Wednesday, 08 October 2025

आपकी कलम

राजनैतिक व्यंग्य-समागम : संघ और बापू जी बर्थ डे शेयरिंग बेनिफिट : राजेंद्र शर्मा

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राजनैतिक व्यंग्य-समागम : संघ और बापू जी बर्थ डे शेयरिंग बेनिफिट : राजेंद्र शर्मा
राजनैतिक व्यंग्य-समागम : संघ और बापू जी बर्थ डे शेयरिंग बेनिफिट : राजेंद्र शर्मा

1. संघ और बापू जी बर्थ डे शेयरिंग बेनिफिट : राजेंद्र शर्मा 

गुरु गुड़ रहा और चेला शक्कर हो भी गया तो क्या? आखिर, मोदी जी के संगठन रूपी गुरु का मामला था। चेला बादल देखकर बेनिफिट ले सकता था, तो गुरु भी एक ही दिन बर्थ डे पड़ने के रिश्ते का बेनिफिट तो ले ही सकता था। इस बार गांधी जयंती पर आरएसएस का भी बर्थ डे पड़ने की देर थी कि संघ पुरुष राजघाट पहुंच गए, बापू को हैप्पी बर्थ डे करने और जवाब में अपना भी हैप्पी बर्थ डे कराने। वैसे हैप्पी बर्थ डे करने गये तो देश के प्रधानमंत्री भी थे और वह खुद कई बार याद दिला चुके हैं कि वह भी संघ पुरुष हैं, पर वह किस्सा और कभी।

अचानक हैप्पी बर्थ डे का शोर सुना, तो बापू कुछ हड़बड़ा से गए। क्या शोर है, कुछ समझ में आया, तो इधर-उधर देखने लगे, किस का बर्थ डे? पर संघ पुरुष ने झट कंफ्यूजन दूर कर दिया। बापू जी इधर-उधर क्या देख रहे हैं -- आप को ही हैप्पी बर्थ डे। बापू और सकुचा गए -- सभी जानते हैं कि मैंने तो जन्म दिन वगैरह कभी नहीं मनाया। संघ पुरुष को आशंका हुई, कहीं बापू उठकर न चले जाएं। झट से बोला -- वैसे जन्म दिन मनाते तो हम भी कहां हैं? बस नागपुर में सरसंघचालक जी का उद्बोधन ...। अब बापू को पूछना ही पड़ा -- आज आपका भी जन्म दिन है? संघ पुरुष ने चहक के कहा -- सौवां जन्म दिन। पहचाना नहीं -- संघ? बापू बोले -- हां! कुछ-कुछ पहचाना सा तो मुझे भी लग रहा था। आपने याद दिला दिया, तो अब काफी कुछ याद आ गया।

संघ पुरुष को उम्मीद थी कि शायद अब बापू उसे जवाबी हैप्पी बर्थ डे कहें। पर बापू ठहरे ‘चतुर बनिया’, उस तरफ ध्यान ही नहीं जाने दिया। लगे पूछने अमृतकाल में क्या चल रहा है। पर संघ पुरुष ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली थीं। वह भी पीछा कहां छोड़ने वाला था। कहने लगा -- आपको याद नहीं, आप एक बार तो हमारे शिविर में भी आए थे, वाह में। आपको हमारे स्वयंसेवकों के अनुशासन, समरसता और कर्तव्यनिष्ठा ने काफी प्रभावित किया था। आपने कृपापूर्वक उस सब की प्रशंसा भी की थी। आपकी प्रशंसा ने अपना कार्य जारी रखने के लिए हमारा बहुत उत्साहवर्धन किया। वैसे वह बात बहुत पुरानी हो गयी। आपको अब तक क्या याद होगी? पर अब हम संघ वाले जब-जब भी आपका बर्थ डे मनाते हैं या आपका स्मरण करते हैं, संघ के शिविर को देखकर आप कितने प्रभावित हुए थे, उसका वर्णन जरूर करते हैं। हमारे बर्थ डे समारोह में पीएम जी ने...।

बापू धीरे से बोले -- हां! मुझे भी खूब याद है। मैं तो इतना प्रभावित हुआ था, इतना प्रभावित हुआ था कि मैंने तो सोचा था कि मैं भी संघ में शामिल हो जाऊं। आजादी-वाजादी के चक्कर में पड़कर, नाहक अपना जीवन व्यर्थ क्यों करना? कांग्रेस-वांग्रेस सब बेकार थीं। आप लोगों को तो पक्के से याद होगा कि मैंने तो बाद में आजादी मिलने के बाद बाकायदा लिखकर कहा भी था कि कांग्रेस को खत्म कर देना चाहिए। पर जवाहरलाल नहीं माने। सरदार भी उनके साथ हो गए। मेरी इच्छा अधूरी ही रह गयी। अब सोचता हूं कि संघ के शिविर को देखने के बाद ही संघ में शामिल हो गया होता, तो जीवन यूं निरर्थक नहीं जाता। ऐसे पछताना नहीं पड़ता। क्या लगता है, अब भी मेरे लिए कोई चांस है? क्या मैं अब भी संघ में शामिल हो सकता हूं?

यह तो गुगली थी! संघ पुरुष थोड़ी देर को तो बिल्कुल कंफ्यूज ही हो गए। बुढ़ऊ जरूर मजाक कर रहे थे? मरणोपरांत हृदय परिवर्तन का मजाक? माना कि गांधी हृदय परिवर्तन पर काफी विश्वास करते थे। लेकिन, सत्याग्रह से, बलिदान से दूसरों का हृदय परिवर्तन करने पर ही। खुद गांधी का हृदय परिवर्तन कब, कौन करा पाया था? और तो और, संघ के शिविर के दौरे के बाद, संघ के प्रति जो उनका हृदय परिवर्तन हुआ, वह भी संघ पुरुष को याद आ गया। संघ, हिंदू महासभा, मुस्लिम लीग, सब में कांग्रेस वालों के शामिल होने पर पाबंदी ही लगवा दी। और सन 1942 में...! संघ पुरुष को याद कर के झुरझुरी-सी आ गयी। इन्हीं के चक्कर में तो गोडसे जी को शहादत देनी पड़ी थी। और बुढ़ऊ अब मजाक कर रहे हैं -- तब संघ में शामिल हो जाता!

संघ पुरुष ने हाथ जोड़ दिए। जाने के लिए नहीं, शिकायत करने के लिए। हमारा सौवां बर्थ डे हुआ तो क्या हुआ, आप फिर भी हमारे बुजुर्ग हैं। आदरणीय हैं। आज ही हमने कहा है, आप हमारे आदर्श हैं। हमें आपका अनुकरण करना है। हमने तो सोचा कि सौवें बर्थ थे पर आप से आशीर्वाद ले लेते हैं। बुजुर्गों से आशीर्वाद लेना, यह हमारा संस्कार है। फिर अब तो हमारा बर्थ डे नाता भी निकल आया। पर आप तो लगे मजाक करने। बापू ने हठात पूछ दिया -- क्या संघ में अब भी हंसी-मजाक एलाउड नहीं है। और फिर जवाब की प्रतीक्षा किए बिना, बापू खुद ही हंस दिए।

पर बुढ़ऊ ने बात को फिर घुमा दिया। कहने लगे कि वैसे संघ में शामिल होने वाली बात मैंने मजाक में नहीं कही थी? क्या अब भी गुंजाइश है? संघ पुरुष के मुंह से हैरानी में अचानक निकल गया -- मगर क्यों ? अब बापू समझाने की अपनी शाश्वत मुद्रा में आ गए। बोले—यहां लंबा-चौड़ा प्लाट घेर कर बैठे-बैठे बोर हो गया हूं। सोचता हूं कि पब्लिक के लिए ही कुछ करता चलूं। अमृतकाल है तो क्या हुआ, भारत विकसित देश बनने के रास्ते पर फर्राटे भर रहा है तो क्या हुआ, सुना है कि आपके भागवत जी ने भी माना है कि पब्लिक के लिए अभी बहुत कुछ करना बाकी है। पर राजनीतिक पार्टी बनाऊं तो शाह जी ईडी, सीबीआई, आईटी, दंड संहिता, एफआईआर, सब पीछे लगा देंगे। बचने के लिए उनके गठजोड़, उनकी पार्टी में ही चला जाऊं, पर उससे भी क्या? वहां भी तो सिर्फ मोदी, मोदी ही करने पर संतोष करना पड़ेगा। और रहे कुर्सी के फायदे, उनका मोह मुझे कभी नहीं था। इससे अच्छा तो सीधे संघ में ही चला जाऊं। कम से कम ईडी, सीबीआई वगैरह से बचा भी रहूंगा और पब्लिक के भले का कुछ न कुछ काम तो कर के ही मरूंगा।

संघ पुरुष की आंखों में आंसू आ गए। बापू डर गए। कहने लगे -- मैं तो मजाक कर रहा था। सॉरी, बर्थ डे पर हंसाने की जगह तुम्हें रुला दिया। संघ पुरुष ने रोते-रोते कहा — आपके आने, नहीं आने वाली बात नहीं है। बात यह है कि हम भी मोदी, मोदी करने के अलावा और कुछ कहां कर पा रहे हैं। हां! मस्जिदों के सामने हिंदू नौजवानों को नचाने को, अब्दुल की चूड़ी टाइट करने को, देश को भीतर तक दुश्मनों और दुश्मनों के दुश्मनों में बांटने को और शानदार मंदिर और उनसे भी शानदार अपने दफ्तर-महल बनवाने को ही कुछ करना मान लिया जाए, तो बात दूसरी है। बापू बोले — बर्थ डे गिफ्ट वाला सिक्का और डाक टिकट क्यों भूल गए? जवाब आया -- उसमें भी तो खोट है -- देने वाले की नीयत का खोट। सिक्के में हमारे नाम में ही गलती है और टिकट झूठा है। ऐसी चीजों से दिल कैसे बहलाएं? बापू ने कंधे पर हाथ रखकर कहा -- मैं तो एक ही तसल्ली दे सकता हूं। जब मन ज्यादा अशांत हो, मेरे पास चले आना। यहां बड़ी शांति है। और आने के लिए कोई शर्त भी नहीं है — सत्य और अहिंसा बरतने की भी नहीं। यहां आकर हिंदू-मुस्लिम मत करना बस। जवाब आया — हिंदू-मुस्लिम हम करते कहां ही हैं। यह तो बस हिंदू-विरोधियों का दुष्प्रचार है !

अब गांधी यह कहते हुए उठ गए -- मेरे आराम करने का समय हो गया। मिलते हैं अगले बर्थ डे पर। संघ पुरुष राजघाट से उलझन में लौटे — आखिर गांधी ने किस के बर्थडे पर मिलने की बात कही होगी ; अपने या संघ के!  

  • व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और 'लोकलहर' के संपादक हैं.

2. 'बुरे दिन' आने में!, आगे ही आगे बढ़ाएंगे कदम : विष्णु नागर

लगता है कि हम दिल्ली के वोटर भाजपा को लोकसभा में इसीलिए जिताते आ रहे हैं कि महिलाओं की दृष्टि से सबसे असुरक्षित महानगर का जो इसे दर्जा मिला हुआ है, वह कहीं छिन न जाए! यह गौरव किसी और महानगर को न मिल जाए! दिल्ली को 2012 की भारत की 'बलात्कार राजधानी '(रेप कैपिटल) का जो स्थान हासिल हुआ था, वह कायम रहे! दिल्ली में अपराध का ग्राफ ऊपर ही ऊपर रहे। नीचे न आ आए! क्या पता किसी दिन दिल्ली 'विश्व की बलात्कार राजधानी' बनकर दिखा दे और 'मन की बात' में इसका गौरवपूर्ण बखान‌ हो! हो सकता है कि दिल्ली की सरकार इसका अखिल भारतीय उत्सव मनाए! फलाने जी हैं, तो मुमकिन है। 'अच्छे दिन ' आने में देर नहीं लगती! देर हमेशा लगती है -- 'बुरे दिन' आने में!

यह उस महानगर की कथा है, भाइयो-बहनो, जो देश की राजधानी है! यहां प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, रक्षा मंत्री और भी तमाम मंत्री, उपराज्यपाल तथा बड़े-बड़े अफसर आदि रहते हैं। इसी शहर में उनके बड़े -बड़े बंगले हैं, यहीं उनका वह मालमत्ता है, जो अभी बाहर नहीं गया है। ये सुरक्षित हैं, इनका मालमत्ता और इनके परिवार सुरक्षित हैं। ये सभी महाजन और महामानव स्वयं को और भी अधिक सुरक्षित करने के जुगाड़ में लगे रहते हैं।

दूसरी ओर यहां की महिलाएं, यहां की बच्चियां, यहां के जवान और बूढ़े किसी भी और महानगर की अपेक्षा सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं। उनके साथ कब, कहां, कैसे, क्या हो जाए, कुछ पता नहीं। दिन में क्या हो जाए, पता नहीं, रात में क्या हो जाए, पता नहीं। जिस घर से केवल 20 मीटर दूर पुलिस थाना है, वहां के लोग भी उतने ही असुरक्षित हैं, जितने‌ वहां से एक किलोमीटर दूर रहनेवाले! यहां का मध्य वर्ग यहां की पुलिस पर भरोसा नहीं करता, अपनी सुरक्षा के लिए अपने सुरक्षा गार्ड रखता है। और गरीब तो यहां के भी भगवान भरोसे हैं!कब उनकी झुग्गी, उनके घर अवैध घोषित करके, सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा दिखाकर बुलडोजरग्रस्त कर दिए जाएं, इसका भरोसा नहीं। जीने का भरोसा नहीं, मरने का भरोसा नहीं! मरने के बाद कफन-दफन का भरोसा नहीं! 

एक ही शहर है, एक ही पुलिस व्यवस्था है, एक ही गृहमंत्री है, एक ही उपराज्यपाल है और एक ही पुलिस आयुक्त है, मगर कुछ इतने अधिक सुरक्षित हैं कि उनसे ज्यादा सुरक्षित दुनिया में शायद ही कोई और हो और अधिकांश इतने अधिक असुरक्षित हैं कि काम पर गई स्त्री शाम होने तक वापस न लौटे, तो मन घबराया-घबराया सा रहता है।

और प्रिय मित्रों, भाइयों-बहनों, यह कहानी अकेले दिल्ली की नहीं है, पूरे देश की है और पूरे देश में भी अधिकांश उन राज्यों की है, जहां इनकी या इनके द्वारा समर्थित सरकारें हैं। और यह कहानी किसी मोदी-विरोधी पत्रकार की नहीं रची है, यह खुद‌ सरकार के आधिकारियों ने लिखी है। यह कहानी राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने अपनी 2023 के रिपोर्ट में दर्ज की है। उसी ने बताया है कि हत्या, अपहरण, दहेज़-हत्या और महिला असुरक्षा के मामले में सबसे आगे उत्तर प्रदेश है, ऩंबर दो पर बिहार है, तीसरे पर महाराष्ट्र है, चौथे पर मध्य प्रदेश है और पांचवें पर राजस्थान है और क्या आप सुधी पाठकों को यह बताने की जरूरत है कि यहां किस दल या किस गठबंधन की सरकार है? ये सब डबल-ट्रिपल इंजनों की सरकारें हैं।

सबसे दिलचस्प यह है कि जो मुख्यमंत्री लाल आंखें दिखाने में, कानून- व्यवस्था के बारे में बड़ी-बड़ी डींगें हांकने में, अपशब्दों के निरंतर प्रसार-प्रचार में अग्रणी है, वह राज्य चलाने में सबसे गया-बीता है। उसका राज्य दुर्दशा की रेस में सबसे आगे है। साइबर अपराधों में भी उसके राज्य की परफार्मेंस काफी 'सराहनीय' है। रेलवे में चोरी, छीना-झपटी में भी वह राज्य अग्रणियों में है‌। यह वही राज्य है, जहां फर्जी मुठभेड़ें आमतौर पर होती हैं और जहां 'बुलडोजर न्याय ' सर्वसुलभ है। 

कहीं यह राज्य आगे है तो कहीं उसी पार्टी की किसी और सरकार का राज्य आगे है। जैसे बच्चों पर यौन अपराध के मामले में मोहन यादव का मध्य प्रदेश आगे है, तो किसानों की आत्महत्या में मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस का महाराष्ट्र का रिकार्ड काफी उज्जवल है। उत्तराखंड अपराध में तो आगे नहीं है, मगर तथाकथित विकास के कारण भूस्खलन में वह आगे है। इतना अधिक आगे है कि उसके एक-दो जिले नहीं, बल्कि पूरा का पूरा राज्य आगे है। कोई जिला रेस में सबसे आगे है, तो कोई उसके ठीक पीछे है। सब एक ही लाइन लगे हुए हैं, लेकिन कब कौन लाइन तोड़ कर सबसे आगे आ जाए, पता नहीं, क्योंकि मोदी सरकार को 'विकास' करना है और जब तक विनाश न हो, 'विकास' कैसे हो?

और ऐसा क्यों न हो, जब देश का प्रधानमंत्री दिन-रात अपना गुणगान करने और करवाने में व्यस्त रहता है!18 घंटे या तो वह अपने गुण स्वयं गाता है या दूसरों द्वारा गाई गई आरतियों की रिकार्डिंग सुनता रहता है। लगता तो यह भी है कि वह इस बात का रिकार्ड रखता है कि आज किस मंत्री, किस मुख्यमंत्री, किस सांसद, किस विधायक ने उसकी अनुपस्थिति में उसका कितनी बार कितनी तरह से गुणगान किया हो। इसमें कौन आगे रहा और कौन पीछे! इसके आधार पर मंत्रियों आदि की योग्यता का आकलन होता है!

जो जुबान हिलाकर सरकार चलाता जानता हो। जो इतने हजार करोड़ दूं कि उतने हजार करोड़ दूं ,अच्छा चलो सवा लाख करोड़ देता हूं, इस तरह विकास की बोली लगाता हो, उसके शासन में और हो भी क्या सकता है?जिसका गृहमंत्री जब भी अपना मुंह खोलता है, प्रधानमंत्री की किसी न किसी ऐसी विशेषता का ज्ञान करवाता है, जिससे मोदी जी की हास्यास्पदता का कोई नया पहलू उजागर होता है। ऐसे शासन में देश इसी तरह चल सकता है और इसी तरह किसी दिन चलते-चलते बैठ सकता है!

जिस सरकार के मंत्रियों-मुख्यमंत्रियों को सबसे ज्यादा सतर्क इसलिए रहना पड़ता हो कि कहीं वे प्रधानमंत्री के बराबर या उनसे एक कदम आगे चलने की हिमाकत न कर बैठें, वहां इसके अलावा और क्या हो सकता है? जहां गालियों की बरसात करना योग्यता का सबसे बड़ा पैमाना हो, जहां वोट चोरी करना लोकतांत्रिक अधिकार हो, वहां किसे इसकी परवाह है कि जमीन पर दरअसल क्या हो रहा है? खूब पैसा है पार्टी के पास, सरकार का खजाना भी अपना है और पूंजीपतियों की तिजोरियां भी खुली हुई हैं। चुनाव जीतने में समस्या होगी तो ये सभी थैलियां एकसाथ खुल जाएंगी। चुनाव से पहले दस-दस हजार रुपए की सौगात बांटी जाएगी और इस तरह वोटर को खरीदने की कोशिश की जाएगी! जिनकी लोकतांत्रिक निष्ठा इतनी प्रबल हो, वह देश किसी भी दिन गड्ढे में जा सकता है। जिसे इच्छा हो, उस दिन का खुशी-खुशी इंतजार करे! शुभकामनाएं।

  • कई पुरस्कारों से सम्मानित विष्णु नागर साहित्यकार और स्वतंत्र पत्रकार हैं। जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं.
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