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Business Idea: एक लाख रुपये के साथ करे यह बिज़नेस शुरू होगी 2 लाख रुपये साल की कमाई
Paliwalwaniएक आम किसान भी थोड़ी बहुत खेती से अच्छी खासी कमाई कर सकता है. बस उसे एक कारोबारी की तरह सोचना है और नई तकनीकों का इस्तेमाल करना है. अगर तकनीक के साथ आगे नहीं बढेंगे तो पिछड़ जाएंगे।
सरकार खेती के साथ-साथ खेती से जुड़े काम-धंधों को भी बढ़ावा दे रही है. डेरी उद्योग के साथ मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार नई-नई योजनाएं और नई-नई तकनीक लॉन्च कर रही है.
मछली पालन को देश में नीली क्रांति के रूप में देखा जाता है. मछली पालन के लिए सरकार तमाम तकनीकी जानकारी के साथ आर्थिक मदद भी मुहैया कराती है. अब तो मछली पालने के लिए भी अलग से किसान क्रेडिट कार्ड की भी सुविधा शुरू की हुई है.
केंद्र सरकार ने लॉकडाउन में आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज में मछली पालन क्षेत्र के लिए आत्मनिर्भर भारत अभियान की घोषणा की थी. इसका लक्ष्य ‘प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना’ के तहत मछली पालन में टिकाऊ तरीके से नीली क्रांति लाना है. ‘प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना’ का मुख्य उद्देश्य रोजगार के प्रत्यक्ष अवसर पैदा करना है.
अब तो मछली पालन की ऐसी तकनीकें आ गई हैं जिनके आधार पर आप तालाब के बिना भी मछली पालन कर सकते हैं. बिना तालाब के मछली पालन की तकनीक का नाम है बायोफ्लॉक तकनीक
क्या है बायोफ्लॉक तकनीक
आइए जानते हैं कि ये बायोफ्लॉक तकनीक क्या है और इस पर कितना खर्चा आता है. और तालाब के मुकाबले बायोफ्लॉक तकनीक में मछली पालन के क्या फायदे हैं.
‘बायोफ्लॉक तकनीक’ एक कम लागत वाला तरीका है, जिसमें मछली के लिए जहरीले पदार्थ जैसे अमोनिया, नाइट्रेट और नाइट्राइट को उनके भोजन में तब्दील किया जा सकता है.
तालाब में मछली पालन के पारंपरिक तरीके के मुकाबले बायोफ्लॉक तकनीक के कई लाभों को देखते हुए और मछली पालकों को इसका ज्यादा उत्पादन दिखाने के लिए इसे में पेश किया जा रहा है. यह तकनीक पहले ही कई राज्यों में अपनाई जा चुकी है और इस तकनीक से कई यूनिट सफलतापूर्वक चल रही हैं.
क्या है बायोफ्लॉक
बायोफ्लॉक एक बैक्टीरिया का नाम है. इस तकनीक में बड़े-बड़े टैंकों में मछली पाली जाती हैं. करीब 10-15 हजार लीटर पानी के टैंकों में मछलियां डाल दी जाती हैं. इन टैंकों में पानी भरने, गंदा पानी निकालने, पानी में ऑक्सीजन देने की व्यवस्था होती है.
बायोफ्लॉक तकनीक से कम पानी और कम खर्च में अधिक मछली उत्पादन किया जा सकता है. इस तकनीक से किसान बिना तालाब की खुदाई किए एक टैंक में मछली पालन कर सकते हैं.
मछलियों भोजन की बचत
टैंक सिस्टम में बायोफ्लॉक बैक्टीरिया का इस्तेमाल किया जाता है. ये बैक्टीरिया मछलियों के मल और फालतू भोजन को प्रोटीन सेल में बदल देते हैं और ये प्रोटीन सेल मछिलयों के भोजन का काम करते हैं.
दअसल, मछली जो भी खाती है उसका 75 फीसदी मल निकालती है. यह मल पानी के अंदर ही रहता है. उसी मल को शुद्व करने के लिए बायोफ्लॉक का इस्तेमाल किया जाता है. बायोफ्लॉक बैक्टीरिया होता है. ये बैक्टीरिया इस मल को प्रोटीन में बदल देता है, जिसको मछली खाती है. इस तरह से एकतिहाई फीड की बचत होती है.
बायोफ्लॉक विटामिन और खनिजों का भी अच्छा माध्यम है, खासकर फॉस्फोरस. इस तकनीक में पानी की बचत के साथ मछलियों के खाने की भी बचत होती है.
खर्चा और मुनाफा
बायोफ्लॉक तकनीक के माध्यम से तिलिपियां, मांगूर, केवो, कमनकार जैसी कई प्रजाति की मछलियों का उत्पादन किया जा सकता है. तकनीक से किसान महज एक लाख रुपये खर्च कर प्रति वर्ष एक से दो लाख रुपए की कमाई कर सकते हैं. बायोफ्लॉक तकनीक में सिर्फ एक बार टैंक को बनाने में खर्च आता है. उसके बाद पालन करने पर मछली पालन करने के छह महीने के बाद अच्छा मुनाफा मिलना शुरू हो जाता है.
बायोफ्लॉक तकनीक से 10 हजार लीटर क्षमता का एक टैंक बनावाने पर करीब 35 हजार रुपये की लागत आती है और एक टैंक की लाइफ करीब 5 साल होती है. एक टैंक में मछली पालन की लागत करीब 30 हजार रुपये आती है और इससे करीब 3 क्विंटल मछली का उत्पादन होता है. साल में दो बार मछली पालन किया जा सकता है.
क्या है बायोफ्लॉक तकनीक से फायदा
- बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन के लिए आपके पास सिर्फ जगह होनी चाहिए.
- तालाब खोदने की जरूरत नहीं होती है. इसलिए जमीन कैसी भी हो सकती है.
- इस तकनीक से शहरों में भी मछली पालन किया जा सकता है.
- पानी की बहुत बचत होती है. टैंकों की साफ-सफाई आसानी से हो जाती है.
- अगर किसी टैंक की मछलियों में कोई बीमारी लगती है तो उसका दूसरे टैंक में फैलने का खतरा नहीं.
- तालाब में मछली पालन में रख-रखाव की बहुत जरूरत होती है, जबकि टैंक में कम.