इंदौर

देश विदेश में इंदौर की पहचान : साढ़े तीन अक्षर का शब्द इंदौर

paliwalwani
देश विदेश में इंदौर की पहचान : साढ़े तीन अक्षर का शब्द इंदौर
देश विदेश में इंदौर की पहचान : साढ़े तीन अक्षर का शब्द इंदौर

साढ़े तीन अक्षर का शब्द इंदौर, अब एक शहर का नाम भर नहीं रह गया है। बल्कि वैश्विक पटल पर विकास, दृढ़ निश्चय और स्वच्छता के प्रतिनिधि हस्ताक्षर बन चुका है। देश विदेश में इंदौर की पहचान अपने खानपान, आतिथ्य सत्कार के साथ ही उद्योग-व्यवसाय, शिक्षा, कृषि, ज्ञान, कला, संस्कृति और विभिन्नता में एकता के प्रतिनिधि शहर के रूप में बन चुकी है। बीते दशकों में विकास को केवल सत्ता के भरोसे न छोड़कर इंदौर की जनता ने स्वस्फुर्त एकजुटता की ताकत दिखाकर शहर के विकास की जिम्मेदारी उठाने का एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया है।  

कहते हैं कि सपने वो होते हैं जो आपको सोने नहीं देते लेकिन आंखे मूँदे बगैर सपने नहीं दिखते। तो बंद आँखों से भी जागता यह शहर जो भी सपने देखता है, उन्हें फलीभूत करने सारे इन्दौरवाले पूरी निष्ठा से लग जाते है। स्वच्छ होने का सपना देखा तो ऐसा देखा कि लगातार 6 बार देश के सबसे स्वच्छ शहर होने का ख़िताब ले लिया है और सातवीं बार का दावा पूरे जोर से ठोंका हुआ है।

एक दौर वो भी था जब कपड़ा मिलें इंदौर की पहचान और जीवन रेखा भी थीं। गलत सरकारी नीतीयों और भ्रष्ट व्यवस्था के चलते एक-एक कर सारी मिलें बंद हो गयी। इनके यूं बंद हो जाने से चारों ओर मायूसी छा गयी, हजारों लोग बेरोजगार हो गए और एक बड़ी आबादी के सामने रोजी रोटी का प्रश्न खड़ा हो गया। ऐसे में इंदौर ने आत्मनिर्भर होने का सपना देखा और आज बड़े बड़े उद्योग और अन्य व्यापार धंधे इंदौर में दिखाई पड़ते हैं जो इंदौर को प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी बनाते हैं। इंदौर के सपने पुरे होने का प्रमुख कारण है इंदौर की जनता और उसके प्रतिनिधियों के बीच विश्वास का अटूट सम्बन्ध।             

लोकतंत्र में सपने देखने का अधिकार सबको है, सबको अपनी इच्छा व्यक्त करने की स्वतंत्रता है और सच भी है कि जैसा सपना जनता देखती है, वैसा ही वो संकल्प लेती है और जैसा संकल्प लेती है वैसे ही संकल्प पूरा करने में सक्षम लोगों को अपना प्रतिनिधि चुनती है। इंदौर की चमत्कृत कर देने वाली तरक्की को देख कर पूरे प्रदेश की जनता बड़ी उम्मीद के साथ चाह रही है कि जैसे इंदौर ने समावेशी विकास का चमत्कार दुनिया को दिखाया है वैसे ही पूरे प्रदेश को देखने दुनिया भर से लोग आएं।

जनभागीदारी की अद्भुत अवधारणा इंदौर तक ही सीमित न रहकर पुरे प्रदेश में अपने पाँव पसारे, जितना स्वच्छ  और सुरक्षित, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध, तकनीक और उद्योगों से भरा, हँसते खिलखिलाते मिज़ाज का शहर इंदौर बना है, वैसा ही मध्यप्रदेश का हर शहर बने। जिस गति से इंदौर ने अपनी नागरिकों का जीवन बदला है उसी गति से प्रदेश की जनता के जीवन में भी बदलाव आएं। इंदौर ने जैसे एक मिसाल कायम की है वैसे ही पूरा प्रदेश अपनी गति और नीति पर गर्व करने लायक बने।

1956 में अपने विधिवत गठन से लेकर आज तक मध्यप्रदेश 18 मुख्यमंत्री देख चुका है जिनमें एक तरफ कांग्रेस के 12 मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्‍ल, श्री भगवंतराव मण्‍डलोई, श्री कैलाशनाथ काटजू, पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र, श्री गोविन्‍द नारायण सिंह, श्री राजा नरेशचंद्र सिंह, श्री श्‍यामाचरण शुक्‍ल, श्री प्रकाश चन्‍द्र सेठी, श्री अर्जुन सिंह, श्री मोतीलाल वोरा, श्री दिग्विजय सिंह, और श्री कमलनाथ रहे हैं। तो दूसरी तरफ भाजपा से श्री वीरेन्‍द्र कुमार सखलेचा, श्री सुंदरलाल पटवा, श्री कैलाश जोशी, सुश्री उमा भारती, श्री बाबूलाल गौर, और श्री शिवराज सिंह चौहान सहित कुल 6 नेता मुख्यमंत्री बने हैं। इनमें से कुछ चेहरों को तो एक से अधिक बार प्रदेश की सत्ता की बागडोर थमाई गयी। 

यूं तो सत्ता पक्ष का निर्वाचित नेता मुख्यमंत्री बनाया जाता है लेकिन दोनों ही दलों के आलाकमान अपनी पसंद के व्यक्ति को कुर्सी पर बैठाते आए हैं। दोनों ही प्रमुख राजनीतीक दलों ने इंदौर का दोहन तो निर्ममता से किया लेकिन प्रदेश के इस अग्रणी शहर से निर्वाचित किसी जन प्रतिनिधि को अब तक इस प्रदेश का नेतृत्व करने का जिम्मा नहीं दिया। इंदौर से निर्वाचित विधायकों की योग्यता की हमेशा से अनदेखी ही की जाती रही है । 

ऐसा नहीं है कि माँ अहिल्या की इस नगरी ने सक्षम जननेताओं के रूप में बहुमूल्य हीरे नहीं उगले हैं, 1957 में विधायक चुने गए गोम्मटगिरी के संस्थापक और सामाजिक कार्यों के अग्रणी पद्मश्री बाबूलाल पाटोदी,  इंदौर को लालटेन से छुटकारा दिलाकर सड़कों पर स्ट्रीट लाइट लगवाने वाले शेर सुरेश सेठ, सायकल टेक्स के खिलाफ आवाज उताने वाले श्रमिक नेता होमी दाजी, जमीनी और हेकड़ नेता महेश जोशी जिनके नाम से मुख्यमंत्री भी घबराते थे.

विधानसभा अध्यक्ष रहे चोटी के वकील यज्ञदत्त शर्मा, फक्कड़ जन नेता राजेन्द्र धारकर, देपालपुर से दादा  निर्भयसिंह पटेल, महू से भेरुलाल पाटीदार, लोकसभा अध्यक्ष रह चुकी सुमित्रा महाजन, इंदौर को विकास पथ पर द्रुतगती से दौड़ाने वाले कैलाश विजयवर्गीय जैसे अनेकों चेहरों की प्रशासनिक क्षमता, राजनीतिक सूझबूझ और योग्यताओं से सभी भली भाति परिचित थे फिर भी इंदौर से मुख्यमंत्री बनाने की आवाज नहीं उठना किसी आश्चर्य से कम नहीं है। इंदौर के राजनेता, सामाजिक, व्यावसायिक और औद्योगिक संगठन इंदौर के किसी नेता को प्रदेश का नेतृत्व सौंपने के लिए दवाब बना सकते थे लेकिन ऐसा हुआ नहीं। 

इन दिनों प्रदेश में अट्ठाईसवीं विधानसभा के गठन के लिए चुनावी बयार बह रही है और इस आईकोनिक प्रदेश को बेसब्री से इंतजार है अपने अगले मुख्यमंत्री का। यदि सम्पूर्ण मध्यप्रदेश को इंदौर जैसा विकसित, इंदौर जैसा दृढ़ प्रतिज्ञ, इंदौर जैसा उद्यमी, इंदौर जैसा जागरूक, इंदौर जैसा चमकदार बनाना है तो इस राज्य को एक योग्य व कर्तव्यनिष्ठ नेतृत्व देने का हक प्रदेश के इस बेहतरीन शहर को मिलना चाहिए। यदि प्रगति की राह पर तेजी से आगे बढ़ते इस राज्य का अगला नेता, अगला सूत्रधार, अगला कर्णधार देश के स्वछतम शहर की अनुशासन एवं पक्के इरादे को यथार्थ पटल पर अंकित कर चुकी बेमिसाल जनता के बीच से होगा तो निश्चय ही वह इस प्रदेश की तस्वीर को बदल कर रख देगा। 

विकास की राह पर सरपट दौड़ते इंदौर से निकले कर्मठ नेता के नेतृत्व में मध्यप्रदेश को दृढ़ निश्चय के पंखों के साथ विकास के स्वर्णिम आसमान पर उड़ान भरते देख देश ही नहीं सारा संसार चमत्कृत हो उठेगा।

!! जय इंदौर, जय मध्यप्रदेश !!

whatsapp share facebook share twitter share telegram share linkedin share
Related News
GOOGLE
Latest News
Trending News