राजस्थान
गुजरात चुनाव से सोनिया, राहुल और प्रियंका ने क्यों बना रखी है दूरी : कांग्रेस की कोई रणनीति है या फिर कोई मजबूरी
तिलक माथुरगुजरात में आप पार्टी कांग्रेस की हवा बिगाड़ सकती है, तीसरे मोर्चे के रूप में आम आदमी पार्टी चुनाव मैदान में
केकड़ी - राजस्थान
गुजरात में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान अब किसी भी दिन हो सकता है। चुनावी बिगुल बजने से पहले ही सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और पहली बार सभी सीटों पर लड़ रही आम आदमी पार्टी ने बड़ी-बड़ी रैलियों और रोड शो के जरिए माहौल को गरमा दिया है। भाजपा के लिए पीएम मोदी कई रैलियां कर चुके हैं तो आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल भी ताबड़तोड़ दौरे कर रहे हैं। हालांकि, राज्य में मुख्य विपक्षी पार्टी और 2017 के चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर देने वाली कांग्रेस के बड़े नेताओं खासकर गांधी परिवार ने गुजरात से दूरी बना रखी है।
कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने अभी तक अपने चुनावी अभियान का आगाज नहीं किया है। कुछ लोग इस बात से हैरान हैं तो कुछ राजनीतिक जानकार इसमें खास रणनीति के रूप में देख रहे हैं। कांग्रेस पार्टी में प्रधानमंत्री पद के घोषित-अघोषित उम्मीदवार राहुल गांधी इन दिनों भारत जोड़ो यात्रा पर हैं। वह यात्रा से ब्रेक लेकर गुजरात में प्रचार करेंगे या नहीं, इस पर अभी पार्टी की ओर से तस्वीर साफ नहीं की गई है। लेकिन पार्टी सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी इस बार पिछले चुनाव की तरह सक्रिय नहीं रहेंगे।
मतदान के नजदीक होने पर उनकी रैलियां कराने पर विचार किया जा सकता है। लेकिन फिलहाल कोई कार्यक्रम तय नहीं है। पार्टी सूत्रों की मानें तो गांधी परिवार के गुजरात से दूर रहने के पीछे एक खास रणनीति है। मुख्य विपक्षी पार्टी की कोशिश है कि इस चुनाव को ‘मोदी बनाम कांग्रेस’ या फिर यह कहें कि ‘मोदी बनाम गांधी परिवार’ होने से रोका जाए। गांधी परिवार की ओर से किए गए कई हमलों को पूर्व के चुनावों में मोदी अपने हक में भुना चुके हैं। मौत का सौदागर, विकास पागल हो गया और चौकीदार चोर है, जैसे हमलों से कांग्रेस को पहले काफी नुकसान हो चुका है। वंशवाद और भ्रष्टाचार जैसे आरोप लगाते हुए पीएम मोदी गांधी परिवार के प्रति हमलावर रहे हैं और उन्हें गुजराती अस्मिता के खिलाफ बताते रहे हैं।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो पीएम मोदी गांधी परिवार के सहारे चुनाव को ‘राष्ट्रीय’ रूप देने में कामयाब हो जाते हैं और ऐसे में स्थानीय मुद्दे गौण हो जाते हैं। गांधी परिवार के सदस्य भले ही गुजरात में अभी रैलियां नहीं कर रहे हैं, लेकिन दिल्ली में रहकर रणनीति बनाने पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है। जुलाई में ही प्रियंका गांधी ने गुजरात के नेताओं के साथ दिल्ली में मंथन किया था और खास रणनीति बनाई थी। अंतरिम अध्यक्ष रहते हुए सोनिया गांधी ने एक टास्क फोर्स का गठन किया था, जिसमें पी चिदंबरम, मुकुल वासनिक, केसी वेणुगोपाल और रणदीप सिंह सुरजेवाला जैसे नेता शामिल हैं।
इनके अलावा राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी वहां वरिष्ठ पर्यवेक्षक बनाकर भेजा गया है, जिनकी अगुआई में पार्टी ने पांच साल पहले अच्छा प्रदर्शन किया था। कांग्रेस गुजरात में 27 सालों से सत्ता में काबिज भाजपा के प्रति ‘सत्ता विरोधी लहर’ को भुनाने के लिए लोकल लीडरशिप पर भरोसा जता रही है। पार्टी का मानना है कि मोदी के बाद गुजरात में भाजपा की लीडरशिप कमजोर हुई है और स्थानीय मुद्दों को केंद्र में रखकर चुनाव लड़ा जाए। पार्टी बड़ी रैलियों से भले ही बच रही है, लेकिन छोटी-छोटी सभाओं के जरिए वोटर्स को साधने की कोशिश लगातार जारी है।
कांग्रेस के इस गुपचुप दांव को लेकर पीएम मोदी अपने कार्यकर्ताओं को सावधान कर चुके हैं। पीएम मोदी ने हाल के समय में गुजरात में अपनी रैलियों के दौरान मंच से इस बात का जिक्र किया है। वहीं दूसरी ओर आप पार्टी कांग्रेस की हवा बिगाड़ने पर तुली है। गुजरात में अरविंद केजरीवाल के लिए न तो पंजाब जैसी अनुकूल स्थिति है और न ढाई दशकों से राज्य की सत्ता के शीर्ष पर बैठी भाजपा के लिए प्रतिकूल है। फिर भी अगर आम आदमी पार्टी गुजरात में अपनी संभावनाओं की तलाश में है तो इसका सीधा असर पिछले चुनाव में सशक्त तरीके से भाजपा का सामना करने वाली कांग्रेस पर पड़ सकता है। इस बार दोनों के बीच तीसरे खिलाड़ी के रूप में आम आदमी पार्टी का प्रवेश हो गया है।
दिल्ली और पंजाब से कांग्रेस का सफाया करने के बाद आप की कोशिश गुजरात में भी पांव पसारने की है। दिल्ली-पंजाब की सफलता को कांग्रेस के संदर्भ में देखने से स्थिति स्पष्ट हो जाती है कि अभी तक आप को उन्हीं राज्यों में सफलता मिली है, जहां कांग्रेस की सरकार थी। आम आदमी पार्टी अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा को बता रही है। इस प्रयास में भाजपा पर तीखे हमले किए जा रहे हैं जो अंतत: कांग्रेस के लिए नुकसान का कारण बन सकता है। भाजपा और आप का संघर्ष प्रत्यक्ष तौर पर दिख रहा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कांग्रेस परिदृश्य से गायब है। माना जा रहा कि परोक्ष तौर पर कांग्रेस भी अपनी जमीन को विस्तार दे रही है। नए राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े की रणनीति का भी इंतजार है। चुनाव की घोषणा अभी बाकी है। जैसे-जैसे माहौल में तल्खी आएगी वैसे-वैसे हवा का रुख भी बदल सकता है।