आपकी कलम
आज का प्रेरक प्रसंग : बिना उसकी कृपा के हम कुछ भी नही
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एक धार्मिक स्थान पर एक सेठ जी भंडारा करते थे एक बार एक संत श्री वहाँ प्रसाद ग्रहण करने आये तो उन्होंने देखा कि सेठजी के मन में अहंकार का उदय हो रहा है तो उन्होंने कहा सेठजी बिना उसकी कृपा के हम कुछ भी नही कर सकते हैं और तो बहुत दुर की बात जो अगर उसकी कृपा न हो तो खिलाना तो बहुत दुर की बात सामने परोसी हुई थाली, अरे ! थाली क्या हाथ में लिया ग्रास भी हाथ में रह जाता है।
सेठजी आप यही सोचना कि दाने-दाने पर लिखा होता है खाने वाले का नाम अरे ! ये तो उसकी महानता है जो कर तो वो रहा है और नाम हमें दे रहा है! सेठजी जो काम रामजी को करना है वो तो वो करेंगे आप तो ये समझना कि उन्होंने इस धर्म-कर्म के लिये मुझे चुना है यही मेरा परम सौभाग्य है !
सन्त श्री तो कहकर चले गये पर सेठजी को ये हज़म नही हुआ कि दाने-दाने पर भी भला खाने वाले का नाम लिखा होता है क्या ? सेठजी को भूख लग रही थी वो भण्डार कक्ष में गये एक थाली में भोजन लिया और मन में सोचने लगे कि इस भोजन पर मेरा नाम लिखा है देखता हुं कि मुझे कौन रोकता है सेठजी ने जैसे ही पहला ग्रास हाथ में लिया तो दुसरे हाथ में जो फोन था उस पर घंटी बजी फोन उठाया तो उन्हें सूचना मिली कि बेटे का एक्सीडेंट हो गया और वो हॉस्पिटल में भर्ती है सेठजी तत्काल रवाना हुए।
हॉस्पिटल में सेठजी की पत्नी ने कहा कि बेटा अब ठीक है बेटे को कुशल-मंगल देखकर वहीं बैठे पत्नी के हाथ में चावल का एक दोना था तो सेठजी भूख से व्याकुल थे उन्होंने दोना लिया और चावल खाने लगे खाने के बाद सेठजी ने पूछा अरे तुमने खाया या नहीं तो पत्नी ने कहा कि लेकर तो मैं अपने लिये ही आई थी पर शायद इस प्रसाद पर रामजी ने आपका नाम लिखा था !
अब सेठजी को सन्त श्री की वो सारी बातें याद आई और फिर जीवन में कभी उन्होंने अपने नाम से कुछ भी न चलाया सब रामजी के नाम से चलाया ! मित्रों, जिन्दगी मे ये सदा याद रखना की यदि कोई अच्छा कार्य, विशेष कार्य अथवा कोई शुभ-कर्म सम्पन्न हो जाये तो ये कभी न सोचना कि मैं कर रहा हुं बस यही सोचना कि मैं सिर्फ एक निमित्त हूँ इससे ज्यादा और कुछ भी नही !