आपकी कलम

म्हारी तो वगत ई कोई नी : राजेन्द्र सनाढ्य राजन

राजेन्द्र सनाढ्य राजन
म्हारी तो वगत ई कोई नी : राजेन्द्र सनाढ्य राजन
म्हारी तो वगत ई कोई नी : राजेन्द्र सनाढ्य राजन

म्हारी तो वगत कोई नी 

घरवाळी ने क ई केऊँ तो, 

केवें म्हनें,बैठा रो बैठा, 

जाणूं हूँ म्हूँ आपने, 

मती लो अतरा नैटा।

म्हारी तो क ई, वगत ई कोई नी।। 

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माँ ने क ई केऊँ तो, 

केवें -चुप रे रांडोल्यां, 

जाई न लगाई रा पग दाब, 

म्हनें मती दे मीठी गोळ्यां। 

म्हारी तो क ई, वगत ई कोई नी।। 

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बाप ने क ई केऊँ तो, 

केवें म्हनें लकणबारों, 

आकोदन हीं-हीं करे, 

क ई वेई रे थारों।

म्हारी तो क ई,वगत ई कोई नी।। 

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बेटा-बेटी ने क ई केऊँ तो, 

केवें-हाकां मती करो पापा, 

वे दन अबे परा गिया जदी, 

आप मेलता म्हाणें लापा।

म्हारी तो क ई,वगत ई कोई नी।। 

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बाने जाऊँ तो हंगळा मनख,

केवें म्हनें- वेन्डा रो हरदार,

उठा वेई-वेई न चालता रे, 

पाछू गाबा ने फटकार। 

म्हारी तो क ई,वगत ई कोई नी।। 

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क ई न क ई तो राजन, 

म्हारा मा जरूर हैं कमी, 

अणीस वास्तें हंगळा मल, 

म्हारी पत्थर परी धमी।

म्हारी तो क ई,वगत ई कोई नी। 

म्हारी तो क ई,वगत ई कोई नी।। 

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राजेन्द्र सनाढ्य राजन

व्याख्याता- रा उ मा वि नमाना

नि-कोठारिया, जि-राजसमंद (राजस्थान) M. 9982980777

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