आमेट
प्रभु जयसिंह श्याम की नगरी में निकली जगन्नाथ रथ यात्रा, जयकारो से गूंज उठा आमेट नगर
M. Ajnabee, Kishan paliwalM. Ajnabee, Kishan paliwal
आमेट. नगर के धार्मिक उत्सवों में आषाढ़ शुक्ल द्वितीया रविवार का दिन एक अमिट छाप के रुप से अंकित हो गया। मौका था नगर में जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव का। कार्यक्रम में प्रातः भगवान जयसिंह श्याम के मंदिर में अभिषेक किया। 12 बजे आचार्यों के नेतृत्व में इंद्र महायज्ञ किया गया। फिर नगर के चारों दरवाजों का पूजन व खेड़ा देवत पूजन करने के बाद 3:30 बजे जगन्नाथ यात्रा शूरू हुई।
महामंडलेश्वर सीता राम दास के सानिध्य में रथ का पुजन कर ठाकुरजी को आरूढ़ किया गया। रथ में परंपरागत छड़ी, मेघा डामर, हाथ पंखा, चवर आदि यात्रा की शोभा बढ़ा रहे थे। यात्रा में रथ के आगे महिलाएं सिर पर कलश धारण कर चल रही थी। अश्व , बैंड, परंपरागत वाद्य यंत्रों रथ यात्रा की शोभा बढ़ा रहे थे। नगर वासियो ने जगह जगह पुष्प वर्षा कर रथ यात्रा का स्वागत किया।
रथ यात्रा जयसिंह श्याम मंदिर से शूरू होकर रामदेव मंदिर, बड़ी पोल, पीपली पोल, गणेश चौक, लक्ष्मी बाजार, बस स्टैंड, भीलवाड़ा रोड़, रामद्वारा, होलीथन, तकिया रोड़, सदर बाज़ार होते हुए सांय 5 बजे पुनः मंदिर परांगन पहुंची। जहा यज्ञ पूर्णाहुति व महा आरती हुई। रथ यात्रा में संत हरि दास आड़ावाला आश्रम, संत रामदास बाहर का अखाड़ा, संत नंदा दास त्यागी, नगर के प्रबुद्ध जन सहित सैकड़ों की संख्या में नगरवासी उपस्थिति थे।
हाथ से रथ खींचने की लगी होड़
परंपरा के अनुसार जगन्नाथ पुरी में निकलने वाली रथ यात्रा में भगवान के रथ को हाथ से खींचा जाता है। उसी परंपरा के अनुसार नगर में पहली बार निकली रथ यात्रा में भगवान के विग्रह को रथ में बिठाया गया। फिर रथ को भक्तो द्वारा हाथ से खींचा गया। पहली बार निकली इस रथ यात्रा में रथ को खींचने के लिए नगर वासियों में होड़ लगी रही। यात्रा में आए हर भक्त ने अपने हाथ से ठाकुरजी का रथ खींचकर अपनी सेवा दी। रथ यात्रा में पूरा मार्ग प्रभु के जय कारो से गुंजाया मान रहा। नगर वासियों ने जगह पर पुष्प वर्षा कर रथ यात्रा का स्वागत किया ।
क्या है रथ यात्रा के पीछे की कहानी
उड़ीसा राज्य का पुरी क्षेत्र जिसे पुरुषोत्तम पुरी, शंख क्षेत्र, श्रीक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है, भगवान श्री जगन्नाथ जी की मुख्य लीला-भूमि है। उत्कल प्रदेश के प्रधान देवता श्री जगन्नाथ जी ही माने जाते हैं। यहाँ के वैष्णव धर्म की मान्यता है कि राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक स्वयं श्री जगन्नाथ जी हैं। इसी प्रतीक के रूप श्री जगन्नाथ से सम्पूर्ण जगत का उद्भव हुआ है। श्री जगन्नाथ जी पूर्ण परात्पर भगवान है और श्रीकृष्ण उनकी कला का एक रूप है। ऐसी मान्यता श्री चैतन्य महाप्रभु के शिष्य पंच सखाओं की है।
पूर्ण परात्पर भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी में आरम्भ होती है। यह रथयात्रा पुरी का प्रधान पर्व भी है। हर साल आषाढ़ के महीने में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा ओडिशा के पुरी जगन्नाथ मंदिर से निकाली जाती है। भगवान जगन्नाथ श्री कृष्ण के ही अवतार हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने द्वारका के दर्शन करने की इच्छा ज़ाहिर की थी और तब भगवान जगन्नाथ ने अपनी बहन को रथ में बिठाकर घुमाया था और तभी से रथ यात्रा की शुरुआत हुई थी।
ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति रथ यात्रा में शामिल होकर रथ को खींचता है उसको सौ यज्ञ करने बराबर पुण्य मिलता है। रथयात्रा में जगन्नाथ भगवान के रथ के साथ उनकी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम के रथ भी शामिल होते हैं। इनके रथ अक्षय तृतीया से ही बनने शुरू हो जाते हैं। जब तीनों रथ बनकर तैयार हो जाते हैं तब इन तीनों रथों की विधिवत पूजा की जाती है. इतना ही नहीं जिस रास्ते से यह रथ निकलने वाले होते हैं उसे 'सोने की झाड़ू' से साफ़ भी किया जाता है।