आपकी कलम
संगत का प्रभाव...तोता
Paliwalwaniसंगति का अर्थ है हम जैसे लोगों के साथ रहेंगे, उनके गुण-अवगुण हमें भी सीधे तौर पर प्रभावित करेंगे। इसलिए बुरी आदतों वाले लोगों से हमेशा बचकर रहना चाहिए।
- एक राजा का तोता मर गया। उन्होंने कहा-- मंत्रीप्रवर! हमारा पिंजरा सूना हो गया। इसमें पालने के लिए एक तोता लाओ।
- तोते सदैव तो मिलते नहीं। राजा पीछे पड़ गये तो मंत्री एक संत के पास गये और कहा--
- भगवन्! राजा साहब एक तोता लाने की जिद कर रहे हैं। आप अपना तोता दे दें तो बड़ी कृपा होगी। संत ने कहा- ठीक है, ले जाओ।
- राजा ने सोने के पिंजरे में बड़े स्नेह से तोते की सुख-सुविधा का प्रबन्ध किया।
- ब्रह्ममुहूर्त में तोता बोलने लगा-- ओम् तत्सत्....ओम् तत्सत् ... उठो राजा! उठो महारानी! दुर्लभ मानव-तन मिला है।
- यह सोने के लिए नहीं,भजन करने के लिए मिला है।
- 'चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर।तुलसीदास चंदन घिसै तिलक देत रघुबीर।।'
- कभी रामायण की चौपाई तो कभी गीता के श्लोक उसके मुँह से निकलते।
- पूरा राजपरिवार बड़े सवेरे उठकर उसकी बातें सुना करता था।राजा कहते थे कि सुग्गा क्या मिला,एक संत मिल गये।
- हर जीव की एक निश्चित आयु होती है।एक दिन वह सुग्गा मर गया। राजा,रानी,राजपरिवार और पूरे राष्ट्र ने हफ़्तों शोक मनाया।
- झण्डा झुका दिया गया।किसी प्रकार राजपरिवार ने शोक संवरण किया और राजकाज में लग गये। पुनः राजा साहब ने कहा-- मंत्रीवर! खाली पिंजरा सूना-सूना लगता है, एक तोते की व्यवस्था हो जाती!
- मंत्री ने इधर-उधर देखा, एक कसाई के यहाँ वैसा ही तोता एक पिंजरे में टँगा था। मंत्री ने कहा कि इसे राजा साहब चाहते हैं।
- कसाई ने कहा कि आपके राज्य में ही तो हम रहते हैं। हम नहीं देंगे तब भी आप उठा ही ले जायेंगे।
- मंत्री ने कहा-- नहीं, हम तो प्रार्थना करेंगे। कसाई ने बताया कि किसी बहेलिये ने एक वृक्ष से दो सुग्गे पकड़े थे।
- एक को उसने महात्माजी को दे दिया था और दूसरा मैंने खरीद लिया था। राजा को चाहिये तो आप ले जायँ।
- अब कसाईवाला तोता राजा के पिंजरे में पहुँच गया। राजपरिवार बहुत प्रसन्न हुआ। सबको लगा कि वही तोता जीवित होकर चला आया है।
- दोनों की नासिका, पंख, आकार, चितवन सब एक जैसे थे। लेकिन बड़े सवेरे तोता उसी प्रकार राजा को बुलाने लगा जैसे वह कसाई अपने नौकरों को उठाता था
- कि उठ! हरामी के बच्चे! राजा बन बैठा है। मेरे लिए ला अण्डे, नहीं तो पड़ेंगे डण्डे!
- राजा को इतना क्रोध आया कि उसने तोते को पिंजरे से निकाला और गर्दन मरोड़कर किले से बाहर फेंक दिया।
- दोनों सुग्गे सगे भाई थे। एक की गर्दन मरोड़ दी गयी, तो दूसरे के लिए झण्डे झुक गये, भण्डारा किया गया, शोक मनाया गया।
- आखिर भूल कहाँ हो गयी?
- अन्तर था तो संगति का! सत्संग की कमी थी।
- 'संगत ही गुण होत है, संगत ही गुण जाय।
- बाँस फाँस अरु मीसरी, एकै भाव बिकाय।।'
- सत्य क्या है और असत्य क्या है?
- उस सत्य की संगति कैसे करें?