अन्य ख़बरे
37 करोड़ रुपए का इनामी अफगानिस्तान का गृहमंत्री, 13 साल पहले भारत को दिया था जख्म
Paliwalwani20 साल बाद अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान छोड़ा। 20 साल बाद ही एक बार फिर तालिबान ने हुकूमत का औपचारिक ऐलान कर दिया। तालिबान घोषित आतंकी संगठन है और जाहिर सी बात है कि उसकी सरकार में दहशतगर्दों को ही जगह मिलनी थी, और मिली भी। एक नाम और उसका ओहदा या कहें पोर्टफोलियो, अमेरिका और दुनिया को चौंका रहा है। ये नाम है सिराजुद्दीन हक्कानी। वो कितना खूंखार आतंकी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका ने उस पर 50 लाख डॉलर (इंडियन करेंसी के मुताबिक करीब 37 करोड़ रुपए) का इनाम घोषित कर रखा है।
फिदायीन हमले इसके दिमाग की उपज
फिदायीन हमलों का इतिहास कई दशक पुराना है। माना जाता है कि श्रीलंका में सिविल वॉर के वक्त इनकी शुरुआत हुई थी, लेकिन अफगानिस्तान में फिदायीन या आत्मघाती हमले शुरू करने वाला हक्कानी नेटवर्क और खास तौर पर यही सिराजुद्दीन हक्कानी माना जाता है। अफगानिस्तान में इन हमलों में अब तक हजारों बेकसूर मारे जा चुके हैं। सिराजुद्दीन ने अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई की हत्या की साजिश भी इन्हीं हमलों के तहत रची थी। ये नाकाम रही।
कहा जाता है कि सिराजुद्दीन का बाप और हक्कानी नेटवर्क की स्थापना करने वाला जलालुद्दीन हक्कानी 2013 या 2015 के बीच मारा गया, लेकिन सिराजुद्दीन 2001 के बाद से ही हक्कानी नेटवर्क का सरगना बना हुआ है। सिराजुद्दीन पाकिस्तान के वजीरिस्तान में ही रहता है।
ये भी पढ़े : MUTUAL FUND INVESTMENT : निवेश से पहले इन 8 बातों का रखें ध्यान, वरना सकता है नुकसान
हक्कानी नेटवर्क को जानना जरूरी
इसको संक्षिप्त में समझ लेते हैं। 1980 के आसपास सोवियत सेना ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। अमेरिका ने इसे अपनी तौहीन समझा। पाकिस्तान के साथ मिलकर स्थानीय कबीलों को हथियार और पैसा दिया। इनमें हक्कानी नेटवर्क भी शामिल था। इसके बाद तालिबान बना और अमेरिका ने इन गुटों से दूरी बनानी शुरू कर दी, लेकिन पाकिस्तान इन्हें पालता-पोसता रहा। ISI ने हक्कानी नेटवर्क का इस्तेमाल अफगानिस्तान और अमेरिका दोनों के खिलाफ किया। ये एजेंसी पैसे भी लेती और हमले भी कराती। अमेरिका की ये नाकामी ही कही जाएगी कि वो पाकिस्तान पर दबाव डालकर हक्कानी नेटवर्क को खत्म नहीं करा सका।
तालिबान और हक्कानी नेटवर्क: कितने पास, कितने दूर
शायद कम लोगों को पता होगा कि तालिबान किसी एक संगठन का नाम नहीं है। इसमें कई गुट, कई कबीले और कई धड़े हैं। हक्कानी नेटवर्क को आप इनमें से एक मान सकते हैं। अफगान तालिबान अलग है और पाकिस्तान तालिबान अलग। बस एक चीज कॉमन है। ये सभी कट्टरपंथी और आतंकी संगठन हैं जो शरीयत के हिसाब से हुकूमत चलाना चाहते हैं।
तालिबान और हक्कानी नेटवर्क अपनी सुविधा के हिसाब से एक-दूसरे का इस्तेमाल करते हैं। अफगान तालिबान को सत्ता में आने के लिए हक्कानी नेटवर्क ने दिल-ओ-जान से मदद की। नतीजा सामने है। उसका सरगना अब अफगानिस्तान का होम मिनिस्टर होगा। दूसरे शब्दों में कहें तो तालिबान और हक्कानी नेटवर्क एक होकर भी अलग हैं, और अलग होकर भी एक हैं।