गुजरात
नितिन पटेल CM नहीं बनाए जाने से नाराज, बीजेपी की मुश्किलें बढ़ीं..
Paliwalwaniभारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने आगामी विधानसभा चुनाव की रणनीति के तहत ही गुजरात नेतृत्व में फेरबदल किया. इस राजनीतिक बिसात पर भूपेंद्र पटेल (Bhupendra Patel) को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंप दी, जो कि पाटीदार समुदाय से आते हैं. यह अलग बात है कि भूपेंद्र पटेल के नाम की आधिकारिक घोषणा से पहले तक उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल (Nitin Patel) का नाम बतौर सीएम सबसे आगे चल रहा था. अगर अंदरखाने की माने तो नितिन पटेल इस बदलाव से पूरी तरह से संतुष्ट नहीं है. भूपेंद्र पटेल जब राजभवन पहुंच सरकार बनाने का दावा कर रहे थे, तो नितिन पटेल साथ नहीं थे. इससे कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी आलाकमान के लिए नितिन पटेल को साधना आसान नहीं होगा. इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि नितिन पटेल पहले भी बगावती तेवर अपना चुके हैं.
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अमित शाह विरोधी खेमे के हैं नितिन पटेल
अगर अंदरखाने के समीकरण देखें तो नितिन पटेल पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के खेमे के माने जाते हैं. यह खेमा गृह मंत्री अमित शाह का विरोधी माना जाता है. नितिन पटेल के भूतपूर्व सीएम विजय रूपाणी से भी समीकरण पूरी तरह से सधे हुए नहीं थे. विजय रूपाणी भी अमित शाह खेमे के माने जाते हैं. नितिन पटेल की छवि आमतौर पर मीडिया फ्रेंडली है, लेकिन विधायक दल की बैठक से पहले मीडिया को 'लोकप्रिय, मजबूत, अनुभवी और सर्व स्वीकार्य सीएम' का बयान देने वाले नितिन पटेल भूपेंद्र पटेल के नाम की घोषणा होते ही अपने गृह नगर मेहसाणा के लिए रवाना हो गए.
2017 में भी अपना चुके हैं बगावती तेवर
नितिन पटेल पहले भी बगावती तेवर अपना चुके हैं. यह घटना 2017 की है, जब नितिन पटेल को वित्त मंत्रालय का प्रभार नहीं दिया गया था. उनके तीखे तेवरों के आगे तब भी बीजेपी आलाकमान को झुकना पड़ा था. ऐसे में इस बार भी पार्टी आलाकमान के लिए आगे की राह आसान नहीं है. कयास यह लगाए जा रहे हैं कि नितिन पटेल को राज्यपाल बनाया जा सकता है. यह अलग बात है कि नितिन पटेल सक्रिय राजनीति में बने रहना चाहता हैं. राज्य के कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भूपेंद्र पटेल का बतौर सीएम नाम तय होते ही सूबे में बीजेपी की राजनीति में रूपाणी-नितिन पटेल के युग का अंत हो गया है. हालांकि उन्हें साधे रखना बीजेपी की मजबूरी है, क्योंकि आसन्न विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी आलाकमान एक जमीन से जुड़े नेता की नाराजगी मोल नहीं ले सकता है.