आपकी कलम
मोटा बाप रो
राजेन्द्र सनाढ्य राजनके तो देई न जाणों,
के छोड़ न जाणों,
पछे भेळों कर-कर न,
अतरो क ई वणें स्याणों।
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ठीक-ठाक वणाई ले,
रेवां रो एक ठकाणों,
लोन लेई न बंगळों,
वणाई न किने वताणों।
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पेट पापड़ वणी रो,
भरपेट खाई ले खाणों,
कबूतर बिचारा टूंगी रा,
वणा नी नाक दाणों।
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मोटा बाप रो वण न,
अठै किने जताणों,
अणी अंधेर नगरी मा,
मती वण राजा काणों।
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मोटो दिल राख,
आपाणें किने हराणों,
आपाणें कणी ऊँ भी,
क ई सम्मान नी पाणों।
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फालतु रो,फोकट मा,
रे-रेन मन नी दुखाणों,
कजाणा कणी दन,
परो वेई उठाणों।
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राजन राम नाम रो,
भेळों कर खजाणों,
क ई लारे नी आवें,
अठु खाली हाथ जाणों।
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● राजेन्द्र सनाढ्य राजन
व्याख्याता- रा.उ.मा. वि. नमाना
नि-कोठारिया, जि-राजसमंद, राजस्थान M. 9982980777