भोपाल

‘नो प्लास्टिक’ मिशन : बर्रू से तैयार हुए स्ट्रॉ, कैरीबैग...पीसीबी ने भी दी मंजूरी

Paliwalwani
‘नो प्लास्टिक’ मिशन : बर्रू से तैयार हुए स्ट्रॉ, कैरीबैग...पीसीबी ने भी दी मंजूरी
‘नो प्लास्टिक’ मिशन : बर्रू से तैयार हुए स्ट्रॉ, कैरीबैग...पीसीबी ने भी दी मंजूरी

भोपाल के आसपास जगह-जगह उगने वाला बर्रू कोल्ड ड्रिंक पीने में उपयोग होने वाली प्लास्टिक स्ट्रॉ का विकल्प बनने जा रहा है। सिंगल यूज प्लास्टिक के विकल्प तलाशने की कोशिश में पर्यावरण विशेषज्ञ इम्तियाज अली ने बर्रू को काटकर, उसे सुखाकर स्ट्रॉ तैयार की है। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने भी इसे मंजूरी दे दी है। बर्रू की स्ट्रॉ के उत्पादन की अनुमति की प्रक्रिया चल रही है। अगले एक-दो महीने के भीतर यह स्ट्रॉ बाजार में आ सकती हैं।

मप्र सरकार की ठोस अपशिष्ट प्रबंधन समिति के सदस्य इम्तियाज अली बर्रूकाट भोपाली हैं और पिछले दो दशक से पर्यावरण क्षेत्र में कार्यरत हैं। उन्होंने बताया कि बर्रू एक तरह की घास है जो जमीन की नमी को सोखती है। इसलिए बर्रू को काटना पर्यावरण के लिहाज से फायदेमंद ही है। भोपाल शहर के भीतर और आसपास बड़ी मात्रा में बर्रू पाई जाती हैं। वन क्षेत्र में भी बड़ी मात्रा में बर्रू लगी है और वन विभाग हर साल इसे साफ करवाता है।

बर्रू का इस्तेमाल पहले लिखने के काम आने वाली कलम बनाने में किया जाता था,लेकिन अब यह घास पूरी तरह अनुपयोगी हो गई थी।मंडीदीप औद्योगिक क्षेत्र में आने वाला कच्चा माल जूट के थैलों में भरकर आता है, बाद में यह थैले इन फैक्ट्रियों के लिए अनुपयोगी हो जाते हैं। इम्तियाज अली ने उनसे यह थैले लिए और जूट के पुराने थैले और बर्रू को मिलाकर खूबसूरत और उपयोगी बैग तैयार किए हैं।

बिट्टन मार्केट और बोट क्लब पर स्वच्छता समाधान केंद्र शुरू किए हैं। इन केंद्रों पर सिंगल यूज प्लास्टिक के विकल्प मौजूद हैं। इन केंद्रों पर कंपोस्ट बनाने की विधि भी सिखाई जाती है और सामग्री भी मिल जाती है। न्यू मार्केट में भी एक केंद्र संचालित हो रहा है, जहां कपड़े के थैले उपलब्ध हैं।

पर्यावरण संरक्षण के लिए प्लास्टिक बॉटल के विकल्प के रूप में तैयार की गईं मिट्टी की बॉटल का चलन भी बढ़ रहा है। कुछ बहनों ने रक्षाबंधन पर अपने भाइयों को उपहार में देने के लिए यह बॉटल खरीदी। इसके अलावा जन्मदिन की पार्टी में लोग कपड़े और कागज के थैले भी गिफ्ट करने के लिए ले रहे हैं। दफ्तरों में लोग अब प्लास्टिक की बजाय ऐसी ही सामग्री का उपयोग कर रहे हैं।

सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग के विकल्प खोजने पर भोपाल पिछले ढाई साल से काम कर रहा है। कैरी योअर ओन बैग एंड बॉटल(सीवायओबी), बांस के ट्री गार्ड और गोबर के गमले जैसे प्रयोगों ने भोपाल को पिछले स्वच्छ सर्वे में बेस्ट सेल्फ सस्टेनेबल स्टेट कैपिटल का अवार्ड दिलाया था। उसी समय शहर में स्वच्छता समाधान केंद्र खोले गए थे। इन प्रयोगों से भोपाल में प्लास्टिक वेस्ट में कमी आई थी।

इम्तियाज अली ने बताया कि सिंगल यूज प्लास्टिक का स्थानीय विकल्प तलाशने पर विचार करते हुए उनका ध्यान बर्रू की घास पर गया। यह घास प्राकृतिक रूप से जमीन का पानी सोखती है तो उसका उपयोग स्ट्रॉ के रूप में भी हो सकता है। उन्होंने भोपाल और रायसेन से बड़े पैमाने पर बर्रू कटवाए, उन्हें सुखाया और फिर स्ट्रॉ तैयार की। इसके बाद उन्होंने सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से संपर्क किया। सीपीसीबी के वैज्ञानिकों ने भी उनके प्रयोग पर अपनी मुहर लगाकर उसके व्यावसायिक उत्पादन की अनुमति देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। अनुमति मिलने पर वे स्व सहायता समूह की महिलाओं को इस काम में लगाएंगे। बर्रू के अलावा मोथा और क्रश घास भी इसमें उपयोग की जा सकती है। अभी वे जलकुंभी की स्ट्रॉ भी तैयार कर रहे हैं।

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