आपकी कलम
जहां ना पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि : सीमा जोशी
Paliwalwaniकभी कोई गुमनाम सा लेखक या कवि बीमार पड़ जाए तो वह अपनी बीमारी के द्वंद और हास्य के रंग को शायद कुछ इस प्रकार शब्दों में लिखेगा :
बीमारी में भी लेखक या कवि लेता नहीं अंगड़ाई हैं,
कागज और कलम से ही तो उसने सच्ची प्रीत निभाई है,
दो चार दिन से तन बोझिल और मन बड़ा ही उदास है,
तबीयत भी थोड़ी थोड़ी सी नासाज़ है,
सर्दी ,खांसी ,बुखार तीनों ने कर लिया एका,
पीला पट पड़ गया हंसता मुस्कुराता मुखड़ा,
खांस-खांस कर फेफड़ों ने भी दे दिया जवाब है,
सर्दी का भी अपना अलग ही हिसाब है,
टिशू पेपर से भरा डस्टबिन बेहिसाब है,
पल में ठंडी ,पल में गर्मी,
अब तो रजाई का भी बन गया मजाक है,
दो चार दिन से तन बोझिल और मन बड़ा ही उदास है,
स्वेटर ,टोपा ,जैकेट, रजाई सब ने चारपाई पर जमाई गजब की बारात है,
मानो चखना, देसी बोतल, खाली गिलास और बर्फ से ही होगी अब इन सब की भरपाई है,
समय समय पर दवाई, नहीं करी कोई भी ढिलाई,
फिर भी दलिया ,खिचड़ी ,गोली, दवाई सब पर भारी पड़ गई खट्टे मीठे बेरो की खटाई है,
सुई धागा और पुड़िया बांधु (किराना दुकान) का कामकाज पड़ गया ठप्प
बसंत ऋतु मे “सीमा“ जाने कैसी बहार आई है,
बीमारी तो हष्ट पुष्ट शरीर को कमजोरी का बहाना देती है,
उठो, चलो आगे आगे और आगे बढ़ो,
कि “सीमा“ अभी तुम्हें बहुत आगे तक जाना है,
“सीमा जोशी इंदौर“