अन्य ख़बरे

जो कभी गलियों में घूमकर बेचती थीं कोयला, आज हैं ऑडी, मर्सीडीज जैसी कारों की मालकिन

Paliwalwani
जो कभी गलियों में घूमकर बेचती थीं कोयला, आज हैं ऑडी, मर्सीडीज जैसी कारों की मालकिन
जो कभी गलियों में घूमकर बेचती थीं कोयला, आज हैं ऑडी, मर्सीडीज जैसी कारों की मालकिन

जब भी हम किसी गरीब व्यक्ति को कामयाबी की ऊंचाइयाँ छूते हुए देखते हैं, या फिर उसे निर्धन से धनवान होते हुए देखते हैं, तो अक्सर यही कहा जाता है-‘उसका भाग्योदय हो गया है अथवा क़िस्मत ने उसका साथ दिया इसलिए ऐसा हुआ’ , पर क्या कोई यह जानने की कोशिश करता है कि इस मुकाम पर पहुँचने के लिए उस गरीब व्यक्ति ने कितनी मेहनत की होगी? कितना पसीना बहाया होगा और कितना संघर्ष किया होगा? जब हम किसी सफल व्यक्ति के संघर्ष की दास्तान सुनते हैं तभी पता चलता है कि सिर्फ़ भाग्य के साथ देने से व्यक्ति के दिन नहीं बदलते बल्कि दिन रात एक कर के जो लोग अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए मेहनत करते हैं, उन्हीं की क़िस्मत बदलती है।

हमें ऐसे बहुत से व्यक्तियों की प्रेरणादायक कहानियाँ रोजाना पढ़ने और सुनने को मिलती रहती हैं, जिन्होंने कड़े संघर्षों का सामना करके भी सफलता प्राप्त की और सारी दुनिया को एक सबक दिया। आज भी हम एक ऐसे ही महिला की प्रेरक कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अनेक संघर्षों का हिम्मत से सामना किया और अपनी क़िस्मत ख़ुद बदलते हुए, अब वे एक प्रसिद्ध उद्योगपति के तौर पर स्थापित हैं। चलिए जानते हैं उनकी पूरी कहानी…

गुजरात में मशहूर हैं सविताबेन कोयलावाली 

हम जिन महिला की बात कर रहे हैं, उनका नाम है सविताबेन देवजीभाई परमार (Savitaben Devjibhai Parmar)। आज उन्हें गुजरात में हर व्यक्ति जानता है और वे वहाँ सविताबेन कोलसावाला या कोयलावाली के नाम से प्रसिद्ध हैं। पर ऐसा भी समय था जब, सविताबेन पैदल चलकर घर-घर जाती और कोयला बेचा करती थीं, पर आज वह अपने बलबूते पर करोड़पति बन गई हैं। हालांकि उनका यह पूरा सफ़र सरल नहीं रहा था, कई मुश्किलें झेलकर और अपनी ग़रीबी से लड़कर, उन्होंने अपना एक विस्तृत साम्राज्य स्थापित किया।

घर की हालत खराब थी तो काम करने का सोचा, पर अनपढ़ होने के कारण काम नहीं मिला

गुजरात की औद्योगिक राजधानी अहमदाबाद की रहने वाली सविताबेन एक अत्यंत गरीब परिवार से सम्बन्ध रखती हैं। पहले से ही इनके घर की माली हालत बहुत खराब थी। उनके पति अहमदाबाद म्युनिसिपल टांसपोर्ट सर्विस में कंडक्टर की नौकरी किया करते थे, लेकिन चूंकि उनका संयुक्त परिवार था तो एक इंसान की कमाई से सारे परिवार का पालन पोषण नहीं हो पाता था। जैसे तैसे बस दो समय की रोटी ही मिल पाती थी। फिर घर की हालत को देखते हुए सविताबेन ने निश्चय किया कि अब वह भी कुछ काम करेंगे जिससे घर की हालत में सुधार आए। परंतु उनके सामने समस्या यह थी कि वे बिल्कुल अनपढ़ थीं, इस वज़ह से उनको कोई व्यक्ति काम पर नहीं रख रहा था।

कोयले की कालिख से चमकाया अपना भाग्य

सविताबेन ने जगह-जगह जाकर काम ढूँढा, पर जब उन्हें कोई काम नहीं मिला तो उन्होंने निश्चय किया कि अब वह अपना ख़ुद का कोई काम शुरू करेंगी। उनके माता-पिता कोयला बेचने का व्यापार किया करते थे। जिसे देखते हुए सविता बेन ने भी कोयला बेचने का काम शुरू करने का निश्चय ले लिया। परंतु ऐसी ग़रीबी में वह माल खरीदने के पैसे कहाँ से लातीं? फिर उन्होंने पैसे जुटाने के लिए पहले कोयला फैक्ट्रियों में से जला हुआ कोयला बीना और उसे ठेले पर ले जाकर घर-घर जाकर बेचने लगीं।

सविताबेन जब अपने उन पुराने दिनों को याद करती हैं तो कहती हैं कि वे लोग गरीब व दलित थे, इस-इस वज़ह से व्यापारी उनके साथ व्यापार भी नहीं करना चाहते थे। कोयला व्यापारी कहते कि-‘यह तो एक दलित महिला है, कल को हमारा माल लेकर भाग गई तो हम क्या करेंगे?’

ये भी पढ़े : MUTUAL FUND INVESTMENT : निवेश से पहले इन 8 बातों का रखें ध्यान, वरना सकता है नुकसान

यह भी पढ़े : Multibagger Stock : IRCTC ने एक साल में 120% रिटर्न दिया, आने वाले समय में 5000 तक पहुंच सकता है

पहले ठेला लगाया, फिर दुकान और फिर होने लगा करोड़ों का कारोबार

सविताबेन के सामने बहुत ही मुश्किल है आई लेकिन उन्होंने कभी अपनी हिम्मत नहीं हारी और डटकर अपना काम करती रहीं। वह घूम-घूम कर लोगों के घर जाती और उन्हें कोयला बेचती थीं। धीरे-धीरे करके उनके ग्राहक भी बढ़ने लगे थे। इस तरह से ग्राहक बढ़ने से उनका मुनाफा भी बढ़ता गया। पहले वे ठेले पर कोयला बेचने जाती थी और फिर बाद में उन्होंने अपने व्यवसाय को बढ़ाने का सोचा तथा एक छोटी-सी कोयले की दुकान खोल ली। दुकान खोलने के बाद कुछ ही महीनों बाद उन्हें छोटे कारखानों से ऑर्डर प्राप्त होने लगे। फिर तभी एक दिन एक सिरेमिक वाले ने उन्हें एक बड़ा आर्डर दिया, बस इस प्रकार से सविताबेन कारखाने के दौरे करने लगीं। उन्हें माल पहुँचाने और पेमेंट लेने के लिए अलग-अलग कारखानों में जाना होता था।

कारखानों का दौरा करते हुए सविताबेन ने ग्राहकों की मांग और ज़रूरत को भी जांचा परखा और फिर उन्होंने अपनी एक छोटी-सी सिरेमिक की भट्टी भी शुरू की। उन्होंने ग्राहकों को कुछ कम दाम में ही अच्छी क्वालिटी की सिरेमिक उपलब्ध कराई, फिर तो उनका व्यापार बढ़ता ही गया और वे कामयाबी की सीढ़ियाँ चढ़ती गईं। फिर वर्ष 1989 में सविता बेन ने प्रीमियर सिरेमिक्स बनाना भी शुरू कर दिया तथा साल 1991 में स्टर्लिंग सिरेमिक्स लिमिटेड नामक एक कम्पनी का शुभारंभ किया और विदेशों में भी सिरेमिक्स उत्पादों का निर्यात करने लगीं।

अब लग्जरी कारों और 10 बैडरूम के बंगले समेत हर सुविधा है, सविताबेन के पास

अब तो सविताबेन का नाम भारत की सर्वाधिक सफल महिला उद्योगपति की लिस्ट में दर्ज हो गया है। उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। आज सविताबेन के पास कई लग्जरी कारें जैसे ऑडी, पजेरो, बीएमडब्ल्यू व मर्सीडीज इत्यादि की लाइन लगी रहती है। अहमदाबाद शहर के पॉश एरिया में उनके 10 बेडरूम के विशाल बंगले की शान भी देखते ही बनती है। अनपढ़ महिला होने के बावजूद सविताबेन ने अपने दृढ़ निश्चय, मज़बूत हौसले और मेहनत से जो मुकाम हासिल किया वह सभी के लिए प्रेरणादायक है।

 

whatsapp share facebook share twitter share telegram share linkedin share
Related News
Latest News
Trending News