आपकी कलम
जो होता है अच्छे के लिए होता है...
Paliwalwaniपरमभागवत श्री हितदास जी महाराज एवं श्री हित अम्बरीष जी से सुने भावों पर आधारित चरित्र -
! श्री राधारानी द्वारा वृंदावन जाने की आज्ञा और श्रीराधावल्लभ जी विग्रह की प्राप्ति -
भगवान श्री कृष्ण के वंशी के अवतार श्री हितहरिवंश महाप्रभु जी को देवबंद मे स्वयं श्री राधाजी से निज मंत्र और उपासना पद्धति की प्राप्ति हुई । श्री राधा जी ने एक दिन महाप्रभु जी को स्वप्न मे वृन्दावन वास की आज्ञा प्रदान की । उस समय श्री महाप्रभु जी की आयु ३२ वर्ष की थी ।
अपने पुत्रों और पत्नी से चलने के लिए पूछा परंतु उनकी रुचि किंचित संसार मे देखी । श्री महाप्रभु जी अकेले ही श्री वृन्दावन की ओर भजन करने के हेतु से चलने लगे । कुछ बाल्यकाल के संगी मित्र थे, उन्होंने कहा कि हमारी भी साथ चलने की इच्छा है - हम आपके बिना नही राह सकते । श्री महाप्रभु जी ने उनको भी साथ ले लिया । इसीलिए कहते हैं, जो होता है अच्छे के लिए होता है
यह मानव स्वभाव होता है कि जब हम पर कोई विपत्ति आती है तो हम पहले भगवान की ओर दौड़ते हैं। उसके समाधान की विनती करने लगते हैं। समस्या हल हो जाए तो भगवान को प्रसाद चढ़ाकर अपने कर्तव्य की इति श्री कर लेते हैं, लेकिन अगर समस्या हल नहीं हुई तो फिर हम परमात्मा को ही घेर लेते हैं, उसकी कृपाओं पर तो सवाल उठाते ही हैं साथ ही उस पर अनर्गल आरोप भी गढ़ देते हैं।
यहां ब्राम्हण ने अपनी संतानों के न जीने का आरोप श्रीकृष्ण पर मढ़ दिया। भगवान ने जितने शुभ कर्म किए उन सभी को अषुभ बता दिया। भगवान के चरित्र को किसी, पापी राक्षस का चरित्र बता दिया, लेकिन भगवान मौन हैं। भगवान की यही शैली है कि जब मनुष्य खुद अपने से निर्मित परिस्थितियों के कारण दु:ख में फंसता है और फिर उस दु:ख का क्रोध भगवान पर मढ़ता है तो भगवान मौन धारण कर लेते हैं। वे उसका प्रत्युत्तर नहीं देते। श्रीकृष्ण भी यही कर रहे हैं। वे शांत हैं, ब्राह्मण के विरोध और कुप्रचार का उन पर कोई प्रभाव नहीं है।
ब्राह्मण की हर संतान एक के बाद एक जन्म लेते ही मर रही थी। ब्राम्हण का क्रोध हर संतान की मृत्यु के बाद और ज्यादा बढ़ जाता। वह और अधिक उग्रता से श्रीकृष्ण का विरोध करने निकल पड़ता। द्वारिका में तरह-तरह की चर्चाएं होने लगीं। लोग ब्राम्हण और कृष्ण के बारे में बातें करने लगे। लेकिन भगवान मौन हैं। उनका मौन भी लोगों के लिए आश्चर्य का विषय है।
इसी प्रकार अपने दूसरे और तीसरे बालक के भी पैदा होते ही मर जाने पर वह ब्राह्यण लड़के की लाष राजमहल के दरवाजे पर डाल गया और वही बात कह गया। नवें बालक के मरने पर जब वह वहां आया, तब उस समय भगवान श्रीकृष्ण के पास अर्जुन भी बैठे हुए थे। अर्जुन ने देखा भगवान मौन हैं, ब्राम्हण अपने पुत्रों की असामयिक मृत्यु से विचलित है लेकिन कोई उसकी मदद नहीं कर रहा है। अर्जुन से रहा नहीं गया वह ब्राम्हण से बोल पड़ा। यह भगवान की लीला भी है। खुद भगवान कुछ नहीं कर रहे हैं लेकिन वे अर्जुन के निमित्त अपनी लीला दिखाएंगे। भगवान अर्जुन की बात पर भी अभी मौन हैं लेकिन अर्जुन ने जो प्रतिज्ञा कर ली है उसे भगवान पूरा करेंगे।
भगवान की यह कृपा है कि वे बुरा करने पर भी आपका भला ही करते हैं। वही कार्य करते हैं जिसके अंत में आपका भला हो जाए। इसलिए कहा जाता है कि आपका सोचा हो तो अच्छा, नहीं हो तो और अच्छा क्योंकि वह परमात्मा का सोचा होता है। भगवान जो भी करें उसे आप स्वीकार कर लें तो फिर जीवन में कोई परेशानी नहीं आएगी। एक दिन भगवान आपको उसका सुखद परिणाम देगा। सारी परिस्थितियां आपके अनुकूल होगी।
उन्होंने ब्राह्यण की बात सुनकर उससे कहा-ब्रह्यन! आपके निवासस्थान द्वारका में कोई धनुषधारी क्षत्रिय नहीं है क्या? मालूम होता है कि ये यदुवंशी ब्राह्यण हैं और प्रजापालन का परित्याग करके किसी यज्ञ में बैठे हुए हैं! जिनके राज्य में धन, स्त्री अथवा पुत्रों से वियुक्त होकर ब्राह्यण दुखी होते हैं, वे क्षत्रिय नहीं हैं। उनका जीवन व्यर्थ है।मैं समझता हूं कि आप स्त्री-पुरुष अपने पुत्रों की मृत्यु से दीन हो रहे हैं। मैं आपकी सन्तान की रक्षा करूंगा। यदि मैं अपनी प्रतिज्ञा पूरी न कर सका तो आग में कूदकर जल मरूंगा और इस प्रकार मेरे पाप का प्रायश्चित हो जाएगा। अर्जुन ने प्रतिज्ञा कर ली। जल मरने की भीषण प्रतिज्ञा और पूरी सभा सन्न रह गई।