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आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का मुखिया मौलाना मसूद अजहर 1994 में आया था सहारनपुर के देवबंद, कब्र पर पढ़ी थी नमाज
PALIWALWANI
Jaish e Mohammed Masood Azhar: आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का मुखिया मौलाना मसूद अजहर 30 जनवरी, 1994 को देवबंद आया था। उस समय वह 31 साल का था और वह इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम भी गया था, जहां उसने कासमी कब्रिस्तान जाकर उलेमाओं की कब्र पर नमाज पढ़ी थी।
भारतीय सशस्त्र बलों के आपरेशन सिंदूर के तहत सीमा पार आतंकियों के ठिकानों पर किए गए हमलों में आतंकी सरगना मसूद अजहर के कई रिश्तेदार मारे गए हैं। माना जा रहा है कि इन हमलों से पहले मसूद सुरक्षित स्थान पर चला गया था। वर्ष 1994 में जब वह देवबंद आया था तो रात को दारुल उलूम में ही रुका था।
तबलीगी जमात की मस्जिद में रुका था अजहर
अजहर के साथ उसके दो सहयोगी कश्मीर निवासी व आतंकी अशरफ डार और आतंकवादी समूह हरकत उल-अंसार का सदस्य अबू महमूद भी था। अजहरके चाणक्यपुरी स्थित अशोका होटल से अशरफ डार की कार से देवबंद आया था। 31 जनवरी को वह मुसलिम आलिम मरहूम रशीद अहमद के शहर गंगोह गया। वहां से वह सहारनपुर पहुंचा, जहां वह रात में तबलीगी जमात की एक मस्जिद में रुका था।
अजहर ने इस यात्रा में अपनी असली पहचान छुपाकर रखी थी। उसी दिन वह जलालाबाद में मौलाना मसीर उल-उल्लाह खान के यहां रात गुजारने के बाद दिल्ली लौट गया। नौ फरवरी को वह श्रीनगर पहुंचा, जहां वह मदरसा कासमियान गया। 10 फरवरी को सज्जाद अफगानी के साथ सेना की गश्ती टुकड़ी ने उसे उस वक्त दबोच लिया, जब उसके एक साथी व आतंकी फारूक ने भागते वक्त गोलियां चला दी थीं। फारूक तब भागने में सफल हो गया था।
24 दिसंबर, 1999 को अजहर और उसके दो साथियों उमर शेख एवं अहमद जरगर को सरकार ने IC-814 विमान के अपहरण के बाद यात्रियों की सकुशल रिहाई के बदले छोड़ा था। जब भारत का विमान कंधार हवाई अड्डे पर खड़ा था, तब केंद्र सरकार ने मदद के लिए दारुल उलूम देवबंद की मजलिस-ए-शूरा के सदस्य मौलाना असद मदनी से फोन पर बात की थी। मौलाना असद मदनी ने जमीयत उल इस्लाम प्रमुख एवंके मौजूदा सांसद मौलाना से बात कर विमान को आतंकियों से छुड़वाने की बात की थी।
मौलाना फजलुर रहमान ने अफगान तालिबानी नेता मुल्ला उमर से बात कर सहायता के लिए कहा था, तब उन्होंने शर्त रखी थी कि यदि भारत सरकार अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार को मान्यता देती है तो वह भारत के हवाई जहाज को आतंकियों के कब्जे से मुक्त करा देंगे। मगर, तत्कालीन सरकार इसके लिए राजी नहीं हुई थी। अपहरण के एक हफ्ते बाद विमान अपहरणकर्ताओं की मांग पर केंद्र सरकार को यात्रियों की सकुशल रिहाई के लिए आतंकी मसूद अजहर को छोड़ना पड़ा था।