आपकी कलम
श्रीजी धाम : गोवर्धन लीला : अन्नकूट के पद
Paliwalwaniकढी लुटपुटे रायते भुंजे छुके अनंत।मो मति कहा बरनन करे सामग्री सोहंत।।४४।।
भ ई रतालूकी कढी और कटारुजान।बेंगनके चकतान कीऔर पकोरी मान।।४५।।
दार भातके निकटहें कढी पांतिके झुंड। विविध कढी सबही धरे एक नांदकर कुंड।।४६।।
ता आगे रायतेनके भाजन पांत अनेक।भरताबैंगन बथुआ कोला घीया विसेक।।४७।।
सकरकंद सुंदर सरस पेठा और पवार।बूंदीखिंडुरी रायतो भाजन पांत संवार।।४८।।
और ढेबरी तिलबडी मिरच बडीहूं जान।कितेक झाल पापरनकी चहुंऔर को जान।।४९।।
आरिया खीरा तोर ई गलिका सेंमहिं पेख। खरबूजा ककडी फली चौरा ग्वारहि लेख।।५०।।
और करेल मुरेलहे वनकरेल सुक क्रोड।कदलीखंभके मध्य में ताहि संवारे जोड।।५१।।
हरे कमलगटा किये पुनि ताकी जड मूल।अगस्तफरीवोंडीकरी औरजु ताको फूल।।५२।।
दाखपता अर ई पता पोइपता अरुपान।इनके पत्रोडा करे अतिसुंदर सुविधान।।५३।।
रतन जोति वडहरकिये पुन कटहेर निहार।सेंगरफरी संवारिके स्वाद महा रुचिकार।।५४।।
बेसनके व्यंजन बहुकीये विविध संवार।सुकबनके को कहि सके गिनत न आवे पार।।५५।।
कितेक नांद दधि भातकी पीत भातकी जान।बहुविध खाटे भातकी मिष्ट भात बहुमान।।५६।।
कितेक सिखरन भातकी थूली नांदविसेस।खीरनकी नांदें बहुत मेवा किये प्रवेस।।५७।।
प्रथम खीर संजावकी पुन चांवरकी देख।मनिकाकी अरु सेवकी और मखाने पेख।।५८।।
विविध भातकी खीर है आंई नांद अनंत।मिश्रीके मीठे मिली बास कपूर वसंत।।५९।।
दही लपेटे वरनकी नांदें बहुत विशाल।तथा मुंगोरीके लखे लेले आवत ग्वाल।।६०।।
और पसाई सेबकी नांदे अति सुखदाय।मांखन ताये घीयके नादें धरी बनाय।।६१।।
सिखरन की नादें कितेक बंधे दहीकी देख।और सहजके दहीनकी अति विशाल तेहिं पेख।।६२।।
मैदाकी पूरीनकी झालें बहुत जो साज।सिखरनके ढिंग ले धर्यो मुदित भये गिरिराज।।६३।।
पेंठो आंबा आमरे और करोंदा डारि। जिनमें मीठो चौगुनों बिलसारु रुचिकारि।।६४।।
नारंगी दाखहि सरस बिलसारु बहुनांद।मेदाकी पूरी निकट धर्यो जानि सुख स्वाद।।६५।।
मांखनके भाजन धरे पूरन पूरी पास।मिश्री सरस मिलायकें उज्ज्वल मानों हास।।६६।।
इक्षुरस पोंडा कदली धरे संवार अनार।औरहूं तरमेवा बहुत स्वाद सरस रुचिकार।।६७।।
नींबू और जाबूं धरे अरु सूरण अरवी देख।टेंटी आदो मिरचके भाजन एक एक पेख।।६८।।
पिसे लोन अरु मिरचके भाजन एक एक राख।चहिये जामें नांखिये ऐसें गिरिसों भाख।।६९।।
कचरी आदा पाचरी नींबूफांक बनाय।कांजीके मटुका धरें ताहीके ढिंग जाय।।७०।।
अब निखरेंकों कहतहें जैसो यथा प्रकार।श्रीवल्लभ चरण प्रतापतें मेरी मति अनुसार।।७१।।
प्रथम मलैया सहितहै सद्य सरस नवनीत।ले आई व्रषभानजा जहां ठाडे हरिमीत।।७२।।
मांखन वरा दहीथरा कीने बाबर श्वेत।पीरी फेणी बाबरनकी झालिन शोभा देत।।७३।।
गुजराती खजुला सरस कोमल अधिक सकोर।मांडा बहुत सखोरी सोहें लावत गोपी दोर।।७४।।
चंद्रकला उपरेटा सरस शोभित अति सुकुमार।दहिहोरी पुनि दहीबरा लावत व्रजकी नार।।७५।।
ललिता विशाखा संग मिलि खीर वरनको लाय।नांदन भर रचना रची देखत अति सुखदाय।।७६।।
सीराके कूंडा बहुत मोहनथार समेत। इनमें बहू मेवा सहित अरु सुगंध सुख देत।।७७।।
व्रजमंगल चंद्रावली ओर स्यामला साथ।ले आवत भोग धरत निरखत गोकुलनाथ।।७८।।
बहु भात मठरीनकी अर्ध चंद्र आकार।बूंदीनके लडुवानके बहुत करे विस्तार।।७९।।
मेवाटी लडुवा सरस ताके आगेंदेख।बेसनके लडुवानकी वाके आगे लेख।।८०।।
उरद धांसबूंदीनके लडुवा सोहे पास।खोआके गूंजानकी पांत महा सुखरास।।८१।।
ता आगें मनोहरके लडुवा पंगति देख।तथा सकरपारेनकी ताकें आगें लेख।।८२।।
ता आगें बेसन मगद लडुवा तिनकी पांत।ता आगें गूंजानकी पंगति अधिक सुहात।।८३।।
ता आगें चौरीठनके लडुवा पांत रसाल।भरिमा पूरी ता निकट पांत करी व्रजवाल।।८४।।
ता आगें पिनीनके लडुवा पांत सुहात।निज सखियनके संग ले लाई यशोमति मात।।८५।।
पीत घेबरनके डला पंगति अधिक सुहाय। अपनी सखियन साथ ले लाई रोहिणी माय।।८६।।
शेष।
श्रीगिरिराज धरण की जय।