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ओलिंपिक महिला हॉकी में हैट्रिक मारने वाली पहली भारतीय वंदना ने रचा इतिहास..

Paliwalwani
ओलिंपिक महिला हॉकी में हैट्रिक मारने वाली पहली भारतीय वंदना ने रचा इतिहास..
ओलिंपिक महिला हॉकी में हैट्रिक मारने वाली पहली भारतीय वंदना ने रचा इतिहास..

भारतीय महिला हॉकी टीम ने ग्रुप-A के अपने आखिरी मैच में साउथ अफ्रीका को 4-3 से हरा दिया। उत्तराखंड के हरिद्वार के छोटे से गांव रोशनाबाद की रहने वाली वंदना कटारिया ने मैच में 3 गोल दागकर इतिहास रच दिया। वे ओलिंपिक मैच में गोल की हैट्रिक लगाने वाली भारत की पहली महिला हॉकी खिलाड़ी बन गईं। उनके गोल की बदौलत भारत के क्वार्टर फाइनल में पहुंचने की उम्मीद बरकरार है। 29 साल की वंदना पहले खो-खो प्लेयर बनना चाहती थीं, लेकिन रनिंग स्पीड अच्छी होने की वजह से हॉकी खेलना शुरू किया।

2005 में उनके पास हॉकी की ट्रेनिंग के लिए पैसे नहीं थे। इसे बाद वंदना के पिता नाहर सिंह कटारिया ने किसी तरह उधार लेकर पैसों का इतंजाम किया और अपनी बेटी के सपनों को पूरी करने में मदद की। टोक्यो ओलिंपिक से 3 महीने पहले अप्रैल में नाहर सिंह का निधन हो गया था। इसके बाद वंदना ने उनकी याद को ही अपनी प्रेरणा बना लिया। पिता के लिए ओलिंपिक मेडल जीतने को ही एकमात्र लक्ष्य बना लिया।

घर वाले नहीं चाहते थे मैं खिलाड़ी बनूं

वंदना हॉकी से पहले खो-खो खेलती थीं। 2002 में खो-खो की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में वंदना ने शानदार रिकॉर्ड बनाने के बाद कोच कृष्ण कुमार ने 11 साल की वंदना की ऊर्जा देखकर हॉकी में उतारा था। वंदना बताती हैं कि उनकी रनिंग स्पीड अच्छी थी। इसी वजह से हॉकी खेलना शुरू किया।2003 में हॉकी के कोच प्रदीप चिन्योटी वंदना को अपने साथ मेरठ ले आए। 2006 में वंदना को केडी सिंह बाबू स्टेडियम लखनऊ में एडमिशन लिया और वहीं ट्रेनिंग शुरू की।वंदना बताती हैं, "मेरे घर वाले नहीं चाहते थे कि लड़की होकर मैं खिलाड़ी बनूं और बाहर जाऊं, लेकिन पापा मुझे सपोर्ट करते थे। उन्होंने मेरी पूरी मदद की, इसलिए लोगों ने उन्‍हें भी ताना देना शुरू कर दिया था।"

2010 में नेशनल टीम में सिलेक्शन हुआ

वंदना के पिता BHEL में काम करते थे। वंदना बताती हैं, "कई बार हालात ऐसे हो जाते थे कि बाहर ट्रेनिंग करने के लिए मेरे पास पैसे नहीं होते थे। पापा उधार लेकर मुझे ट्रेनिंग के लिए भेजते थे। 2005 में मैंने उतर प्रदेश टीम से खेलना शुरू किया। मेरी किस्मत अच्छी थी कि 2011 में स्पोर्टस कोटे से रेलवे में जूनियर TC पद पर जॉब लग गई। 2010 में मेरा नेशनल महिला हॉकी टीम में सिलेक्शन हो गया।"

2013 में सबसे ज्यादा गोल दागे

इसके बाद से वंदना ने कभी पीछ मुड़कर नहीं देखा। 2013 महिला हॉकी जूनियर वर्ल्ड कप में उन्होंने सबसे ज्यादा गोल दागे और टीम को ब्रॉन्ज मेडल जीतने में मदद की। वंदना ने एक इंटरव्यू में बताया था कि जूनियर वर्ल्ड कप के बाद मीडिया वालों ने उनके पिता का इंटरव्यू लिया। उस वक्त उनकी आंखों में आंसू थे। पिता को गर्व कराना उनके हॉकी के सफर में सबसे अच्छे पलों में से एक है।

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