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आख़िर संस्कार वान पार्टी भाजपा को क्या हो गया है...क्यों वह अपना DNA बदलने पर आमादा है...?

paliwalwani
आख़िर संस्कार वान पार्टी भाजपा को क्या हो गया है...क्यों वह अपना DNA बदलने पर आमादा है...?
आख़िर संस्कार वान पार्टी भाजपा को क्या हो गया है...क्यों वह अपना DNA बदलने पर आमादा है...?

जब कांग्रेसी नेताओं को भाजपा चुनाव लड़वाएगी तो पार्टी के समर्पित नेता कहाँ जाकर चुनाव लड़ेंगे?

क्या डॉ विकास चौधरी की तरह कस्वां ! वीरम देव सिंह जेसास और अन्य नेताओं को अपना DNA बदलना होगा?

पार्टी हाई कमान बुरा न माने! विचार परिवार को ज़िन्दा रखने पर विचार करे!! 

सुरेन्द्र चतुर्वेदी

राजस्थान कांग्रेस में जो कुछ हो रहा है. वह तो समझ मे आ रहा है मगर भाजपा में क्या हो रहा है, ये किसी को समझ नहीं आ रहा. कांग्रेस पतन के कगार पर है, यह दिख रहा है इसलिए डूबते जहाज में चूहों का जहाज छोडकर भागना लाज़िमी है. मगर चार सौ पार का नारा लगाने वाली भाजपा अपना मूल चरित्र बदलने को क्यों मजबूर हो रही है. इतनी मज़बूर! इतनी निर्बल और निरीह कि उसे अपने वज़ूद और सामर्थ्य पर यक़ीन नहीं! इतनी मोहताज़ और कमज़र्फ कि उसे ग़ैर संस्कारों वाले राजनेताओं को अपनी पार्टी से जोड़ना पड़े। न केवल जोड़ना पड़े बल्कि अपने मूल लोगों को अधिकारों से वंचित कर उनको टिकिट देना पड़े.

कल तक भाजपा की अस्मिता को पानी पी पी कर कोसने वाले कांग्रेसी नेताओं को भाजपा इस तरह अपनी पार्टी में भर्ती कर रही है, जैसे उसके अपने कार्यकर्ता नपुंसक हो गए हों.

कैडर बेस्ड पार्टी होने पर गर्व करने वाली भाजपा में कभी इतनी बदहवासी देखने को नहीं मिली. अपनी पार्टी को लूट खसोट कर खोखला कर देने वाले नेताओं को भाजपा क्या सोच कर अपने दल में लाकर सम्मानित कर रही है. वही जानें मगर पार्टी की प्राणवायु कहे जाने वाले RSS यानि संघ परिवार पर क्या बीत रही होगी. यह भी सोचा जाना चाहिए. क्या विचार परिवार अपने बाड़े में विभिन्न प्रजातियों के प्राणियों की आमद से प्रसन्न है.

उदाहरण के बतौर राजसमंद लोकसभा क्षेत्र को ही लें. सुना है यहाँ से कांग्रेस के नेता मानवेन्द्र सिंह को हाथा जोड़ी कर चुनाव लड़वाने की क़वायद चल रही है. केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत जो जोधपुर से चुनाव लड़ रहे हैं. मानवेन्द्र सिंह के सामने चुनाव लड़ने से डरे हुए हैं. कांग्रेस मानवेन्द्र सिंह को उनके सामने जोधपुर से लड़वाना चाहती है. गजेंद्र सिंह पर मानवेन्द्र भारी पड़ेंगे यह जान कर मानवेन्द्र सिंह को न केवल भाजपा में लाया जा रहा है, बल्कि उनको राजपूतों की कही जाने वाली राजसमंद सीट पर लड़वाया जाने का प्रस्ताव है.

सवाल उठता है कि भाजपा में क्या राजसमंद से चुनाव लड़ कर जीतने वाला कोई नेता नही...! क्या आयातित नेताओं के बिना राजसमंद पर विजय हांसिल नहीं की जा सकती क्या. कोई मज़बूत क्षत्रप भाजपा की सेना में पहले से मौज़ूद नही.

मित्रों! ऐसा बिल्कुल नहीं बिल्कुल भी नहीं...! भाजपा के पास ऐसे ऐसे योद्धा हैं, जो इकतरफा चुनाव जीतने की योग्यता रखते हैं. जब राजसमंद का ही ज़िक्र चल निकला है, तो बता दूँ की आरएसएस के एक समर्पित पदाधिकारी वीरम देव सिंह जैसास को भी यहाँ से चुनाव लड़ाया जा सकता है. बल्कि लोगों का तो मानना है कि यदि पार्टी उनको चुनाव में उतारती है, तो वह मानवेन्द्र सिंह या राजेन्द्र राठौड़ या किसी भी अन्य नेता पर दस गुणा भारी पड़ सकते हैं.

वीरम देव सिंह जैसास विचार परिवार से जुड़े हुए नेता हैं और उनकी रगों में भाजपा के संस्कार रचे बसे हैं. वह पूर्व प्रदेश महामंत्री रह चुके हैं. किसी पत्रकार मित्र ने उनके बारे में मुझे बताया. लगा कि भाजपा हाई कमान को इतने समर्पित नेताओं को आगे लाने की जगह नक़ली योद्धाओं को मैदान में उतारने की क्या ज़रूरत है.

वीरम देव सिंह अद्भुत व्यक्तित्व के धनी बताए जाते हैं. वह मेड़ता विधानसभा क्षेत्र के निवासी हैं. उल्लेखनीय है कि मेड़ता विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है, इसलिए वीरम देव सिंह को वहां से चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिल सकता. नागौर जिले में 10 विधानसभा क्षेत्र हैं. नागौर लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभाएं एवं राजसमंद लोकसभा क्षेत्र में दो विधान सभा मेड़ता एवं डेगाना आती हैं.

पार्टी यदि वीरम देव सिंह को स्थानीय लोकसभा क्षेत्र का उम्मीदवार बनाती है, तो नागौर लोकसभा सीट में भी पार्टी को भारी लाभ होगा. यह भी सब जानते हैं कि वीरम देव सिंह ने 15 वर्षों तक नागौर जिला संगठन में कार्य किया है. उनको चुनाव लड़वाया जाता है, तो राजसमंद और नागौर संसदीय क्षेत्र के आम कार्यकर्ताओं में सकारात्मक संदेश जाएगा. 

ऐसे मतदाता जो ढाई लाख से ज्यादा उनके समाज से हैं वह भी पार्टी के प्रति झुकेंगे. इतने विश्वसनीय और प्रबल राजनेता के होते यदि पार्टी आयातित नेता को लेकर चुनाव लड़वाती है, तो इससे पार्टी के उन कार्यकर्ताओं का अपमान होगा. जो बरसों से भाजपा के लिए तन मन धन और अपना सर्वस्व अर्पित कर चुके हैं. क्या अब उनको कांग्रेस में जाकर टिकिट लेना पड़ेगा.

किशनगढ विधानसभा से चुनाव जीते डॉ विकास चौधरी इसके स्प्ष्ट उदाहरण हैं. जो भाजपाई संस्कारों के थे. जिनका षड्यंत्र पूर्वक टिकिट काट दिया गया और उन्होंने कांग्रेस से टिकट लेकर भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी भागीरथ चौधरी को सिर्फ़ ज़मानत बचाने लायक रखा.

क्या भाजपा हाईकमान इसी परंपरा को जीवंत रखना चाहती है...! मेरा ऐसा मानना है कि लालचंद कटारिया...! महेन्द मालवीय...! मानवेन्द्र सिंह...! या ऐसे ही अन्य नामधारियों को भाजपा अपने यहाँ लाकर सम्मानित करेगी तो भाजपा अपने उस स्वरूप को खो देगी. जिसे पंडित दीनदयाल ने लहू से सींचा और अटल बिहारी वाजपेयी ने जिसे अपने सिध्दांतों से पाला पोसा.

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