आपकी कलम
वो मंजर देखा है...संजय कुमार मालवी
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आज वो मंजर भी आँखों से देखा है,
लाशों को भी कतारों में देखा है,
लाश को अकेले आते हुए भी देखा है,
अकेले ही जलाने वाला,
अकेले ही जलने वाली लाश को भी देखा है।
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न कोई हार न कोई फूल माला,
न कोई बैंड न कोई रामधुन बाजा,
न कोई लोग न कोई राय देने वाला,
न कोई सगा न कोई समाज वाला,
बस वो अकेली और एक जलाने वाला,
शांति से जलती हुई लाश की लपेटो को भी देखा है।
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बड़े शान से अस्पताल से उसे निकलते देखा है,
श्मशान में सायरन बजाती आती गाड़ी को भी देखा हैं,
इंसान अकेला आया था, अकेला ही जायेगा,
गीता की इस सारगर्भित बात को सच होते देखा है।
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धूं धूं करते हुए अंगारों को देखा है,
बाहर खड़े लोगो की बेबसी को देखा है,
कुछ न कर सकने के दुःख को करीब से देखा है,
पछतावे की अश्रुधारा को भी देखा है।
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दिनरात साथ में रहने वालों को अजनबी बनते देखा है,
समय रहते नियम न पालने की कुंठा को अब देखा है,
कई लाशों को एक साथ आज जलते देखा है,
बड़ा ही दर्दनाक मंजर आँखों से देखा है।।
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आदर्श कहता है,
गर देखना है दर्दनाक मंजर,
एक चक्कर कोविड श्मशान का लगा आओ,
अब भी समय है जाग जाओ,
मास्क लगाओ, दुरी बनाओ, अपने आपको बचाओ,
अपने आपको बचाओ।।
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स्वरचित द्वारा⤵️
● संजय कुमार मालवी (आदर्श)
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● पालीवाल वाणी मीडिया न्यूज़ नेटवर्क...✍️