबक शर्मा ने कहा,“ह्यूमर बहुत बदलता जा रहा है। कपिल शर्मा से लेकर स्टैंड-अप कॉमेडियंस तक आज की जेनरेशन गाली सुनना पसंद करती है और उस पर हँसती है। बच्चे बचपन जीए बिना जवानी पर पहुँच रहे हैं। ये जेन-ज़ी नहीं, ‘तेज़-ज़ी’ है।” उनका साफ कहना था, “ कार्टून इज़ द कोररेस्ट फॉर्म ऑफ जर्नलिज़्म” यानी पत्रकारिता की सबसे शुद्ध, सबसे सीधी, सबसे निर्भीक अभिव्यक्ति कार्टून है।
मैं नेताओं की हर स्पीच में ह्यूमर एलिमेंट ढूंढता हूं-शिरीष श्रीवास्तव
कार्टूनिस्टों का सबसे पसंदीदा विषय क्या है? - शिरीष श्रीवास्तव ने इस पर अपनी बात रखते हुए कहा, "सबसे सदाबहार विषय पॉलिटिक्स है।" प्रशांत कुलकर्णी ने कहा, “कार्टूनिस्ट की नज़र से दुनिया देखें तो हर चीज़ मज़ाकिया लगती है। मैं नेताओं की हर स्पीच में ह्यूमर एलिमेंट ढूंढता हूं।” उन्होंने एक किस्सा सुनाया जब एक नेता बोल रहा था “मैं सरपंच था, फिर एमएलए बना, फिर एमपी हुआ, मंत्री बना, फिर भी गाँव की हालत नहीं सुधरी, इसलिए मैंने पार्टी बदल दी।” इस पर सभागार ठहाकों से गूंज उठा।
किताबें भी पढ़िए, इंसान की संवेदनाएं भी सुनिए...इस्माइल लहरी
कार्टूनिस्ट का दिमाग कैसे चलता है उसकी रचना प्रक्रिया क्या होती है? - इस्माइल लहरी ने इसे अद्भुत शब्दों में जताया, “अगर दिमाग में थोड़ा सा ऐबलापन है तो हर चीज अलग दिखती है। हम खबरों के ढेर में से सिर्फ एक खबर एक भाव चुनते है फिर उसी को कैनवास पर उतारते है।” उन्होंने कहा, “हम आज भी बच्चों की तरह सोचते हैं। किताबें भी पढ़िए, इंसान की संवेदनाएं भी सुनिए।
मैं कलाकार हूँ, समाज को देने आया हूँ, संग्रह करने नहीं-माधव जोशी
कार्टूनिस्ट कभी चुटकुला नहीं सुनाता वह संवेदना को रेखांश में बदलता है।” माधव जोशी ने किस्सा सुनाया जब मशहूर अभिनेता देव आनंद से मिले तब उन्होंने कहा था, “मैं कलाकार हूँ, समाज को देने आया हूँ, संग्रह करने नहीं।” गोविंद लाहोटी ने अपने प्रसिद्ध कार्टूनों के पीछे छुपे अर्थ को समझाया। महिला कार्टूनिस्टों के सवाल पर कहा, “ महिलाएं बहुत अच्छी कार्टूनिस्ट हो सकती है मेरे सारे कार्टून पहले मेरी पत्नी अपूर्व करती है, फिर मेरा एडिटर।”
एक कार्टूनिस्ट ने अपने जीवन में यह चीज़ कमाई-प्रशांत कुलकर्णी
दिल को छू लेने वाली एक घटना: कुलकर्णी का किस्सा - प्रशांत कुलकर्णी ने एक यादगार किस्सा सुनाया जब सभी मराठी कार्टूनिस्टों की एक मीटिंग थी। तब एक 25–26 साल का एक नौजवान, बाल बिखरे हुए, पसीने से भीगा, उनके पास भागते हुए आया और कहा, “, प्रशांत कुलकर्णी कौन है?” जब उन्होंने कहा, “मैं।” तब उस लड़के ने उनका हाथ पकड़ कर कहा,“सर, मैं सिर्फ आपके कार्टून के लिए अख़बार खरीदता हूँ।” यह वाकया सुनकर सभी भावविभोर हो गए। एक कार्टूनिस्ट ने अपने जीवन में यह चीज़ कमाई है।
राजस्थान का एक ही सिंह 'वोटर सिंह' -अभिषेक तिवारी
कार्टूनिस्टों की कलम से उकेरी गई समाज की तस्वीर - अभिषेक तिवारी ने अपना यादगार कार्टून साझा करते हुए बताया कि एक समय जब राजस्थान में चुनाव था, उस वक्त नारे लगते थे राजस्थान का एक ही सिंह भैरो सिंह-भैरो सिंह, लेकिन जब परिणाम आया अशोक गहलोत जीत गए। तब उन्होंने एक कार्टून बनाया कि राजस्थान का एक ही सिंह 'वोटर सिंह'।
इस्माइल लहरी ने उनका अपना पसंदीदा कार्टून बताया तब बारिश का मौसम था लेकिन हर तरफ तेज धूप हो रही थी, लोग बारिश के लिए प्रार्थना कर रहे थे। एक दिन अचानक शाम को बादल आने लगे तब उन्होंने एक कार्टून बनाया जिसमें एक खेत है उसमें मक्का की फसल लेटी हुई है। उस फसल पर हाथ रख कर किसान कह रहा है उठ बेटी मक्का देख तो कौन आया है...पीछे बरसात हो रही है। कार्टून मजाक नहीं है वो एक कविता के भाव की तरह है। चंद्रशेखर हाड़ा ने कहा कि लालू प्रसाद यादव सभी कार्टूनिस्टों के सबसे प्रिय पात्र रहे हैं।
चंद्रयान जब लैंड हुआ था तो उनके द्वारा कार्टून बनाया गया जिसमें धरती माता ने चंदा मामा को राखी बांधी थी। इस कार्टून की तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी। चुटकी लेते हुए उन्होंने कहा, "महिलाएं और कार्टूनिस्ट में एक समानता है कि हम लोग रोज़ एक ही बात सोचते हैं कि आज क्या बनाना है! डॉ. देवेंद्र शर्मा ने अपने बेस्ट कार्टून के बारे में बताते हुए कहा, "एक गौशाला है उसके पास में दुबली-पतली लड़की के साथ एक लड़का है वो भी दूर है उसे दूध पीना है। वो लड़की कहती है चल हट तुझे दूध पिलाकर मुझे मेरा फिगर नहीं बिगड़ना।"
महिला कार्टूनिस्ट की बात पर उन्होंने कहा कि महिलाओं में सेंस ऑफ ह्यूमर बहुत होता है पर वो उसे बोलकर खत्म कर देती हैं अगर वो उस शक्ति को संचित करेंगी तो सही रहेगा। हरीओम तिवारी ने अपने प्रसिद्ध कार्टून पर कहा कि नब्बे के दशक में उन्होंने एक कार्टून बनाया था जिसमें हर्षद मेहता का मुंह बड़ा सा खुला हुआ था और उसके सामने पीवी नरसिम्हा राव पेटी लिए खड़े है। यह व्यंग्य का हृदयस्थ पल था। कार्टून एक मज़ाक नहीं सोचने की चीज़ है।
- लाइव स्केचिंग जहाँ कागज़ पर जीवन दौड़ पड़ा - लंच ब्रेक के बाद दोपहर 2 बजे तक्षशिला–विक्रमशिला परिसर के बीच का आंगन कलाकारों से भर गया। कार्टूनिस्टों की उँगलियों से रेखाएँ निकलकर कुछ ही मिनटों में जीवित चरित्र बन गई थीं। मैं और मेरे साथी सभी कलाकार के पास गए उनसे कहानियाँ सुनीं, उनके बनाए स्केच देखे, फोटो खिंचवाए, और जाना कि कार्टून बनाना सिर्फ हाथ की कला नहीं नज़र की ईमानदारी भी है।
‘सोशल कार्टून्स’ पर एक विचारोत्पादक कक्षा - एक घंटे की लाइव स्केचिंग के बाद 3 बजे स्वामी विवेकानंद सभागार में विशेष सत्र आयोजित हुआ जिसकी अध्यक्षता प्रशांत कुलकर्णी ने की। उन्होंने बताया, “सोशल कार्टून की उम्र राजनीतिक कार्टून से कहीं अधिक होती है।” उन्होंने पुणे के 101 वर्ष के महान कार्टूनिस्ट शिवराम दत्तात्रेय (एस.डी) फडणीस के ऐसे कार्टून दिखाए जो आज से 70–80 वर्ष पहले बने थे और आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। यह कला और सामाजिक मनोविज्ञान की अद्भुत कक्षा थी।
- यह कार्टून ‘शो’ नहीं कला का पुनर्जागरण था! - यह आयोजन देश के ख्यातनाम कार्टूनिस्टों को एक मंच पर तो लाया, साथ ही समाज के लिए भी एक संदेश था। कार्टून आज भी एक शक्तिशाली माध्यम है जो समाज की सच्चाई को उजागर करते है। इस आयोजन ने साबित कर दिया कि कार्टून मरती हुई कला नहीं है, बल्कि एक जीवंत और प्रभावशाली विधा है जो समाज को जागरूक और संवेदनशील बनाती है।





