इंदौर
तुम फिर मूरख बन गए इंदोरियो : टिकटों की ब्लेक मार्केटिंग, छापा, टेक्स वसूली, पत्र...सब अब बीते दिनों की बात
नितिनमोहन शर्मालड़ने-झगड़ने वालो ने मिल बेठकर देख लिया क्रिकेट मैच
कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका... सब एक, आरोप प्रत्यारोप एक तरफ
शहर ठगा रह गया, क्रिकेट प्रेमी बाहर खड़े रह गए, जमावट वाले मजे ले गए
अगली बार भी यही होगा, जो हर बार होता है, आप कर क्या लोगे? "लूट" में सब एकजुट है
नितिनमोहन शर्मा...✍️
क्रिकेट के लिहाज से कल का दिन शर्मनाक रहा। मैच शुरु होने के चंद घण्टे पहले आयोजक एमपीसीए के दफ्तर पर टैक्स वसूली का छापा पड़ गया। अब ये बात अहम है कि इस छापे को महापौर पुष्यमित्र भार्गव का समर्थन था या नही? या अफ़सरो ने ही किसी "इशारे" के बाद आयोजको को सबक सिखाने की ठान ली थी? आयोजक भी "लेटर बम" के साथ मैदान में आ गए।
फ्लड लाइट की जगह दिन के उजाले में ही आरोप प्रत्यारोप की पिच पर धमकी के बल्ले चलने लगे। एक दूजे को देख लेने की गेंदे सर्ऱ सर्ऱ फिकने लगी। फिर एकदम से ऐसा क्या हुआ कि शाम को जब मैदान की फ्लड लाइट चमकी तो वे सब एकजुट, एक साथ नजर आए...जो बाहर लड़ रहे थे। एक दूसरे को धमका रहे थे, वे गलबहियां कर रहे थे। ...तो ये क्या नूरा कुश्ती थी? या हम भी खेलेंगे, नही तो खेल बिगाड़ेंगे... वाली गली मोहल्ले की ओछी हरकत थी? जो भी था....पर ये शहर ओर ये शहर ही नही, समूचे मालवा निमाड़ के क्रिकेटप्रेमियो के लिए ये बेहद पीड़ादायक, दुःखद ओर शर्मनाक घटनाक्रम था। ओर चुनोती भी ज्योतिरादित्य सिंधिया ओर कैलाश विजयवर्गीय के लिए कि उनके रहते ये सब कैसे ओर क्यो हुआ?
अगर क्रिकेट की साख बचाना है तो इस बार के मैच के टिकट वितरण प्रक्रिया की जांच होना ही चाहिए कि आखिर ऑनलाइन बिक्री के बाद शेष बचे 13 हजार टिकट... कब, कैसे, ओर कहा से बेचे गए? कितनो को मुफ्त में दिए गए और कितने धमकाकर ले गए?
क्रिकेट प्रेमी बाहर, जमावट वाले अंदर
आपके हाथ मे नगद नोट थे। फिर भी आपको क्रिकेट मैच का टिकट मिला? आप ऑनलाइन एक्सपर्ट हो। सारी साइट्स को समझते बुझते हो। वक्त पर मुस्तेद भी थे। फिर भी आपके हाथ टिकट आया? कतार में लगकर टिकट लेने का तो रिवाज ही खत्म कर दिया गया। ऑनलाइन बिक्री मिनिट दो मिनिट में खत्म हो गई। ऐसा इस शहर में किसी मैच में पहली बार हुआ? नही न। फिर भी कुछ हुआ या होता है मैच के बाद? कहानी अगले मैच में वो ही दोहराई जाती है, जो पिछले मैच के वक्त खेली गई थी।
आप रोते रहो। कलपते रहो। कोसते रहो। लेकिन उससे क्या फर्क पड़ना है जिम्मेदारों को? वे तो सब एक जुट है। "लूट के माल" में सब बराबर हिस्सेदार है। ये लूट मुफ्त के टिकट या पास की है। हिस्सेदारी मिल गई तो फिर क्या...जनता जाय भाड़ में। क्रिकेट प्रेमी ठेंगें पर। हम तो घुस गए। सदलबल। सपरिवार। सम्माम के साथ। अपर-लोवर-मिडिल पवेलियन में। चाय चिवड़े के आतिथ्य सत्कार के साथ। आप खाते रहो धक्के। पैसे है तो क्या..यू ही मिल जाएगा टिकट? ऑरिजनल दरों पर? मज़ाक है। फिर हमारा क्या होगा? रोज रोज क्रिकेट होता है क्या जो मेडम बच्चो, साले सालियो, नातेदार रिश्तेदार को दिखा दे। कभी कभार होता है। ऐसे में हमे नही जाने को मिलेगा तो मैच ऐसे कैसे हो जाएगा? आखिर हम भी तो कुछ है।
ऐसे बहुत कुछ वाले कल स्टेडियम में थे। वे भी जिन्होंने एमपीसीए पर टिकट ब्लेक करने के आरोप लगाए और वो भी जो निगम प्रशासन को कोस रहे थे। छोटा बड़ा हर नेता था। अधिकांश सत्तारूढ़ दल के। पार्षद से लेकर विधायक तक ओर सांसद से लेकर मंत्री तक। अकेले नही, परिवार संग। नातेदार रिश्तेदार संग। सब एकजुट थे। क्या कार्यपालिका, क्या विधायिका ओर क्या न्यायपालिका। सब एक साथ मैच का लुत्फ उठा रहे थे।
तुम्हारे पास क्या है जो आसानी से मैच देख लोगे? तुम धमका सकते हो क्या आयोजको को? तुम "पपोल" सकते हो क्या अफ़सरो को? छापा मारने वाली टीम है क्या तुम्हारे पास? जेब से खरीदकर मैच दिखा सकती हूं जैसी गर्वोक्ति या दम्भोक्ति है क्या आपके पास? अगर होती तो शाम तक तुम भी स्टेडियम में होते। जैसे तमाम प्रशासन के अधिकारी, निगम के अधिकारी, ज्यूडिशरी से जुड़े लोगॉ से लेकर नेता मंडली भराई हुई थी।
गजब का खेल खेला जा रहा है इस शहर के साथ। चंद चेहरे इस शहर का भाग्य बन गए। कुछ चारणभाट नैरेटिव सेट करने हर वक्त ऐसे तैयार, जैसे हुकुम का गुलाम। कोई भी कार्रवाई हुई,छापा पड़ा..उधर तुरंत गुणदोष के साथ मैदान में। ये सिलसिला हर आने वाले अफसर, सत्ता ओर रसूख के साथ जुड़ जाता है। मालिक को बचाने की ये भाटगिरी शहर का बहुत नुकसान कर रही है। समय रहते इससे निजात पाना आवश्यक है। जनप्रतिनिधियों की तो बात ही बेमानी है। वे आप सबकी फिक्र छोड़कर मैच का लुत्फ उठा रहे थे। मजे की बात है कि जिस शहर में आये दिन राजनीति के रोड शो होते हो। जहा नेताओ की अलग अलग झंडों की यात्राओं से पूरे शहर का ट्रैफ़िक का सत्यानाश हो जाता है। वहां क्रिकेट मैच के कारण शहर के ट्रेफिक की चिंता की जा रही है। मुंबई का वानखेड़े स्टेडियम क्या कोंकण के किसी जंगल में है? या दिल्ली का फिरोजशाह कोटला मैदान...मेवात इलाके में है? लेकिन क्या करे। दबाव बनाना जरूरी है।
हैरत की बात है कि हर मैच में ये कहानी दोहराई जाती है फिर भी न तो एमपीसीए ओर न जिला प्रशासन इस मामले में कोई कारगर रणनीति बनाते है। हर मैच के पहले ओर बाद में ऐसी अव्यस्थाओ को लेकर शोर मचता है लेकिन फिर वही ढांक के तीन पात। क्रिकेट का मैच इस प्रदेश में कोई भौपाल जबलपुर रतलाम उज्जैन में तो होता नही। इंदौर इसका केंद्र रहता है। मालवा निमाड़ के शहर कस्बों को भी उम्मीद आस रहती है कि मैच देखने को मिलेगा। शहर की राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पहचान बनती है। फिर क्या कारण है कि हर बार ये शहर और क्रिकेट प्रेमी ठगे से रह जाते है?
टिकट वितरण का क्या कोई पारदर्शी सिस्टम नही या आप बनाना नही चाहते? टिकट न मिले कोई गीला नही लेकिन ये तो पता चले कि क्यो नही मिला? 27 हजार की क्षमता वाले स्टेडियम की 14 हजार टिकट ऑनलाइन बिकने का दावा हुआ लेकिन शेष बची 13 हजार टिकट कैसे, कब और कहा से बिकी...इसका कोई पता नही। न लगेगा। क्योकि अंततोगत्वा इस मूददे पर शोर मचाने वाले ओर इसकी जांच करने वाले...सभी को तो सपरिवार प्रवेश मिल गया। अब ये मुफ्त के पास से मिला या खरीदे टिकट से...क्या फर्क पड़ता है। उनका काम बनता..भाड़ में जाये जनता।
जिस शहर से नरेंद्र हिरवानी राजेश चोहान से लेकर व्यंकटेश अय्यर, आवेश खान, रजत पाटीदार जैसे क्रिकेटर निकले। जो कर्नल नायडू की पहचान का शहर है। जो शहर हर मैच में न केवल मालवा निमाड़, बल्कि मध्यभारत प्रान्त के क्रिकेट प्रेमियों की आस का केंद्र है, वहां मैच के ठीक पहले छापे मारे जा रहे है। टेक्स वसूली हो रही है। जिनसे वसूला जाना है, वे भी खम ठोककर मैदान में। आरोप प्रत्यारोप। मैच न होने की धमकियां ओर कराकर देख लो की चेतावनियां...!! कितना शर्मनाक है न?
प्रीति जिंटा की आईपीएल की टीम के साथ हुए व्यवहार से भी किसी ने कोई सबक नही लिया? आईपीएल के मैच तो छीना ही गए। बेइज्जती हुई सो अलग। अब अंतरराष्ट्रीय मैचो के साथ भी वो ही ढर्रा? आयोजक प्रायोजकों पर ये दबाव प्रभाव की नीति कब तक? क्या कोई इसे रोकने टोकने वाला नही? तो फिर क्या कर रहे है श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया ओर कैलाश विजयवर्गीय? भद्रजनों का खेल क्रिकेट...इस शहर में इसी अभद्र तरीके ही होता रहेगा... हर बार? जैसा कल हुआ या इसके पहले हुआ। कब तक ये सिलसिला चलेगा? कल फिर इंदोरियो ने देख लिया ओर महसूस भी कर लिया कि हम सब एक बार फिर मूरख बना दिये गए।