इंदौर
गीता भवन में चल रही श्रीराम कथा का समापन : विदुषी गीता बहन का सम्मान
sunil paliwal-Anil paliwalसमाज के अंतिम छोर पर खड़े लोगों की आंखों के आंसू पोंछे बिना राम राज्य संभव नहीं
इंदौर : रामकथा मनुष्य को निर्भयता प्रदान करती है। मर्यादा पुरुषोत्तम वही बन सकता है जो राम की तरह सामने रखे राजपाट को छोड़कर माता-पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए जंगल जाने को भी तैयार रहे। वनवासियों को गले लगाकर प्रभु राम ने ही सबसे पहले अंत्योदय का संदेश दिया है। देश में राम राज्य की कल्पना तभी साकार हो सकती है, जब हम समाज में सबसे अंतिम छोर पर खड़े बंधु के आंसू पोंछने की ईमानदार पहल करें।
गीता भवन में एकल अभियान और श्रीहरि सत्संग समिति द्वारा आयोजित रामकथा के समापन सत्र में विदुषी गीता बहन ने उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए। प्रारंभ में वृंदावन के महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवानंद सरस्वती के सानिध्य में समाजसेवी प्रकाश धानुका, अरुण चोखानी, रामनाथ अग्रवाल, सी.के. अग्रवाल, कृष्णा अग्रवाल, रामविलास राठी आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। गीता बहन की अगवानी ममता न्याती, संगीता मंडोवरा, पद्मा गगरानी, अर्चना माहेश्वरी, सुनीता लड्ढा, राजकुमारी मंत्री, भावना माहेश्वरी ने की। समापन अवसर पर आयोजन समिति की ओर से कथा व्यास गीता बहन का सम्मान भी किया गया। कथा श्रवण के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। आज कथा में राम-सीता विवाह का भावपूर्ण उत्सव भी धूमधाम से मनाया गया।
विदुषी गीता बहन ने कहा कि यह देश कृषि और ऋषि कहा जाता था। कृषि इतनी उन्नत थी कि आर्थिक स्थिति चरम अवस्था में कृषि पर ही निर्भर थी। ऋषि का अर्थ है रिसर्चर अर्थात अनुसंधान करने वाला। आज इन दोनों की स्थिति क्या है, हम सब जानते हैं। आज भी देश के प्रत्येक व्यक्ति का शरीर मंदिर जैसा पावन है। प्रत्येक का स्वभाव उपकारी है। देश के गांव की सुबह मानो शंख ध्वनि के समान और संध्या मां की लोरी के समान सुखदायी होती है। ग्रामीण भारत ही भारत का प्राण है । इसे मजबूत समृद्ध और सक्षम बनाए बिना राम राज्य पूरा नहीं हो सकता। क्रोध, लोभ, मोह, और अहंकार रावण और कंस के ही रिश्तेदार हैं, जिन्हें मन से खदेड़ने का साहस रामकथा से ही मिलेगा। कलियुग में घर-परिवार बिखर रहे हैं। राम जैसा आज्ञाकारी पुत्र, चरित्रवान पति, स्नेहिल भाई और वनवासियों की चिंता करने वाला राजा जिस दिन हम सबके साथ आ जाएगा, राम राज्य की कल्पना साकार होना शुरू हो जाएगी। महापुरुष वही होते हैं जो स्वयं की समस्या को छोड़कर राष्ट्र की ज्वलंत समस्याओं के निवारण का चिंतन करते हैं।