आपकी कलम
नागरिक परिक्रमा : वोट चोर का नारा बना देशव्यापी प्रतिरोध का प्रतीक
Sanjay Parate
संजय पराते की राजनैतिक टिप्पणियां
1. वोट चोर का नारा बना देशव्यापी प्रतिरोध का प्रतीक
पिछले ढाई साल से मणिपुर जल रहा है। दो आदिवासी समुदाय मैतेई और कूकी आपस में लड़ रहे है। हालत इतने भयावह थे कि कूकियों का सामूहिक संहार हो रहा था और उनकी महिलाओं को नंगा करके घुमाया जा रहा था। राज्य में गृह युद्ध की स्थिति है। इसके लिए पिछली भाजपा सरकार को जिम्मेदार माना जा सकता है, क्योंकि उसने स्थिति सही तरीके से नहीं संभाली और वास्तव में वह मैतेई समुदाय की पक्षधर रही है। निष्पक्ष शासन के तमाम सिद्धांतों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई गई।
मणिपुर को न्याय की जरूरत थी। प्रधानमंत्री को उनके दुखों पर मरहम लगाने का काम करना था, लेकिन वे निष्ठुर थे। पूरी दुनिया का चक्कर लगाने वाले प्रधानमंत्री के पास मणिपुर के लिए एक दिन का भी समय नहीं था। ढाई साल के बाद उनके चरण कमल मणिपुर में पड़े, तो विरोध स्वाभाविक था। वोट चोर, गद्दी छोड़ के नारों के साथ उनका स्वागत हुआ। 56 इंच का सीना इस जन विरोध को सह न सका। कुछ घंटों में ही उन्होंने मणिपुर छोड़ना उचित समझा।
पहले मणिपुर की मूल समस्या समझ लें। उत्तर-पूर्व का यह राज्य आदिवासी बहुल राज्य है। कूकी आदिवासी समुदाय व कुछ नागा जातियां पहाड़ी क्षेत्रों में रहते हैं। ये समुदाय शिक्षा और रोजगार के मामले में पिछड़े हैं, लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में रहने के कारण इनके पास जल, जंगल, जमीन की बहुमूल्य संपदा है। ये ईसाई धर्म के अनुयायी हैं। मैतेई समुदाय के लोग इम्फाल घाटी में रहते हैं। ये पढ़े-लिखे, सम्पन्न, नौकरी पेशा और व्यापारी लोग हैं। यह समुदाय हिंदू धर्म का अनुयायी है। पहले उन्हें आदिवासी नहीं माना जाता था। लेकिन अब उन्हें आदिवासी की मान्यता दे दी गई है। असली खेल यहां से शुरू होता है।
मोदी सरकार खनिज सम्पदा से परिपूर्ण मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों को अडानी जैसे कॉरपोरेटों के हाथों में देना चाहती है, लेकिन कूकी आदिवासियों का इन पर स्वामित्व होने के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा था। मैतेई समुदाय को आदिवासी का दर्जा मिलने के बाद अब वे कूकी आदिवासी समुदाय के लोगों की धन संपत्ति हड़पना चाहते हैं, जिसका कूकी आदिवासी विरोध कर रहे हैं।
मोदी सरकार की चाल है कि एक बार पहाड़ी संपदा का स्वामित्व कूकी समुदाय के हाथ से निकल जाएं, तो उसे अडानी को सौंपना आसान हो जाएगा। इस रणनीति पर काम करते हुए संघी गिरोह ने दोनों समुदायों के बीच धर्म के आधार पर नफरत फैलाना शुरू कर दिया और सांप्रदायिक दंगे भड़काए। अब दोनों समुदायों के बीच धार्मिक नफरत इतनी प्रबल है कि पिछले ढाई साल से मणिपुर जल रहा है। अडानी का हित साधने के लिए पूरा संघी गिरोह और भाजपा की सरकार हिंदू मैतेई समुदाय के साथ खड़ी है।
मणिपुर की जलती चिता पर अपनी राजनैतिक रोटी सेंकने का फल भाजपा को मिलना ही था। वोट चोर का नारा केवल चुनावी गड़बड़ियों के प्रतीक तक सीमित नहीं रह गया है, अब वह भाजपाई कुशासन के खिलाफ देशव्यापी प्रतिरोध का प्रतीक बनता जा रहा है। एक अकर्मण्य प्रधानमंत्री के खिलाफ विरोध प्रदर्शन इतना जबरदस्त था कि कुछ घंटों के भीतर ही मोदी को मणिपुर छोड़ना पड़ा है। भाजपा और संघी गिरोह के लिए यह शुभ संकेत तो कतई नहीं है।
2. संघी गिरोह का ढोंगी राष्ट्रवाद
हमारा हमेशा से यह मानना रहा है कि खेल और संस्कृति के क्षेत्र को राजनीति से ऊपर रखा जाना चाहिए, क्योंकि ये दिलों को मिलाती है, दोस्ती और समझदारी को बढ़ाती है। लेकिन संघी गिरोह ने इस क्षेत्र को भी अपनी नफरती राजनीति का शिकार बनाया है।
जब दो देश लड़ते हैं, तो हमारा हमेशा से यही मानना रहा है कि लड़ाई दो देशों की आम जनता के बीच नहीं, बल्कि उन देशों के शासक वर्ग और सत्ताधारी पार्टियों के बीच हो रही है। इन देशों के शासक वर्ग के बीच के तनाव को उन देशों की जनता के बीच का तनाव नहीं बनाया जाना चाहिए, क्योंकि दोनों देशों की जनता की बुनियादी समस्याएं एक ही है -- भूख, गरीबी, अशिक्षा, आवासहीनता और बेरोजगारी। इन्हीं समस्याओं से जनता का ध्यान हटाने के लिए राष्ट्रवाद की खोल में लड़ाई का प्रपंच रचा जाता है, ताकि वहां के शासक वर्ग सुरक्षित रह सके।
संघी गिरोह इस काम में माहिर हैं। वे देश के अंदर मुस्लिमों को और देश के बाहर पाकिस्तान को अपने निशाने पर रखते हैं, ताकि अपनी हिंदुत्व की सांप्रदायिक और नफरती राजनीति को आगे बढ़ा सके। पाकिस्तान के साथ भारत का क्रिकेट मैच न खेलने का सरकार का निर्णय उनकी इसी सांप्रदायिक राजनीति का हथियार था।
लेकिन अचानक अनजाने कारणों से 14 सितंबर 2025 एशिया कप के लिए दुबई में हुए मैच में भारत ने पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच खेलने का निर्णय ले लिया। यह मैच भारत 7 विकेट से जीत गया, लेकिन पूर्व क्रिकेटर सुरेश रैना ने सनसनीखेज खुलासा किया कि खिलाड़ी इस मैच में खेलना नहीं चाहते थे और सरकार के दबाव में उन्हें मजबूर किया गया।
इसके बाद किरकिरी से बचने के लिए भारतीय खिलाड़ियों ने टॉस के समय और खेल खत्म होने के बाद पाकिस्तानी खिलाड़ियों से हाथ नहीं मिलाया। इसे बीसीसीआई ने "पहलगाम हमले का साइलेंट प्रोटेस्ट" बताया है, लेकिन यह साफ है कि भारत ने खेल भावना का उल्लंघन किया है और इस पर विरोध दर्ज करने का पाकिस्तान के पास जायज अधिकार था और उसने ऐसा किया है।
यह पूछा जाना चाहिए कि यदि मैदान में खेल भावना का उल्लंघन करके भारतीय टीम को दुनिया की नजरों में गिराना ही था, तो यह मैच खेला ही क्यों गया? इसका कारण क्रिकेट के साथ जुड़े विपुल धनराशि के सिवा और कुछ नहीं दिखता। मोदी सरकार भारतीय क्रिकेट टीम की फजीहत कराकर राष्ट्रवाद का जो तड़का लगाने की कोशिश कर रही है, उसको सुरेश रैना ने बेनकाब कर दिया है। पूर्व क्रिकेटर सुनील गावस्कर ने भी साफ कहना है कि ये (भाजपा) सरकार का फैसला था, खिलाड़ियों ने तो बस फॉलो किया।
इस समय गृहमंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह आईसीसी के चेयरमैन हैं। इसके पहले तक वे बीसीसीआई सचिव थे। भाजपा नेताओं के नेतृत्व में भारतीय क्रिकेट की त्रासद गाथा रची जा रही है और सुनियोजित तरीके से देश की साख गिराई जा रही है।इस मामले में संघी गिरोह का ढोंगी राष्ट्रवाद खुलकर नंगा खड़ा है। उसे बस क्रिकेट के पैसों से मतलब है, खेल भावना और देश का सम्मान जाएं भाड़ में!
- टिप्पणीकार अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं। संपर्क : 94242-31650