आपकी कलम
म्हारी तो वगत ई कोई नी : राजेन्द्र सनाढ्य राजन
राजेन्द्र सनाढ्य राजनम्हारी तो वगत ई कोई नी
● घरवाळी ने क ई केऊँ तो,
केवें म्हनें,बैठा रो बैठा,
जाणूं हूँ म्हूँ आपने,
मती लो अतरा नैटा।
म्हारी तो क ई, वगत ई कोई नी।।
~~~~~~~~●●~~~~~~~~
● माँ ने क ई केऊँ तो,
केवें -चुप रे रांडोल्यां,
जाई न लगाई रा पग दाब,
म्हनें मती दे मीठी गोळ्यां।
म्हारी तो क ई, वगत ई कोई नी।।
~~~~~~~~●●~~~~~~~~
● बाप ने क ई केऊँ तो,
केवें म्हनें लकणबारों,
आकोदन हीं-हीं करे,
क ई वेई रे थारों।
म्हारी तो क ई,वगत ई कोई नी।।
~~~~~~~~●●~~~~~~~~
● बेटा-बेटी ने क ई केऊँ तो,
केवें-हाकां मती करो पापा,
वे दन अबे परा गिया जदी,
आप मेलता म्हाणें लापा।
म्हारी तो क ई,वगत ई कोई नी।।
~~~~~~~~●●~~~~~~~~
● बाने जाऊँ तो हंगळा मनख,
केवें म्हनें- वेन्डा रो हरदार,
उठा वेई-वेई न चालता रे,
पाछू गाबा ने फटकार।
म्हारी तो क ई,वगत ई कोई नी।।
~~~~~~~~●●~~~~~~~~
● क ई न क ई तो राजन,
म्हारा मा जरूर हैं कमी,
अणीस वास्तें हंगळा मल,
म्हारी पत्थर परी धमी।
म्हारी तो क ई,वगत ई कोई नी।
म्हारी तो क ई,वगत ई कोई नी।।
~~~~~~~~●●~~~~~~~~
● राजेन्द्र सनाढ्य राजन
व्याख्याता- रा उ मा वि नमाना
नि-कोठारिया, जि-राजसमंद (राजस्थान) M. 9982980777