मध्य प्रदेश

महाराणा प्रताप की परपोती के लिए बनी कोठी : अपनी पहचान को मोहताज

Paliwalwani
महाराणा प्रताप की परपोती के लिए बनी कोठी : अपनी पहचान को मोहताज
महाराणा प्रताप की परपोती के लिए बनी कोठी : अपनी पहचान को मोहताज

रीवा : मध्य प्रदेश की रीवा रियासत के महाराजा ने गुढ़ चौराहे के पास महाराणा प्रताप की परपोती अजब कुंवरी के लिए बावड़ीयुक्त एक कोठी का निर्माण कराया था. यह बावड़ी लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह के स्नान गाह के आलावा राजस्थान एवं मालवा की स्थापित शैलियों से प्रभावित है, जो आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है. लेकिन धीरे-धीरे यह कोठी देखरेख के अभाव में अपनी पहचान को मोहताज होती जा रही है.

शहर के गुढ़ चौराहे के पास गवर्मेंट स्कूल के पीछे बनी अजब कुँवरी की कोठी का निर्माण रीवा नरेश भाव सिंह ने अपनी रानी अजब कुंवरी के लिए 1664 -70 ई के मध्य कराया था। राजा भाव सिंह ने गुढ़ चौराहे के पास कमसरियत में उदयपुर की रनावट रानी अजब कुँवरी के लिए इस भव्य कोठी और इसी से लगी बावड़ी का निर्माण कराया था।

 नोक तुर्क शैली की है और इसे जलकीड़ा देखने के लिए बनाया

यह बावड़ी लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह के स्नानगाह के अलावा राजस्थान एवं मालवा की स्थापित शैलियों से प्रभावित है। प्रथम तल में एक वर्गाकार छोटा कक्ष है जिसमे चारों ओर खिड़कियां हैं। एक की नोक तुर्क शैली की है और इसे जलकीड़ा देखने के लिए बनाया गया था। इसमें रियासत के महराज और महारानी बैठते थे। रानी अजब कुँवरी की बावली एवं कोठी रीवा के स्थापत्य कला की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण भवन है।

राजस्थानी स्थापत्य शैली का संगम 

यह मुग़ल एवं राजस्थानी स्थापत्य शैली का संगम मालूम होता है, जिसके निर्माण को देखकर लगता है की इसके निर्माण में बड़ी उदारता दिखलाई गई है। इस बावली युक्त कोठी में कुल 40 कक्ष थे, जो अब पूरी तरह से ध्वस्त हो चुके है। 1985-90 तक ये महफूज थे लेकिन उसके बाद ये देखरेख के अभाव में ध्वस्त होते गए।

गर्मी में होता था ठंडक का अहसास

इस कोठी का निर्माण इस तरह किया गया है कि गर्मियों में ठंडक का एहसास हो। इसको इस विधि से बनाया गया था कि इसमें इतनी ठंडक होती थी कि गर्मी का एहसास ही नहीं होता था। इस कोठी की स्थापत्य शैली काफी खूबसूरत है। रानी अजब कुँवरी का निधन 1694 में हुआ था।

सरकार की बेरुखी से पहचान खोती जा रही कोठी

जिस आलिशान कोठी और बावली का निर्माण रीवा नरेश भाव सिंह ने सालों पहले अपनी रानी के लिए कराया था, वह लगातार उपेक्षा का शिकार होने के बाद भी अपनी ख़ूबसूरती से यहां आने वाले लोगों को आकर्षित करती है। उस ज़माने के कारीगरों ने पत्थरों के जरिये इस कोठी का निर्माण किया था, जिसकी नक्काशी का काम आज भी आसानी से नजर आता है। लेकिन अब यह कोठी शासन प्रशासन की बेरुखी के कारण अपनी पहचान को मोहताज है। पुरातत्व में शामिल होने के बाद भी यहां समस्याओं का अंबार है, अगर इसका यही हाल रहा तो आने वाली पीढ़ी इससे अनजान रह जाएंगी।

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