इंदौर
विधायक पुत्र के इस अपराध की आख़िर क्या होगी सजा? पुत्र भुगतेगा या पिता? : राजनीतिक रसूख के इस्तेमाल से देवी-देवताओं को तो बख्शें, कोप से डरे
नितिनमोहन शर्मा
'बाप' के 'बूंदे' बैठते बेटे
- 'बच्चों, जवानी तो आपके पिता ने भी जी हैं'
- पिता की राजनीतिक मेहनत पर पानी फेरने से बाज़ आओ पुत्र
- विधायकजी, पिता होने के नाते आप ही दे सज़ा, बनाये मिसाल
- पुत्र भी एक अच्छे पुत्र होने का कर्तव्य निभाये, पिता को संकट से उबारे
- राजनीतिक रसूख के इस्तेमाल से देवी-देवताओं को तो बख्शें, कोप से डरे
नितिनमोहन शर्मा
बच्चों, जवानी तो आपके पिता ने भी जी हैं। वे भी रसूख लेकर ही पैदा हुए थे। तुमसे ज्यादा ' जंचेबल ' भी थे और तुमसे ज्यादा ' टीम-टॉम ' भी थी। घर की राजनीतिक विरासत भी थी और परिवार की साख, धाक व रुतबा भी भरपूर था। 'बड़े भैया परिवार 'और'बाणेश्वरी' नाम ही काफ़ी था। फ़िर भी पिता ने सड़क पर, मंच पर, आयोजनों में और देवी देवताओं के स्थान पर ऐसे ' उठाईगिरी ' नही की, जैसी तुम लगातार करते आ रहें हो।
उन्होंने ' कावड़ ' उठाई। अपने साथ की युवा शक्ति को धर्म से जोड़ा। ललाट पर त्रिपुंड खींचा और महांकाल के जयकारे लगाए। नंगे पैर पैदल पैदल सतपुड़ा-विंध्याचल पर्वत नापा और नर्मदा के जल से महांकाल के जलाभिषेक किया। अपने धर्मिक आचरण से शहर की सड़कों पर स्वागत मिला उन्हें औऱ पुष्पवर्षा भी। सावन माह में शहर से गुजरने वाली सबसे बड़ी कावड़ यात्रा का तमगा भी उन्हें मिला। तुम क्या कर रहे हो? पिता की मेहनत को सफल बनाने और आगे बढ़ाने की बजाय पानी फेर रहे हो।
सामाजिक, धार्मिक व राजनीतिक सक्रियता के कारण
बच्चों, तुम जानते नही कि कितनी कम उम्र में तुम्हारे पिता ने ये मुक़ाम पाया हैं? जिस पार्टी की वे राजनीति करते हैं, उसमे अब इतना आसान है इतने ज़ल्दी सफ़लता पाना? एक पद के अनेक दावेदारों के बीच स्थान पाना और कुछ पद ले आना, आसान है क्या? बमुश्किल वो इस मुक़ाम पर पहुचे है तो अपनी सतत सामाजिक, धार्मिक व राजनीतिक सक्रियता के कारण। आज वे इंदौर जैसे शहर के ' ह्रदय स्थल ' के विधायक हैं। किसके दम पर? अपने व्यवहार व मेहनत के बल पर न? अपने सौम्य व्यवहार से उन्होंने राजनीति में उच्च स्तर पर सम्पर्क व रिश्ते बनाये।
'बाप' के 'बूंदे' तो न बैठो : आपके पिता के तो पिता भी राजनीति में नही थे। ताऊ जी यानी 'बड़े भय्या' का भी अवसान हो गया था। कौन था उनके इस मुकाम तक लाने का ' जेक-जरिया' ? विधायक तक वे अपने सहज, सरल व्यवहार व परिवार की पृष्ठभूमि से हटकर बनाई गई छवि के बूते ही तो पहुँचे हैं। तुम मिलकर फ़िर पिता की मेहनत को ' बाणगंगे ' में ले जाकर खड़े कर रहें हो। मालवी कहावत के अनुरूप अपने 'बाप' के 'बूंदे' तो न बैठो। सरकार, कानून, प्रशासन से नही तो कम से कम देवी देवताओं के कोप से तो डरिये। भूले नही, आख़िर आप ब्राह्मण भी हैं।
चुके नही, खेद प्रकट करने में क्या तकलीफ़?
विधायक जी, आप जनप्रतिनिधि हैं। सार्वजनिक जीवन मे ऊंच नींच होती हैं। जिस घटना में जन जन को उद्वेलित कर दिया, आपको भी किया और आपके दल को भी। उस घटना को लेकर ये ' शुतुरमुर्ग ' रवैया कतई ठीक नही। होना तो ये था कि घटना के तुरंत बाद आपको मैदान पकड़ना था। बगेर किसी शर्म-संकोच के सबके सामने आना था और इस घटना को लेकर अंतर्मन से खेद, माफ़ी निवेदित करना थी। कोशिश तो ये भी होना थी कि ये काम पुत्र के साथ ही होता। उसे भी उस जनता के बीच लाते और माफ़ी मंगवाते।
कानून को कड़ी सज़ा और धर्मपीठ को भी सज़ा देने का रास्ता साफ़ करते। इससे आपकी इस मूददे पर संवेदनशीलता व सदाशयता दोनों सामने आती। आपके संस्कार व निर्मल-निश्चल मन भी जनता के सामने आता। घटना है, भावावेश में हो गई। इसका मतलब ये नही कि आप चुप्पी ओढ़ ले। सत्तारूढ़ दल के है आप। सब कुछ सहज व सामान्य होने में देर नही लगेगी लेक़िन आपकी भविष्य की राजनीति के लिए ये घटना शुभ संकेत नही।
'बल्लेबाजी' पर कुपित होने वाले पीएम इस घटना को क्या सहज लेंगे?
इसी इंदौर में एक पूर्व विधायक ने निगम अफ़सरों के साथ ' हैंड बेटिंग ' की थी। वह मसला तो जनता से जुड़ा था और ' बल्लेबाजी' जनहित में करार भी दी गई थी। बावजूद इसके आपके राजनीतिक कुल के पितामह इस पर कुपित हुए थे। अब इस घटनाक्रम से क्या वे अनभिज्ञ रहेंगे? आपके ' शुभचिंतकों ' ने अब तक तो इस मामले को पीएम हाउस तक रवाना कर ही दिया होगा। हो सकता है इस पर पितामह की प्रतिक्रिया सार्वजनिक न हो लेक़िन उनके मानस में तो अंकित होने से कोई रोक नही पायेगा न?